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क़ुर्आन करीम

प्रश्न: 10197

क़ुर्आन क्या है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

क़ुर्आन करीम अल्लाह रब्बुल आलमीन का कलाम (कथन) है जिसे अल्लाह
तआला ने अपने सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अवतिरत किया है ताकि आप
लोगों को अंधेरों से निकाल कर रोशनी (उजाले) की तरफ लायें : “वह (अल्लाह) ही है
जो अपने बन्दे पर स्पष्ट आयतें उतारता है ताकि वह तुम्हें अंधेरे से उजाले की तरफ ले
जाये।” (सूरतुल हदीद : 9)

अल्लाह तआला ने क़ुर्आन करीम में पहले और पिछले लोगों के समाचार,
और आकाशों और धरतियों की रचना का वर्णन किया है, तथा उस में हलाल और हराम, शिष्टाचार
और नैतिकता के सिद्धान्त, इबादतों और मामलात के अधिनियम और प्रावधान, पैगंबरों और सदाचारियों
के जीवनी, विश्वासियों और अविश्वासियों के प्रतिफल, विश्वासियों के घर स्वर्ग का विवरण
और काफिरों के घर नरक के विवरण का उल्लेख किया है, और इसे हर चीज़ के लिए स्पष्टीकरण
बनाया है : “और हम ने आप पर यह किताब उतारी है जिस में हर बात का खुला बयान है
और हिदायत और रहमत और खुश्खबरी है मुसलमानों के लिए।” (सूरतुन नहल : 89).

तथा क़ुर्आन करीम में अल्लाह तआला के अस्मा व सिफात (नामों और
गुणों), उस के प्राणियों (मख्लूक़ात), और अल्लाह, उस के फरिश्तों, उस की किताबों, उस
के सन्देश्वाहकों और अखिरत के दिन पर ईमान लाने (विश्वास) के आमन्त्रण का वर्णन है
: “रसूल उस चीज़ पर ईमान लाये जो उन की ओर अल्लाह तआला की तरफ से उतारी गई और
मुसलमान भी ईमान लाये। यह सब अल्लाह तआला और उस के फरिश्ते पर, और उस की किताबों पर,
और उस के रसूलों पर ईमान लाये, उस के रसूलों में से किसी के बीच हम फर्क़ नहीं करते,
उन्हों ने कहा कि हम ने सुना और इताअत की, हम तुझ से माफी चाहते हैं, हे हमारे रब!
और हमें तेरी ही तरफ लौटना है।” (सूरतुल बक़रा :285)

क़ुरआन करीम में बदले के दिन (क़ियामत के दिन) के समाचार और मरने
के बाद के अह्वाल जैसे कि पुन: जीवित किये जाने, हश्र (हिसाब व किताब के लिए एकत्र
किए जाने), अल्लाह के सामने पेश होने, हिसाब व किताब होने का वर्णन, हौज़, सिरात (पुल),तराज़ू, नेमतों (समृद्धि) और अज़ाब (यातना) के विवरण और उस महान
दिन के लिए एकत्र किये जाने का उल्लेख किया गया है : “अल्लाह वह है जिस के सिवाय
कोई सच्चा मा’बूद (पूज्य) नहीं, वह तुम सब को ज़रूर क़ियामत के दिन जमा करेगा, जिस के
आने में कोई शक नहीं, अल्लाह तआला से अधिक सच किस की बात होगी।” (सूरतुन निसा
: 87).

क़ुर्आन करीम में संसार और ब्रह्माण्ड से संबंधित आयतों
(निशानियों) और क़ुरआन करीम की आयतों में मनन चिन्तन (गौर व फिक्र) और विचार करने का
निमन्त्रण दिया गया है : “आप कह दीजिए कि तुम गौर करो कि क्या-क्या चीज़ें आकाशों
और धरती में हैं, और जो लोग ईमान नहीं लाते उन को दलील और चेतावनी कोई फायदा नहीं पहुँचाती।”
(सूरत यूनुस : 101)

तथा अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने फरमाया : “क्या ये लोग
क़ुर्आन में चिन्तन मनन (गौर व फिक्र) नहीं करते ? या उन के दिलों पर उन के ताले लग
गये हैं ?” (सूरत मुहम्मद : 24)

