जिस आदमी को जादू कर दिया गया हो, या जादू-मंत्र के द्वारा उसके अंदर किसी के प्रति घृणा या किसी के प्रति प्रेम पैदा कर दिया गया हो, उसका उपचार क्या है ? मोमिन के लिए कैसे सम्भव है कि वह उस से छुटकारा पा जाये और जादू उसे नुक़सान न पहुँचाये, और क्या इस चीज़ के लिए क़ुर्आन और हदीस से कोई ज़िक्र या दुआयें हैं ?
जादू के उपचार के तरीक़े
प्रश्न: 12918
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
जादू के उपचार के कई प्रकार हैं:
सर्व प्रथम : यह देखा जायेगा कि जादूगर ने क्या किया है, अगर पता चल जाये कि उदाहरण के तौर पर उस ने किसी जगह कुछ बाल रखा है, या उसे कंघियों में रखा है, या इसके अलावा किसी अन्य चीज़ में रखा है, अगर पता चल जाये कि उस ने फलाँ स्थान पर जादू रखा है तो उस चीज़ को हटा दिया जायेगा, उसे जला दिया जायेगा और नष्ट कर दिया जायेगा, ऐसा करने से जादू का प्रभाव समाप्त हो जायेगा और जादूगर का जो मक्सद था वह विफल हो जायेगा।
दूसरा : अगर जादूगर का पता चल जाये तो जो कुछ जादू उसने किया है उसे नष्ट करने पर बाध्य किया जायेगा, उस से कहा जायेगा : या तो तू ने जो जादू किया है उसे नष्ट कर दे या फिर तेरी गर्दन उड़ा दी जायेगी, फिर जब वह उस जादू की हुई चीज़ को निरस्त कर दे तो मुसलमानों का शासक उसे क़त्ल कर देगा, क्योंकि शुद्ध कथन के अनुसार जादूगर को बिना तौबा करवाये ही क़त्ल कर दिया जायेगा, जैसाकि उमर रज़ियल्लाहु उन्हु ने ऐसा ही किया था, तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया गया है कि आप ने फरमाया : "जादूगर की सज़ा (दण्ड) तलवार से उसकी गर्दन मारना है",तथा जब उम्मुलमोमिनीन हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा को पता चला कि उनकी एक लौंडी जादू का काम करती है तो उसे क़त्ल करवा दिया।
तीसरा : क़ुर्आन पढ़ना ; क्योंकि क़ुरआन पढ़ने का जादू के निवारण में बड़ा प्रभाव है : उसका तरीक़ा यह है कि जादू से पीड़ित व्यक्ति पर या किसी बर्तन में आयतुल कुर्सी, तथा सूरतुल आराफ, सूरत यूनुस और सूरत ताहा में जादू से संबंधित आयतें, और उनके साथ ही सूरतुल काफिरून, सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) पढ़ी जायें, और उसके लिए शिफा (रोगनिवारण) और अच्छे स्वास्थ्य की दुआ की जाये, विशेषकर वह दुआ जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है और वह यह है:
"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"
(ऐ अल्लाह, लोगों के रब! संकट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे प्रदान किये हुये स्वास्थ्य (रोग निवारण) के अलावा कोई और स्वास्थ्य (रोग निवारण) नहीं है, ऐसी स्वास्थ्य प्रदान कर जो किसी बीमारी को न छोड़े।)
इसी में से वह दुआ भी है जिसके द्वारा जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दम किया था और वह दुआ यह है:
"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन्ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"
(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)
और इस दम (दुआ) को तीन बार दोहराये। इसी तरह "क़ुल हुवल्लाहु अहद्" और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) को भी तीन बार दोहराये।
तथा जादू के उपचार में से ही यह भी है कि हम ने जो दुआयें उल्लिखित की हैं उन्हें पानी में पढ़े और जादू से पीड़ित व्यक्ति उस में से कुछ पानी पिये और शेष पानी से आवश्यकता के अनुसार एक या अधिक बार स्नान करे, अल्लाह के हुक्म से उसका निवारण हो जायेगा। उलमा रहिमहुमुल्लाह ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है, जैसाकि शैख अब्दुर्रहमान बिन हसन रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब (फत्हुल मजीद शरह किताबुत्तौहीद) के अध्याय (मा जा-आ फिन्नुश्रा) में किया है, और इनके अलावा अन्य विद्वानों ने भी इसका उल्लेख किया है।
