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वह अपने मृत पिता से प्यार करता है और उनके साथ सद्व्यवहार करना चाहता है

प्रश्न: 104606

मैं आप से यह प्रश्न पूछते हुए अपने पिता (अल्लाह उन पर दया करे) के बारे में चिंतित हूँ। मेरे पिता का दो साल पहले निधन हो गया, उनके अंदर सर्वसंसार के पालनहार के प्रति कोताही और कमी पाई जाती थी, जो कि ये हैः 1- वह फ़र्ज़ नमाज़ की पाबंदी नही करते थे। वह कभी नमाज़ पढ़ते और कभी आलस्य करते हुए नहीं पढ़ते थे, ऐसा नहीं था कि वह उसके अनिवार्य होने का इनकार करते था 2- वह बहुत कम ही रमज़ान का रोज़ा रखते थे, वह यह तर्क देते थे कि वह बीमार हैं और उन्हें दिल की दवा लेने की आवश्यकता है, या वह कमज़ोर हैं रोज़ा रखने में सक्षम नहीं हैं। लेकिन वह धूम्रपान करने वालों में से थे, और मुझे लगता है कि वह धूम्रपान छोड़ने के लिए अपने कमजोर प्रतिरोध की वजह से पाबंदी के साथ रोज़ा नहीं रखते थे। 3- एक लंबी अवधि पूर्व हमारे पास किराने की एक दुकान थी, और जहाँ तक मुझे पता है और जैसा कि मुझे याद है कि वह उसमें मौजूद सामान की ज़कात नहीं निकालते थे। उस समय हमारी आर्थिक स्थिति कठिन थी, हमारे व्यापार में लाभ नहीं हुआ और असके बाद हमने दुकान बेच दिया। 4- कभी-कभी हो सकता है उनके पास इतना पैसा होता था कि वह उससे हज्ज कर सकते थे, लेकिन उन्हों ने हज्ज नहीं किया। वह हमेशा मुझसे कहा करते थे कि वह हज्ज पर जाने की इच्छा करते हैं, लेकिन वह सक्षम नहीं हैं, क्योंकि वह दोनों आँखों में कई गंभीर समस्याओं से पीड़ित थे, और उनके लिए भीड़, सूरज और थकान से दूर रहना अनिवार्य था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने दान करते हुए उनकी ओर से हज्ज किया – मुझे लगता है कि वे तीन अल-अलग व्यक्ति थे, और वे उनके रिश्तेदारों में से नहीं थे – । मैं अपने पिता से बहुत प्यार करता था, और मैं उन सभी से प्यार करता हूँ जो उन्हें जानते थे।

इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि मुझे इस बात से अवगत कराएं कि मैं अपने पिता के साथ सद्व्यवहार करने के लिए क्या कर सकता हूँ। मैं उनसे प्यार करता हूँ और मैं उनपर क़ब्र की यातना से और क़ियामत के दिन की यातना से डरता हूँ।

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

यदि आप अपने पिता को उनकी मृत्यु के बाद लाभ पहुँचाना और उनके साथ नेकी करना चाहते हैं, तो आप उन्हें निम्न चीज़ों से लाभ पहुँचा सकते हैं :

1- उनके लिए सच्ची दुआ करना, अल्लाह तआला का फरमान है :

رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلَاةِ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي رَبَّنَا وَتَقَبَّلْ دُعَاءِ . رَبَّنَا اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِلْمُؤْمِنِينَ يَوْمَ يَقُومُ الْحِسَابُ

[إبراهيم:40-41]

”ऐ मेरे पालनहार! मुझे और मेरी सन्तान को नमाज़ क़ायम करनेवाला बना। ऐ हमारे पालनहार! और हमारी प्रार्थना स्वीकार कर। ऐ हमारे पालनहार! मुझे और मेरे माँ-बाप को और मोमिनों को उस दिन क्षमाकर देना, जिस दिन हिसाब का मामला पेश आएगा।” (सूरत इब्राहीमः 40-41).

अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः ”जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है, तो तीन चीज़ों को छोड़कर उसके कार्य का सिलसिला समाप्त हो जाता हैः जारी रहने वाला सदक़ा (दान), या लाभकारी ज्ञान (ऐसा ज्ञान जिससे लाभ उठाया जाए), या नेक संतान जो उसके लिए दुआ करे।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्याः 1631) ने रिवायत किया है।

तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह सर्वशक्तिमान आदमी के पद को ऊँचा कर देता है, तो वह आदमी कहता हैः मुझे यह कहाँ से मिल गयाॽ तो अल्लाह तआला कहता हैः तेरी संतान के तेरे लिए दुआ करने के कारण।” इसे तब्रानी ने ”अद्दुआ” (पृष्ठ/375) में रिवायत किया है और हैसमी ने ”मजमउज़-ज़वाइद” (10/234) में इसे बज़्ज़ार की ओर मंसूब किया है, और बैहक़ी ने इसे ”अस्सुनन अल-कुब्रा” (7/78) में रिवायत किया है।

अज़-ज़हबी ने ”अल-मुहज़्ज़ब” (5/2650) में कहा है कि : इसकी इसनाद मजबूत है। तथा अल-हैसमी ने कहा कि : आसिम बिन बहदला के अलावा इसके रिवायत करनेवाले लोग सहीह हदीस के रिवायत करनेवाले लोगों के समान हैं, और वह हसनुल हदीस हैं।

2- उनकी ओर से दान करना।

3- उनकी ओर से हज्ज और उम्रा करना और उनके सवाब को उन्हें भेंट कर देना। हमारी साइट पर इन चीजों के बारे में प्रश्न संख्याः (12652) के उत्तर में विस्तृत चर्चा किया जा चुका है।

4- उनके क़र्ज को पूरा करना : जैसा कि जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने पिता अब्दुल्लाह बिन हराम के क़र्ज़ के साथ किया था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश से। इस घटने (कहानी) को बुखारी (हदीस संख्याः 2781) ने रिवायत किया है।

जहाँ तक उनके छूटे हुए रोज़ो औऱ ज़कात का भुगतान न करने का मामला है, तो संतान के लिए इसकी भरपाई करना संभव नहीं है। यदि एक मुसलमान ने जानबूझ कर इन दोनों कर्तव्यों में कोताही की है तो उसके लिए उनके बोझ को उठाना ज़रूरी है, कोई अन्य व्यक्ति उन्हें उसकी ओर से अदा नही कर सकता।

यह नमाज़ की तरह है, जिसे कोई किसी अन्य की ओर से नहीं पढ़ सकता।

तथा हमारे पालनहार सर्वशक्तिमान ने हमें सूचना दी है कि मुसलमान को उसके काम का बदला दिया जाएगा, यदि अच्छा कार्य है तो अच्छा बदला, और अगर बुरा कार्य है तो बुरा :

अल्लाह तआला फरमाता है :

فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ وَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ

[الزلزلة: 7-8]

‘‘जो व्यक्ति एक कण के बराबर अच्छाई करे गा वह उसे देख लेगा, और जो आदमी एक कण के बराबर बुराई करे गा, वह उसे देख लेगा।’’ (सूरतुज़ जलज़ला: 7 – 8).

यह और बात है कि अल्लाह अपनी दया और कृपा से उसकी बुराइयों और पापों को क्षमा कर दे।

लेकिन ज़कात क़र्ज़ के समान है, क्योंकि यह ज़कात लेने के हक़दार लोगों का अधिकार है। अतः आपको चाहिए कि उस ज़कात का अनुमान लगाएं जो उन्हों ने अपने जीवनकाल में नहीं निकाला था और आप उनकी ओर से भुगतान कर दें। हमें आशा है यह उनपर आसानी का कारण बनेगा।

हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि आपको अपने पिता के लिए प्यार और उनके साथ सद्व्यवाहर की लालसा पर अच्छा बदला प्रदान करे, और उन्हें क्षमा कर दे।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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