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डिस्काउंट कार्ड का हुक्म

प्रश्न: 121759

यहाँ कुवैत राज्य में विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए डिस्काउंट कार्ड वितरित किए जाते हैं, जिनमें रेस्तरां, कपड़े की दुकानों और किताबों की दुकानों आदि जैसे कई स्थानों पर 5% से 25% तक की छूट होती है, परंतु यह बात ध्यान में रहे कि छूट प्राप्त करने के लिए इन डिस्काउंट कार्डों को ५ दीनार में खरीदना पड़ता है। कुछ लोगों का कहना है कि डिस्काउंट कार्ड की कीमत कंपनी के विज्ञापन की लागत अथवा इन कार्डों को वितरित करने पर होने वाले खर्च के रूप में है। तो क्या इस डिस्काउंट कार्ड को खरीदना और उसका उपयोग करना जायज़ हैॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

विज्ञापन और मार्केटिंग कंपनियों, या पर्यटन और यात्रा सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियों, या कुछ शॉपिंग सेंटरों द्वारा जारी किए जाने वाले ये डिस्काउंट कार्ड, जो धारक को विभिन्न कंपनियों और संस्थाओं आदि द्वारा दी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर एक निश्चित छूट प्रदान करते हैं, दो प्रकार के होते हैं :

पहला : ऐसे कार्ड जो वार्षिक सदस्यता के माध्यम से शुल्क देकर प्राप्त किए जाते हैं।

दूसरा : फ्री में दिए गए डिस्काउंट कार्ड। ये कार्ड खरीदार को कंपनियों से खरीदारी करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उपहार के रूप में दिए जाते हैं, तथा कभी ये कार्ड उन लोगों को मुफ्त में दिए जाते हैं जिनकी खरीदारी एक निश्चित सीमा तक पहुँच गई हो।

जहाँ तक उन कार्डों की बात है, जो भुगतान के बदले में प्राप्त किए जाते हैं, तो वे हराम (निषिद्ध) हैं। क्योंकि उनमें इस्लामी शरीयत के कई उल्लंघन शामिल हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

1- अज्ञानता और धोखा, क्योंकि खरीदार छूट प्राप्त करने के उद्देश्य से कार्ड के लिए एक निश्चित धनराशि का भुगतान करता है, लेकिन उस छूट की वास्तविकता और उसके द्वारा मिलने वाली राशि ज्ञात नहीं होती है। ऐसा भी हो सकता है कि वह कार्ड का उपयोग ही न करे, अथवा ऐसा भी हो सकता है कि वह उसका उपयोग करे, परंतु वह भुगतान की गई धनराशि से कम या उससे अधिक छूट प्राप्त करे। जबकि “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने धोखे के व्यापार से मना किया है।” इस हदीस को मुस्लिम (हदीस संख्या : 1513) ने रिवायत किया है। इसमें हर वह लेनदेन शामिल है जिसमें कोई अज्ञानता (अस्पष्टता) है।

2- यह लेनदेन जोखिम पर आधारित है और यह मामला हानि और लाभ के बीच घूमता है। क्योंकि खरीदार कार्ड प्राप्त करने के बदले में भुगतान की गई क़ीमत का जोखिम उठाता है। फिर या तो उसे लाभ होगा यदि उसे भुगतान की गई क़ीमत से अधिक छूट मिलती है। और या तो उसे नुकसान होगा, यदि उसे भुगतान की गई क़ीमत से कम छूट मिलती है। और यह वास्तव में जुआ है, जिसे शरीयत ने हराम (निषिद्ध) क़रार दिया है। अल्लाह ने फरमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالْأَنصَابُ وَالْأَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

المائدة/90

“ऐ ईमान वालो! बात यही है कि शराब, जुआ, देवथान और फ़ाल निकालने के तीर सर्वथा गंदे और शैतानी कार्य हैं। अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो।” (सूरतुल-मायदा : ९०)

3- इन कार्डों में लोगों को धोखा एवं फरेब देना और दूसरे लोगों की संपत्ति हड़पना शामिल है, क्योंकि इनमें से अधिकतर वादा किए गए डिस्काउंट भ्रामक और अवास्तविक होते हैं।

तथा इन दुकानों के अधिकतर मालिक क़ीमतें बढ़ा देते हैं, फिर वे कार्ड धारक को यह आभास कराते हैं कि वे उसे छूट दे रहे हैं, जबकि वास्तव में छूट उस वृद्धि पर दी जाती है जो उन्होंने अन्य दुकानों के मुक़ाबले में सामान की क़ीमत पहले ही से बढ़ा रखी थी।

4- ये डिस्काउंट कार्ड अक्सर विवादों और झगड़ों का कारण बनते हैं, क्योंकि कार्ड जारी करने वाली कंपनी के पास शॉपिंग सेंटरों, कंपनियों और दुकानों को सहमति के अनुसार छूट का प्रतिशत देने के लिए बाध्य करने की कोई शक्ति नहीं होती है, इसलिए इससे विवाद और असहमति जन्म लेती है। और जो भी चीज़ विवाद, असहमति और विद्वेष का कारण बने, उसे रोकना अनिवार्य है, जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने फ़रमाया :

