उस आदमी के बारे में है जिस ने एक आदमी को कहते हुये सुना : अगर तू ऐसा करता तो तेरे ऊपर इस में से कोई चीज़ न घटती। एक दूसरे आदमी ने उसकी बात को सुन कर कहा : इस शब्द से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रोका है, और यह ऐसा शब्द है जो इसके कहने वाले को कुफ्र तक पहुँचा देता है। तो एक दूसरे आदमी ने कहा कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मूसा और खिज़्र की कहानी में फरमाया है कि : "अल्लाह तआला मूसा पर दया करे, हमारी चाहत थी कि अगर आप सब्र से काम लेते यहाँ तक कि अल्लाह तआला उन दोनों के मामले में से और अधिक बातें हमारे लिये बयान करता।" और दूसरे ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस फरमान को प्रमाण बनाया कि : "शक्तिशाली मोमिन अल्लाह के निकट कमज़ोर मोमिन से आधिक प्रिय है।" यहाँ तक कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क्योंकि लौ (अगर, यदि) शैतान के काम (का द्वार) खोल देता है।" तो क्या यह हदीस इस से पूर्व की हदीस के हुक्म को रद्द (निरस्त) कर देने वाली है?
“लौ” (अगर) का शब्द प्रयोग करने का हुक्म
प्रश्न: 11010
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अल्लाह और उसके रसूल की कही हुई सारी बातें सत्य हैं, और "लौ" अर्थात् यदि (अगर) का शब्द दो रूप से प्रयोग किया जाता है:
प्रथम
: बीती हुई चीज़ पर दुख और भाग्य में लिखी हुई चीज़ पर घबराहट (निराशा) प्रकट करने के लिए। तो इसी चीज़ से रोका गया है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "हे मुसलमानो! तुम उनकी तरह न बनो जिन्हों ने कुफ्र किया और आपने भाईयों से, जब उन्हों ने ज़मीन में सफर किया या जिहाद के लिये निकले, तो कहा कि अगर वे हमारे पास रहते तो उनकी मृत्यु न होती न उनका क़त्ल होता। ताकि अल्लाह तआला उनके इस कथन को उनके दिलों में हसरत का कारण बना दे।" (सूरत आले-इम्रान :156)
और यही वह चीज़ है जिस से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने रोकते हुये फरमाया : "यदि तुम्हें कोई संकट पहुँचे तो यह न कहो कि "यदि" मैंने ऐसा किया होता तो ऐसा ऐसा होता, बल्कि इस तरह कहो कि अल्लाह ने भाग्य में यही निर्धारित किया था और जो अल्लाह ने चाहा वह हुआ, क्योंकि शब्द "लौ" (अर्थात् यदि) शैतानी कार्य का द्वार खोलता है।" अर्थात् तुम्हारे ऊपर दुख और शोक का रास्ता खोलता है, और यह नुक़सान पहुँचाता है लाभ नहीं देता, बल्कि यह बात जान लो कि तुम्हें जो चीज़ पहुँची है वह तुम से चूकने वाली नहीं थी, और जो चीज़ तुम्हें पहुँचने से रह गई है वह तुम्हें पहुँचने वाली नहीं थी, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है: "कोई मुसीबत अल्लाह की आज्ञा के बिना नहीं पहुँच सकती, और जो अल्लाह पर ईमान लाये, अल्लाह उसके दिल को मार्गदर्शन कर देता है।" (सूरतुत्तग़ाबुन :11) कहते हैं कि : इस से मुराद वह आदमी है जिसे मुसीबत पहुँचती है तो वह जानता है कि यह अल्लाह की ओर से है, फिर वह उस पर प्रसन्न हो जाता है और स्वीकार कर लेता है।
दूसरा
: प्रयोग यह है कि "लौ" (अगर) लाभदायक ज्ञान को स्पष्ट करने के लिये आता है, जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है : "अगर आकाश और धरती में अल्लाह के अतिरिक्त अन्य पूज्य भी होते तो वे ध्वस्त हो जाते (उनकी व्यवस्था नष्ट हो जाती)।" (सूरतुल अम्बिया :22)
तथा भलाई की महब्बत और उसकी इच्छा को बयान करने के लिए आता है, जैसाकि किसी का यह कहना कि : "अगर मेरे पास भी फलाँ के समान होता तो मैं भी उसी तरह करता जिस तरह कि वह करता है।" और इसी के समान अन्य बातें कहना वैध है।
और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फरमान कि : "हमारी चाहत थी कि अगर मूसा सब्र से काम लेते यहाँ तक कि अल्लाह तआला उन दोनों के मामले से और अधिक बातें हमारे लिये बयान करता।", इसी अध्याय से संबंधित है, जैसाकि अल्लाह तआला का यह फरमान है : "वे तो चाहते हैं कि आप तनिक ढीले हों तो वे भी ढीले पड़ जायें।" (सूरतुल क़लम :9)
क्योंकि हमारे पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस बात को पसंद किया कि अल्लाह तआला उन दोनों की सूचना (कहानी) का वर्णन करे, अतः आप ने उसे सब्र से अपनी महब्बत को बयान करने के लिये उल्लेख किया है जो कि उस पर निष्कर्षित होता है, चुनाँचि आप ने इस से प्राप्त होने वाले लाभ को भी बता दिया। और इस में वावेला करना, शोक करना और मुक़द्दर पर अनिवार्य सब्र को छोड़ना नहीं है…
और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
स्रोत:
मजमूउल फतावा अल-कुब्रा लिब्ने तैमिय्या 9/1033