चौथा : बैरी के सात हरे पत्ते लेकर उसे कूट लें और पानी में मिला लें और उस में पीछे गुज़र चुकी आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ें, फिर उस में से कुछ पानी पी लें और बाक़ी पानी से स्नान करें। इसी प्रकार यह उस आदमी के उपचार में भी उपयोगी है जिसे उसकी पत्नी से (संभोग करने से) रोक दिया गया हो, चुनाँचि बैरी के सात हरे पत्ते पानी में डाल कर उसमें पिछली आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ी जायें, फिर उस से पिया जाये और स्नान किया जाये, अल्लाह के हुक्म से यह लाभदायक सिद्ध होगा।
जादू से पीड़ित और अपनी पत्नी से संभोग करने से रोक दिये गये आदमी के उपचार के लिए बैरी के पत्ते और पानी में पढ़ी जानी वाली आयतें निम्नलिखित हैं:
1- सूरतुल-फातिहा पढ़ना।
2- सूरतुल बक़रा से आयतुल कुर्सी पढ़ना, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है:
اللهُ لا إِلَهَ إِلا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَلا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ
"अल्लाह (तआला) ही सच्चा पूज्य है, जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं, जो ज़िन्दा है और सब का थामने वाला है, जिसे न ऊँघ आये न नींद, उस की मिल्कियत में धरती और आकाश की सभी चीज़ें हैं, कौन है जो उसके हुक्म के बिना उसके सामने सिफारिश कर सके, वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है और वह उसके इल्म में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, लेकिन वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी के विस्तार ने धरती और आकाशों को घेर रखा है, वह अल्लाह उनकी हिफाज़त से न थकता है और न ऊबता है, वह तो बहुत महान और बहुत बड़ा है।" (सूरतुल बक़रा : 255)
3- सूरतुल आराफ की यह आयतें पढ़ना:
قَالَ إِنْ كُنْتَ جِئْتَ بِآيَةٍ فَأْتِ بِهَا إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (106) فَأَلْقَى عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُبِينٌ (107) وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاءُ لِلنَّاظِرِينَ (108) قَالَ الْمَلأُ مِنْ قَوْمِ فِرْعَوْنَ إِنَّ هَذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ (109) يُرِيدُ أَنْ يُخْرِجَكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ (110) قَالُوا أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَأَرْسِلْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ (111) يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (112) وَجَاءَ السَّحَرَةُ فِرْعَوْنَ قَالُوا إِنَّ لَنَا لأَجْرًا إِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغَالِبِينَ (113) قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ لَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ (114) قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ نَحْنُ الْمُلْقِينَ (115) قَالَ أَلْقُوا فَلَمَّا أَلْقَوْا سَحَرُوا أَعْيُنَ النَّاسِ وَاسْتَرْهَبُوهُمْ وَجَاءُوا بِسِحْرٍ عَظِيمٍ (116) وَأَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنْ أَلْقِ عَصَاكَ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ (117) فَوَقَعَ الْحَقُّ وَبَطَلَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (118) فَغُلِبُوا هُنَالِكَ وَانْقَلَبُوا صَاغِرِينَ (119) وَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ (120) قَالُوا آَمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ (121) رَبِّ مُوسَى وَهَارُونَ (122)
