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वह ईसाई महिला डॉक्टर से बात करते हुए उसके लिए दुआ करती है

प्रश्न: 108914

मुझे पुरुष डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं है। मैं महिला डॉक्टर को पसंद करती हूँ। एकमात्र कुशल महिला चिकित्सक जिसे मैं जानती हूँ वह एक ईसाई है। उसके मेरे साथ किए गए व्यवहार से मुझे सहज महसूस हुआ, और हमारे बीच बातचीत शुरू हो गई। जब मैं किसी से बात करती हूँ, तो मैं हमेशा उसके लिए यह कहते हुए दुआ करती हूँ : "हमारा पालनहार आपको सम्मान प्रदान करे, हमारा रब आपको इज़्ज़त दे, हमारा रब आपको आशीर्वाद दे।” क्या मेरी यह दुआ सही है या नहींॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

एक काफ़िर के लिए दुआ करना, चाहे वह ज़िम्मी (मुस्लिम शासन के अधीन रह रहा) हो या मुआहद (जिसका मुसलमानों के साथ अनुबंध हो) दो भागों में विभाजित किया गया है :

पहला भाग : आख़िरत से संबंधित दुआएँ : जैसे कि उसके लिए स्वर्ग में प्रवेश करने, या क्षमा और दया के लिए, या नरक से मुक्ति के लिए, या हमारे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सिफ़ारिश प्राप्त करने, और इसी तरह की दुआएँ करना।

उसके लिए इस प्रकार की दुआ करना जायज़ नहीं है, क्योंकि अल्लाह ने इससे मना किया है, जैसा कि उसका फरमान है :

مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَالَّذِينَ آَمَنُوا أَنْ يَسْتَغْفِرُوا لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوا أُولِي قُرْبَى مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ 

التوبة:113

“नबी तथा ईमान वालों के लिए मुशरिकों के लिए क्षमा की प्रार्थना करना कदापि जायज़ नहीं है, भले ही वे रिश्तेदार ही क्यों न हों, जबकि उनके लिए यह स्पष्ट हो गया कि निश्चय वे जहन्नम में जाने वाले हैं।” (सूरतुत तौबा : 113)

सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या : 976) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : “मैंने अपने रब से अपनी माँ के लिए क्षमा की प्रार्थना करने की अनुमति माँगी, लेकिन उसने मुझे अनुमति नहीं दी।”

नववी ने “अल-मजमू'” (5/120) में कहा :

“जहाँ तक काफ़िर के जनाज़े की नमाज़ अदा करने और उसके लिए माफ़ी की दुआ करने का सवाल है, तो यह क़ुरआन के पाठ और विद्वानों की सर्वसहमति के साथ हराम है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

दूसरा भाग : दुनिया से संबंधित दुआएँ : जैसे कि उसके लिए बहुत सारे धन एवं संतान की दुआ करना, या उसके लिए आरोग्य की दुआ करना, या सफलता और खुशी के लिए दुआ करना, और उनमें से सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी : उसके लिए मार्गदर्शन की दुआ करना।

इस प्रकार की दुआ अनुमेय है, इसमें कोई हर्ज या पाप नहीं है, और इसके कई कारण हैं :

1- इससे कोई मनाही नहीं है, और मूल सिद्धांत यह है कि यह तब तक जायज़ है जब तक कि उसके निषेध का कोई सबूत न हो।

2- सुन्नत में वर्णित है कि काफ़िर के सलाम का जवाब देना जायज़ है अगर वह स्पष्ट शब्दों में सलाम करे, और सलाम का जवाब देना सलामती और कल्याण की दुआ है। सुन्नत में यह भी वर्णित है कि एक गैर-मुस्लिम के लिए रुक़्या (झाड़-फूँक) करना जायज़ है, और रुक़्या रोगमुक्ति के लिए एक दुआ करना है। इसे पहले प्रश्न संख्या (6714 ।) के उत्तर में बयान किया जा चुका है।

3. क्योंकि इसमें इस काफ़िर के दिल को (इस्लाम के प्रति) नरम करने का हित पाया जाता है, जो कि एक महान और महत्वपूर्ण हित है जिसका शरीयत के उद्देश्यों में एतिबार किया जाता है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक बीमार यहूदी लड़के से मिलने गए और उसे इस्लाम की ओर बुलाया और उसने इस्लाम क़बूल कर लिया।