إِنَّمَا يُرِيدُ الشَّيْطَانُ أَن يُوقِعَ بَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةَ وَالْبَغْضَاءَ فِي الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ وَيَصُدَّكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَعَنِ الصَّلَاةِ ۖ فَهَلْ أَنتُم مُّنتَهُونَ

المائدة/91

“शैतान तो यही चाहता है कि शराब तथा जुए के द्वारा तुम्हारे बीच बैर तथा द्वेष डाल दे और तुम्हें अल्लाह के स्मरण तथा नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम रुकने वाले हो? (सूरतुल-मायदा : ९१)

5- इस प्रकार के डिस्काउंट कार्ड उन व्यापारियों को नुकसान पहुँचाते हैं जिन्होंने डिस्काउंट कार्यक्रम में भाग नहीं लिया है।

“उपर्युक्त कार्ड के प्रचलन से डिस्काउंट कार्यक्रम में भाग लेने वाले और इसमें भाग न लेने वाले दुकानदारों के बीच शत्रुता और विद्वेष की भावना पैदा होती है, क्योंकि डिस्काउंट देने वाले दुकानदारों का सामान बिक जाता है, और डिस्काउंट कार्यक्रम में भाग न लेने वाले दुकानदारों का सामान बचा रह जाता है।” (फतावा अल-लजनह अद-दाईमह 14/10)

6- इन डिस्काउंट कार्डों के लिए ग्राहक द्वारा भुगतान की गई सदस्यता शुल्क का कोई वास्तविक मुआवज़ा नहीं होता है। यदि वह (बिना कार्ड के ही) दुकानदार से कीमत कम करने के लिए कहे, तो उसे भी वह छूट या उसके क़रीब मिल सकती है, जिसका कार्ड धारकों से वादा किया गया है। इस प्रकार उसने कार्ड के लिए जो शुल्क भुगतान किया है उसके बदले में उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। और यह लोगों के धन को अवैध रूप से खाने के शीर्षक के अंतर्गत आता है, जो पवित्र क़ुरआन के पाठ द्वारा निषिद्ध है। अल्लाह तआला ने फरमाया :

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ

النساء/29

“ऐ ईमान वालो! आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ।” (सूरतुन-निसा : २९)

मुस्लिम वर्ल्ड लीग की फ़िक़्ह काउंसिल के अठारहवें सत्र में, इन कार्डों के साथ लेन-देन को निषिद्ध ठहराते हुए एक निर्णय जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि : “इस विषय पर प्रस्तुत शोध और व्यापक चर्चा को सुनने के बाद, यह निर्णय लिया गया कि : उपर्युक्त डिस्काउंट कार्ड जारी करना या उसे खरीदना जायज़ नहीं है, यदि वह एक मुश्त राशि या वार्षिक सदस्यता शुल्क के बदले में है। इसलिए कि इसमें धोखा पाया जाता है, क्योंकि डिस्काउंट कार्ड खरीदने वाला पैसे का भुगतान तो करता है परंतु वह यह नहीं जानता कि उसे इसके बदले में क्या मिलेगा। अतः इसमें हानि निश्चित है जिसके बदले में लाभ संभावित है।”

इसी प्रकार इफ्ता की स्थायी समिति से यह फतवा जारी हुआ है कि इस तरह के डिस्काउंट कार्ड के साथ लेनदेन करना हराम है, तथा इसी तरह का फतवा शैख़ इब्ने बाज़ और शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुमल्लाह ने भी दिया है।

देखिए : “फतावा अल-लजनह अद-दाईमह” (14/6) और “फतावा इब्ने बाज़” (19/58)

जहाँ तक ​​मुफ्त कार्डों की बात है जो खरीदार को बिना मुआवजे के दिए जाते हैं, तो उनका उपयोग करने और उनसे लाभ उठाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। क्योंकि किसी शुल्क के बग़ैर (मुफ़्त में) डिस्काउंट कार्ड उपलब्ध कराने से यह एक दान अनुबंध बन जाता है, और दान अनुबंध में धोखा अर्थात अज्ञानता माफ है।

यदि मुफ़्त डिस्काउंट कार्ड का धारक उससे छूट में लाभ नहीं उठा पाता है, तो उसका कुछ नुकसान नहीं होता है।

यही बात फ़िक़्ह परिषद के निर्णय में कही गई है, जिसमें आया है कि :

“यदि डिस्काउंट कार्ड बिना मुआवजे़ के नि:शुल्क जारी किए जाते हैं, तो उन्हें जारी करना और उन्हें स्वीकार करना इस्लामी शरीयत के अनुसार जायज़ है, क्योंकि यह दान या उपहार देने का वादा है।”

इस विषय में अधिक जानकारी के लिए देखें :

शैख बक्र अबू ज़ैद की पुस्तक : “बित़ाक़तुत्तख़फीज़ हक़ीक़तुहा अत-तिजारिय्यह व अह़कामुहा अश-शरइय्यह”

और डॉ. खालिद अल-मुस्लेह द्वारा लिखी गई पुस्तक : “अल-ह़वाफिज़ अत-तिजारिय्यह अत-तस्वीक़िय्यह व अह़कामुहा फिल-फिक़्हिल-इस्लामी”

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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