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यदि रेनेट का स्रोत ज्ञात नहीं है तो पनीर खाने का क्या हुक्म है

سوال: 115306

बहुत सारे पनीर जिन्हें हम खरीदते हैं उनमें रेनेट नामी पदार्थ की उपस्थिति का क्या हुक्म है, जबकि हम नहीं जानते कि वह कहाँ से निकाला गया हैॽ

جواب کا متن

اللہ کی حمد، اور رسول اللہ اور ان کے پریوار پر سلام اور برکت ہو۔

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

पनीर में जो पदार्थ डाला जाता है उसे रेनेट कहा जाता है, यह त्वचा के एक पात्र (खोल) में उपस्थित पीले-सफेद रंग का पदार्थ होता है जो गाय या बकरी के बच्चे के पेट से निकाला जाता है। उस में से थोड़ा सा दूध में डाला जाता है जिससे वह जम जाता है और पनीर बन जाता है।

तथा देखिए : ”अल-मौसूअतुल-फ़िक़्हिय्या” (5/155)।

रेनेट का हुक्म, जहाँ से उसे लिया गया है उसके हिसाब से अलग-अलग होता है। यदि उसे एक ऐसे जानवर से लिया गया है जिसे शरीयत के अनुसार वध (ज़बह) किया गया है, तो वह शुद्ध है और खाए जाने के योग्य है। यदि उसे किसी ऐसे जानवर से लिया गया है जो प्राकृतिक कारणों से मर गया है या एक ऐसे जानवर से जिसे शरीयत के अनुसार वध (ज़बह) नहीं किया गया है, तो इसके बारे में फ़ुक़हा (धर्म शास्त्रियों) के बीच मतभेद पाया जाता है।

मालिकिय्या, शाफेइय्या और हनाबिला की बहुमत का विचार यह है कि यह नजिस (अशुद्ध) है। तथा अबू हनीफा और एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार अहमद इस के पवित्र होने की ओर गए हैं। इसी विचार को शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने राजेह क़रार दिया है। उन्हों ने ”अल-फतावा” (21/102) में फरमायाः ”सबसे स्पष्ट बात यह है कि उनका – अर्थात मजूसियों का – पनीर हलाल है और यह कि मृत जानवर (जो प्राकृतिक कारणों से मर गया हो) का रेनेट और उसका दूध ताहिर (शुद्ध) है।” उद्धरण का अंत हुआ।

तथा उन्होंने यह भी कहा (35/154): ”वह पनीर जो उनके – अर्थात कुछ बातिनी काफ़िर संप्रदायों के – रेनेट के साथ बनाया जाता है, उसके बारे में विद्वानों के दो प्रसिद्ध विचार हैं, जैसा कि शेष सभी मृत जानवरों के रेनेट, और जैसा कि मजूस के ज़बह किए हुए जानवर और अंग्रेज़ों के ज़बह किए हुए जानवरों के रेनेट का मामला है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे जानवरों को ज़बह नहीं करते हैं। तो इमाम अबू हनीफा और दो रिपोर्टों में से एक के अनुसार इमाम अहमद का मत यह है कि यह पनीर हलाल (अनुमत) है, क्योंकि मृत जानवरों का रेनेट इस विचार के अनुसार पाक (शुद्ध) है, क्योंकि जानवर के मर जाने से रेनेट नहीं मरता है, तथा आंतरिक तौर पर अशुद्ध कंटेनर (पात्र) से मिलने के कारण वह अशुद्ध नहीं हो जाता है। जबकि इमाम मालिक, इमाम शाफेई और एक रिपोर्ट के मुताबिक इमाम अहमद का विचार यह है कि यह पनीर नजिस (अशुद्ध) है क्योंकि इन लोगों के विचार में रेनेट नजिस है, क्योंकि मृत जानवरों का दूध और रेनेट इनके अनुसार नजिस (अशुद्ध) है। तथा जिस व्यक्ति के द्वारा ज़बह किए गए मांस को नहीं खाया जाता है, तो उसके द्वारा ज़बह किया गया मांस, मृत मांस की तरह है। इन दोनों विचारों के धारकों में से प्रत्येक ऐसे आसार से तर्क लेता है जिसे वह सहाबा से उद्धृत करता है। पहले विचार धारा के मानने वालों ने उल्लेख किया है कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने मजूस के पनीर को खाया है। जबकि दूसरे विचार धारा के मानने वालों ने उल्लेख किया है कि उन्हों ने उसे खाया है जिसे वह ईसाइयों का पनीर समझते थे। इस प्रकार यह मुद्दा इज्तिहाद के अधीन है और मुक़ल्लिद (अनुकरण कर्ता) दोनों कथनों में किसी भी कथन का फत्वा देनेवाले का पालन कर सकता है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

जब यही दृष्टिकोण राजेह है, तो चाहे आप रेनेट के स्रोत को जानते हों और यह कि वह एक (शरीयत के अनुसार) ज़बह किए गए जानवर का है या ज़बह किए गए जानवर का नहीं है, या आपको इसकी जानकारी नहीं है, उससे बने हुए पनीर को खाने में आपके लिए कोई आपत्ति की बात नहीं है।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

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