4. इसी तरह की दुआएँ कुछ पूर्वजों से वर्णित हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

उक़बा बिन आमिर अल-जुहनी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि वह एक ऐसे व्यक्ति के पास से गुज़रे जो देखने में मुसलमान जैसा दिखता था। उस आदमी ने सलाम किया, तो उक़बह ने यह कहते हुए उसका उत्तर दिया : व-अलैका व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू (और तुम पर भी सलाम (शांति) और अल्लाह की दया और उसका आशीर्वाद हो)। तो गुलाम ने उनसे कहा : वह एक ईसाई है। तो उक़बा उठे और उस आदमी का पीछा किया, यहाँ तक कि उसे पा लिया, तो कहा : अल्लाह की दया और उसका आशीर्वाद मोमिनों के लिए है, लेकिन अल्लाह तुम्हें लंबी उम्र दे और तुम्हारे धन और संतान को बढ़ाए।” इसे बुखारी ने “अल-अदब अल-मुफ़रद” (1/380) में रिवायत किया है।

हसन बसरी से वर्णित है कि उन्होंने कहा : यदि आप एक ज़िम्मी [मुस्लिम शासन के तहत रहने वाले एक ग़ैर-मुस्लिम] को सांत्वना देते हैं, तो कहें : तुम्हें केवल भलाई पहुँचे।

इसका उल्लेख इब्नुल-क़य्यिम ने “अहकामु अह्लिज़-ज़िम्मह” (1/438) में किया है और उन्होंने इसके समान कई रिपोर्टों का उल्लेख किया है।

5. फ़ुक़हा रहिमहुमुल्लाह (धर्मशास्त्रियों) ने भी इस प्रकार की दुआ को जायज़ माना है। इस संबंध में उनके कुछ कथन इस प्रकार हैं :

अल-बहूती अल-हंबली की “कश्शाफ अल-क़िना'” (3/130) में उल्लेख हुआ है :

“उससे [यानी एक अविश्वासी से] यह कहना जायज़ है : स्वागत है, आप कैसे हैंॽ और इसी तरह के अन्य वाक्यांश, जैसे : आपका क्या हाल हैॽ और एक मुसलमान के लिए एक ज़िम्मी से यह कहना जायज़ है : अल्लाह आपको सम्मान दे, अल्लाह आपका मार्गदर्शन करे – अर्थात्: इस्लाम द्वारा। इबराहीम अल-हरबी ने इमाम अहमद से कहा : क्या वह उससे कह सकता है : अल्लाह आपको सम्मान देॽ उन्होंने कहा : हाँ, अर्थात् : इस्लाम के द्वारा।” संक्षेप के साथ उद्धरण समाप्त हुआ।

“निहायतुल-मुहताज” (1/533) और “तुहफतुल-मुहताज” (2/88), जो शाफेई मत की किताबें हैं, के हाशियों में उल्लेख किया गया है : “काफ़िर के लिए शारीरिक स्वास्थ्य और मार्गदर्शन की दुआ करना जायज़ है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

मुनावी ने “फैज़ुल-क़दीर” (1/345) में कहा :

काफ़िर के लिए मार्गदर्शन, स्वास्थ्य और भलाई की दुआ करना भी जायज़ है, लेकिन क्षमा के लिए नहीं।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

इस आधार पर, प्रश्न में उल्लिखित शब्दों : “अल्लाह आपको आशीर्वाद दे, अल्लाह आपको सम्मान दे” के साथ आपके उस ईसाई डॉक्टर के लिए दुआ करने में आप पर कोई आपत्ति की बात नहीं है, और इससे आपका यह उद्देश्य हो कि सर्वशक्तिमान अल्लाह उसे इस्लाम के साथ सम्मान और आशीर्वाद दे।

इमाम अहमद बिन हंबल रहिमहुल्लाह से ऐसे मुस्लिम व्यक्ति के बारे में पूछा गया, जो एक ईसाई व्यक्ति से कहता है : अल्लाह तुम्हें सम्मान दे। उन्होंने कहा : हाँ, वह कह सकता है : अल्लाह तुम्हें सम्मान दे। अर्थात् : इस्लाम के साथ।”

इब्ने मुफलिह की “अल-आदाब अश-शरईय्या” (1/369)।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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