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हम हरमैन शरीफैन (दो पवित्र मस्जिदों) के देश के लोग हैं, और एक मुसलमान एशियाई देश (पाकिस्तान) में दूतावास में कार्य करते हैं। क्या हम लोग सऊदी अरब के साथ रोज़ा रखेंगे या उस देश के साथ रोज़ा रखेंगे जिसमें हम निवास करते हैं?

प्रश्न: 106491

हम हरमैन शरीफैन (दो पवित्र मस्जिदों) के देश के लोग हैं, और एक मुसलमान एशियाई देश (पाकिस्तान) में दूतावास में कार्य करते हैं। क्या हम लोग सऊदी अरब के साथ रोज़ा रखेंगे या उस देश के साथ रोज़ा रखेंगे जिसमें हम निवास करते हैं?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

”शरीअत के प्रमाणों से जो बात प्रत्यक्ष है वह यह है कि हर मनुष्य जो किसी देश में निवास कर रहा है उसके लिए उसके निवासियों के साथ रोज़ा रखना अनिवार्य है ; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन हैः

”रोज़ा उस दिन है जिस दिन तुम रोज़ा रखते हो और इफ्तार का दिन वह जिस दिन तुम रोज़ा तोड़ देते हो और क़ुर्बानी का दिन वह है जिस दिन तुम क़ुर्बानी करते हो।”

तथा इसलिए कि शरीअत से यह बात ज्ञात है कि उसने एकजुट रहने का आदेश दिया है, और इख्तिलाफ व मतभेद करने से रोका है ; तथा इसलिए भी कि ज्ञानियों की सर्वसहमति के साथ मताले (चाँद के निकलने का स्थान) भिन्न-भिन्न होते हैं जैसाकि शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने फरमाया है। इस आधार पर, पाकिस्तान में दूतावास के कर्मचारियों में से जो व्यक्ति पाकिस्तानियों के साथ रोजा रखता है वह सत्य तक पहुँचना के उस व्यक्ति से अधिक निकट है जो सऊदी अरब के साथ रोज़ा रखता है ; क्योंकि उन दोनों देशों के बीच बड़ी दूरी पाई जाती है और इसलिए कि उन दोनों के मताले विभिन्न हैं। इसमें कोई शक नहीं कि किसी भी देश में सभी मुसलमानों का चाँद देखकर या शाबान महीने के तीस दिन पूरे करके एक साथ रोज़ा रखना शरीअत के प्रत्यक्ष प्रमाणों के अनुकूल है। लेकिन अगर ऐसा न हो सके तो सबसे निकट बात वही है जो हमने अभी उल्लेख की है। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।” अंत हुआ।

फज़ीलतुश्शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह।

”मजमूओ फतावा व मक़ालात मुतनौविआ” (15/98, 99)

तथा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से यह भी पूछा गया : पाकिस्तान में रमज़ान और शव्वाल के नये चाँद की दृष्टि सऊदी अरब से दो दिन विलंब रहती है, तो क्या वे लोग सऊदी के साथ रोज़ा रखेंगे या पाकिस्तान के साथ?

तो उन्हों ने उत्तर दिया :

”पवित्र शरीअत के प्रावधान से जो बात हमारे लिए प्रत्यक्ष और स्पष्ट होती है वह यह है कि आप लोगों पर अपने यहाँ के मुसलमानों के साथ रोज़ा रखना अनिवार्य है, इसके दो कारण हैं :

प्रथम : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है : ”रोज़ा उस दिन है जिस दिन तुम रोज़ा रखते हो और इफ्तार का दिन वह जिस दिन तुम रोज़ा तोड़ देते हो और क़ुर्बानी का दिन वह है जिस दिन तुम क़ुर्बानी करते हो।” इस हदीस को अबू दाऊद वगैरह ने हसन इसनाद के साथ रिवायत किया है। अतः आपके लिए और आपके भाई के लिए, आप लोगों के पाकिस्तान में उपस्थिति की अवधि में, उचित यह है कि आप का रोज़ा वहाँ के लोगों के साथ हो जब वे रोज़ा रखें और आप लोगों का रोज़ा तोड़ना (रोज़ा बंद करना) उन्हीं लोगों के साथ हो जब वे रोज़ा बंद करें ; क्योंकि आप लोग इस संबोधन के अंतर्गत आते हैं, और इसलिए भी कि मताले (चाँद के निकलने का स्थान) के बदलने के साथ (उसकी) दृष्टि बदलती रहती है। तथा विद्वानों का एक समूह जिसमें इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा भी शामिल हैं इस बात की ओर गया है कि हर देश वालों की उनकी अपनी दृष्टि है।

दूसरी बात : आप लोगों के अपने यहाँ के मुसलमानों का रोज़ा रखने और रोज़ा तोड़ने में विरोध करने में अशांति पैदा करना, तथा सवाल खड़ा करने और निंदा करने का निमंत्रण, तथा मतभेद और कलह को उत्तेजिन करना पाया जाता है। जबकि संपूर्ण इस्लामी शरीअत ने एकता, सद्भाव, नेकी और ईशभय पर सहयोग करने तथा मतभेद और कलह को त्याग देने पर उभारा है। इसीलिए अल्लाह तआला ने फरमाया :

وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا [آل عمران : 103]

‘‘अल्लाह की रस्सी को सब मिलकर मज़बूती से थाम लो और टुकड़ियों में न बिखर जाओ।” (सूरत आल इमरान : 103).

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब मुआज़ और अबू मूसा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को यमन की ओर भेजा तो फरमाया :

”तुम दोनों शुभसूचना देना, घृणा नहीं पैदा करना, तथा तुम दोनों एक दूसरे के अनुकूल रहना, आपस में मतभेद न करना।” अंत हुआ।

‘‘मजमूओ फतावा व मक़ालात मुतनौविआ” (15/103, 104)

स्रोत

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