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मृतक की ओर से और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ से क़ुर्बानी करने का हुक्म

प्रश्न: 128016

मैं ने ईदुल अज़हा के दौरान कुछ लोगों को अपने माता पिता और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से क़ुर्बानी करते हुए देखा है, तो क्या यह धर्मसंगत है या बिदअत (नवाचार) है ?

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगानकेवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्व प्रथम :

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमको क़ुर्बानी भेंट करना या आपकी तरफ से क़ुर्बानी करना धर्मसंगत नहीं है; क्योंकि यहबात किसी एक सहाबी से भी वर्णित नहीं है जबकि वे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से संपूर्णमहब्बत करते थे और भलाई करने के अत्यन्त अभिलाषी व इच्छुक थे। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने अपनी उम्मत को इस का मार्गदर्शन नहीं किया है, जिस तरह कि आप ने उन्हेंअपने ऊपर दुरूद पढ़ने तथा अज़ान के बाद अपने लिए फज़ीलत और वसीला का प्रश्न करने के लिमार्गदर्शन किया है। अगर यह नेकी और भलाई का काम होता तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमउन्हें इस पर अवश्य मार्गदर्शन करते। तथा इसलिए भी कि आपकी उम्मत जो भी भलाई का कामकरेगी, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उसका सवाब (प्रतिफल) मिलेगा; क्योंकि आप हीउसकी तरफ मार्गदर्शन करने वाले और आमंत्रित करनेवाले हैं। इस तरह काम करनेवालेका नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सवाब भेंट कर देने में कोई फायदा नहीं है।बल्कि इसमें तो काम करने वाले का अपने आप से सवाब को बाहर निकाल देना पाया जात है जबकिउसका किसी दूसरे को कोई लाभ नहीं पहुँचता है।

तथा प्रश्न संख्या (52772) केउत्तर में इसका विस्तार से वर्णन गुज़र चुका है।

दूसरा : मृत की ओर से क़ुर्बानीके तीन रूप हैं :

पहला रूप :

वह उनकी ओर से जीवित लोगों केअधीन क़ुर्बानी करे, उदाहरण के तौर पर आदमी अपनी तरफ से और अपने घर वालों की तरफ सेक़ुर्बानी करे और उनसे जीवित और मृत दोनों की नीयत करे, और ऐसा करना जायज़ है। इसका प्रमाणयह है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी तरफ से और अपने घर वालों की तरफ से क़ुर्बानीकरते थे और उनमें कुछ ऐसे भी थे जो पहले मर चुके थे, जैसे कि खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा।

दूसरा रूप :

यह कि मृतकों की ओर से उनकी वसीयतोंके अनुसार उन्हें लागू करते हुए क़ुर्बानी करे। ऐसा करना अनिवार्य है सिवाय इसके किवह इसमें असक्ष हो जाए। इसका प्रमाण वसीयत के बदलने के बारे में अल्लाह तआला का यहकथन है :

فَمَنبَدَّلَهُ بَعْدَ مَا سَمِعَهُ فَإِنَّمَآ إِثْمُهُ عَلَىالَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ [البقرة : 181].

“फिर जिसने उसे सुनने के बाद बदल दिया तो उसका पाप उन पर है जोउसे बदल देते हैं, निःसंदेह अल्लाह तआला सब कुछ सुनने वाला जानने वाला है।” (सूरतुलबक़रा : 181).

तीसरा रूप :

वह मृतकों की ओर से दान के तौरपर जीवित लोगों से अलग क़ुर्बानी करे, (इस प्रकार कि अपने पिता के लिए एक अलग क़ुर्बानीकरे या अपनी माँ के लिए एक अलग क़ुर्बानी करे), तोऐसा करना जायज़ है। तथा इस बात पर हंबली मत के धर्म- शास्त्रियों का स्पष्ट कथन है किउसका सवाब (पुण्य) मृतक को पहुँचता है और वह इससे लाभ उठाता है, उन्हों ने इस मुद्देको मृतक की ओर से सद्क़ा करने के मुद्दे पर क़ियास किया है। लेकिन इसे छोड़ देना ही बेहतरहै क्योंकि यह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित नहीं है। चुनाँचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने विशिष्टकरके अपने मृतकों में से किसी एक की तरफ से भी क़ुर्बानी नहीं की है। चनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चाचाहमज़ा की ओर से क़ुर्बानी नहीं की जबकि वह आप के सबसे प्यारे रिश्तेदारों में से थे, न तो अपने उन बच्चों की ओर से क़ुर्बानी की जोआपके जीवन में मृत्यु पा चुके थे, और न ही आप ने अपनी पत्नी खदीजा की ओर से क़ुर्बानीकी जबकि वह आपके निकट आपकी सबसे प्रिय पत्नियों में से थीं। इसी तरह आपके समय काल मेंआपके सहाबा से भी वर्णित नहीं है कि उन में से किसी ने अपने मृतकों में से किसी कीओर से क़ुर्बानी की है।

तथा प्रश्न संख्या (36596) काभी उततर देखें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिकज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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