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वे कौन लोग हैं जिन्हें मिना में रात न बिताने के लिए छूट दी गई है?

प्रश्न: 106585

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (हाजियों के लिए) पानी लाने वालों और कुछ अन्य लोगों को मिना के बाहर रात बिताने की रियायत दी है। वर्तमान समय में किन लोगों को उनपर क़ियास किया (मापा) जा सकता है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को हाजियों के लिए पानी का प्रबंध करने के लिए मक्का में रात बिताने की अनुमति प्रदान की थी, और यह एक सार्वजनिक सेवा है। इसी तरह, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने चरवाहों को भी मिना में रात न बिताने की रियायत दी थी। क्योंकि वे हाजियों की सवारियों की देखभाल करते थे। (उनके ऊँटों को चराते थे)। इन्हीं लोगों की तरह वे लोग भी हैं जो लोगों के हितों की देखभाल करने के लिए (मिना में) रात्रि नहीं बिताते हैं, जैसे डॉक्टर और अग्निशामक (फायर ब्रिगेड) और इनके समान अन्य लोग। तो इन लोगों के लिए वहाँ रात बिताना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि लोगों को उनकी ज़रूरत होती है।

जहाँ तक उन व्यक्तियों का संबंध है जिनके पास कोई व्यक्तिगत उज़्र (बहाना) है, जैसे कि एक बीमार व्यक्ति और उसके लिए नियुक्त नर्स, तो क्या इन लोगों को उन्हीं लोगों के साथ मिलाया जाएगा? (अर्थात इनका भी वही हुक्म होगा) इसके बारे में विद्वानों के दो कथन हैं :

विद्वानों में से कुछ लोग कहते हैं कि इन लोगों को उन्हीं के साथ मिलाया जाएगा क्योंकि उनके पास उज़्र (बहाना) पाया जाता है।

जबकि कुछ विद्वानों का कहना है कि ये उनके साथ नहीं मिलाए जायेंगे क्योंकि इन लोगों का उज़्र (बहाना) व्यक्तिगत है, और उन लोगों का उज़्र (बहाना) सामान्य था।

मेरे लिए जो बात स्पष्ट होती है वह यह है कि उज़्र (बहाने) वाले लोगों को उनके साथ मिलाया जाएगा, उदाहरण के तौर पर एक बीमार आदमी को इन दोनों रातों : ग्यारहवीं और बारहवीं रात को अस्पताल में ठहरने की जरूरत है तो इसमें उसके लिए कोई आपत्ति की बात नहीं है, तथा उसके ऊपर कोई फिद्या (दम) अनिवार्य नहीं है, क्योंकि उसके पास उज़्रर (बहाना) है। और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु को रियायत देना जबकि यह संभव था कि आप मक्का वालों में से किसी ऐसे व्यक्ति को इस काम के लिए प्रतिनियुक्त कर सकते थे जिसने हज्ज नहीं किया था, यह इस बात को इंगित करता है कि मिना में रात बिताने का मुद्दा हल्का है, अर्थात यह इतना सख्त अनिवार्य नहीं है। यहाँ तक कि इमाम अहमद रहिमहुल्लाह का यह विचार है कि जिस व्यक्ति ने मिना की रातों में से किसी रात को छोड़ दिया उस पर कोई फिद्या (दम) अनिवार्य नहीं है। बल्कि वह केवल कुछ दान कर देगा। अर्थात् स्थिति के अनुसार, दस रियाल या पांच रियाल।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“मजमूओ फतावा इब्न उसैमीन’’ (23/237).

स्रोत

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