क़ुर्आन सर्व मानव जाति की ओर अल्लाह तआला की किताब है :
“नि: सन्देह आप पर हम ने हक़ के साथ यह किताब लोगों के लिए उतारी है, तो जो इंसान
सीधे रास्ते पर आ जाये उस के अपने लिए (फायदा) है और जो भटक जाये उस के भटकने का (भार)
उसी पर है, आप उन के ज़िम्मेदार नहीं।” (सूरतुज़्ज़ुमरः 41)

क़ुर्आन करीम अपने से पूर्व किताबों जैसे किः तौरात और इंजील,
की पुष्टि करने वाला और उन पर निरीक्षक है जैसा कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान
है : “और हम ने आप की ओर हक़ (सत्य) के साथ यह पुस्तक उतारी है जो अपने से पूर्व
पुस्तकों की पुष्टि (प्रमाणित) करने वाली है और उन पर निरीक्षक और संरक्षक है।”
(सूरतुल माईदा: 48)

और क़ुर्आन के उतरने के बाद वही पूरी मानवता का क़ियामत के आने
तक के लिए किताब बन गया, अत: जो उस पर ईमान न लाये वह काफिर (अधर्मी) है, कियामत के
दिन उसे अज़ाब से दण्डित किया जायेगा, जैसाकि अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फरमान है
: “और जो लोग हमारी आयतों को झुठलायें उन को अज़ाब पहुँचेगा क्योंकि वे नाफरमान
(अवहेलना करने वाले) हैं।” (सूरतुल अंआम : 49)

क़ुर्आन की महानता और उस के अन्दर फसाहत (लाटिका) और वर्णन की
भव्यता के साथ साथ जो निशानियाँ, चमत्कार, दृष्टान्त और पाठ हैं उन के कारण अल्लाह
तआला इस के बारे में फरमाता है : “अगर हम इस क़ुर्आन को किसी पहाड़ पर नाज़िल करते,
तो आप देखते कि अल्लाह के डर से वह झुक कर कण-कण (रेज़ा-रेज़ा) हो जाता। हम इन मिसालों
को लोगों के सामने बयान करते हैं ताकि वे सोच विचार करें।” (सूरतुल हश्र :
21)

तथा अल्लाह तआला ने इंसान और जिन्नात को चुनौती दी है कि वे
सब मिल कर इस क़ुर्आन के समान कोई किताब, या इस के समान कोई एक सूरत या इस के समान एक
आयत ही लाकर पेश कर दें, लेकिन वे इस में असक्षम रहे और वास्तव में वे कभी भी सक्षम
नहीं हो सकते जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : “कह दीजिये कि अगर तमाम इन्सान
और सारे जिन्नात मिल कर इस क़ुर्आन के समान लाना चाहें तो उन सब के लिए इस के समान लाना
असम्भव है चाहे वे आपस में एक दूसरे के लिए सहयोगी भी बन जायें।” (सूरतुल इस्रा
: 88)

और जबकि क़ुर्आन करीम समस्त आसमानी किताबों में सब से महान, सब
से अधिक परिपूर्ण, सब से ज़्यादा कामिल और सब से अन्तिम पुस्तक है, तो अल्लाह तआला
ने अपने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को आदेश दिया है कि आप इसे सर्व मानव
जाति को पहुँचा दें, अल्लाह तआला का फरमान है : “ऐ पैग़म्बर जो कुछ भी आप की ओर
आप के पालनहार की ओर से उतारा गया है उस का प्रचार-प्रसार कीजिए। यदि आप ने ऐसा न किया
तो आप ने अपने पालनहार के सन्देश को नहीं पहुँचाया और आप को अल्लाह तआला लोगों से बचा
ले गा।” (सूरतुल माईदा : 67)

और इस पुस्तक के महत्व और उम्मत के इस की ज़रूरत की वजह से अल्लाह
तआला ने हमें इस से सम्मानित किया है, चुनाँचि इसे हम पर उतारा है और हमारे लिए इस
की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी ली है, अल्लाह तआला ने फरमाया : “हम ने ही इस ज़िक्र
-क़ुरआन- को उतारा है और हम ही इस की सुरक्षा करने वाले हैं।” (सूरतुल हिज्र :
9)

स्रोत

शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम अत्तुवैजरी की किताब उसूलुद्दीनिल इस्लामी से उद्धृत।

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