"उस (फिरऔन) ने कहा, अगर आप कोई मोजिज़ा (चमत्कार) ले कर आये हैं तो उसे पेश कीजिये, यदि आप सच्चे हैं। फिर आप (मूसा अलैहिस्सलाम) ने अपनी छड़ी डाल दी तो अचानक वह एक साफ अजगर साँप बन गया। और अपना हाथ बाहर निकाला तो वह अचानक सभी देखने वालों के समाने बहुत ही चमकता हुआ हो गया। फिरऔन की क़ौम के सरदारों ने कहा कि यह बड़ा माहिर जादूगर है। वह तुम्हें तुम्हारे देश से निकालना चाहता है फिर तुम लोग क्या विचार देते हो ? उन्हों ने कहा कि आप उसे और उस के भाई को समय दीजिये और नगरों में इकट्ठा करने वालों को भेज दीजिये कि वे सभी माहिर जादूगरों को आप के समाने लाकर हाज़िर करें। और जादूगर फिरऔन के पास आये और कहा कि अगर हम सफल हो गये तो क्या हमारे लिए कोई बदला है ? उस ने कहा, हाँ, और तुम सब क़रीबी लोगों में हो जाओ गे। उन (जादूगरों) ने कहा कि ऐ मूसा! चाहे आप डालिये या हम ही डालें। (मूसा ने) कहा कि तुम ही डालो तो जब उन्हों ने डाला तो लोगों की नज़रबन्दी कर दी और उनको डरा दिया, और एक तरह का बड़ा जादू दिखाया। और हम ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी छड़ी डाल दो, फिर वह अचानक उनके स्वांग (ढोंग) को निगलने लगी। अत: सच स्पष्ट हो गया और उन्हों ने जो कुछ बनाया था सब जाता रहा। अत: वो लोग इस मौक़ा पर हार गये और बहुत अपमानित होकर लौटे। और जादूगर सज्दे में गिर गये। कहने लगे कि हम ईमान लाये सारी दुनिया के रब पर। जो मूसा और हारून का भी रब है।" (सूरतुल आराफ: 106-122)
4- सूरत यूनुस की निम्नलिखित आयतें पढ़ना:
وَقَالَ فِرْعَوْنُ ائْتُونِي بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (79) فَلَمَّا جَاءَ السَّحَرَةُ قَالَ لَهُمْ مُوسَى أَلْقُوا مَا أَنْتُمْ مُلْقُونَ (80) فَلَمَّا أَلْقَوْا قَالَ مُوسَى مَا جِئْتُمْ بِهِ السِّحْرُ إِنَّ اللهَ سَيُبْطِلُهُ إِنَّ اللهَ لا يُصْلِحُ عَمَلَ الْمُفْسِدِينَ (81) وَيُحِقُّ اللهُ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُجْرِمُونَ (82)
"और फिरऔन ने कहा कि मेरे पास सभी माहिर जादूगरों को लाओ। फिर जब जादूगर आये तो मूसा ने उन से कहा कि डालो जो कुछ तुम डालने वाले हो। तो जब उन्हों ने डाला तो मूसा ने कहा कि यह जो कुछ तुम लाये हो जादू है, तय बात है कि अल्लाह इस को अभी बरबाद किये देता है, अल्लाह ऐसे फसादियों का काम बनने नहीं देता। और अल्लाह तआला सच्चे सुबूत को अपने क़ौल से स्पष्ट कर देता है, चाहे मुजरिमों को कितना ही बुरा लेगे।" (सूरत यूनुस: 79-82)
5- सूरत ताहा की ये आयतें पढ़ना:
قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَلْقَى (65) قَالَ بَلْ أَلْقُوا فَإِذَا حِبَالُهُمْ وَعِصِيُّهُمْ يُخَيَّلُ إِلَيْهِ مِنْ سِحْرِهِمْ أَنَّهَا تَسْعَى (66) فَأَوْجَسَ فِي نَفْسِهِ خِيفَةً مُوسَى (67) قُلْنَا لا تَخَفْ إِنَّكَ أَنْتَ الأَعْلَى (68) وَأَلْقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلْقَفْ مَا صَنَعُوا إِنَّمَا صَنَعُوا كَيْدُ سَاحِرٍ وَلا يُفْلِحُ السَّاحِرُ حَيْثُ أَتَى (69)
"वे कहने लेगे कि हे मूसा! या तो तू पहले डाल या हम पहले डालने वाले बन जायें। जवाब दिया : नहीं, तुम ही पहले डालो। अब तो मूसा को यह ख्याल होने लगा कि उन की रस्सियाँ और लकड़ियाँ उन के जादू की ताक़त से दौड़ भाग रही हैं। इस से मूसा अपने मन ही मन में डरने लगे। हम ने कहा कि कुछ डर न कर, बेशक तू ही गालिब और ऊँचा होगा। और तेरे दाहिने हाथ में जो है उसे डाल दे कि उनकी सारी कारीगरी को यह निगल जाये, उन्हों ने जो कुछ बनाया है यह केवल जादूगरों के करतब हैं, और जादूगर कहीं से भी आये कामयाब नहीं होता।" (सूरत ताहा: 65-69)
6- सूरतुल काफिरून पढ़ना।
7- तीन बार सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन यानी सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास पढ़ना।
8- कुछ शरई दुआयें पढ़ना, उदाहरण के तौर पर:
"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"
(ऐ अल्लाह, लोगों के रब! कष्ट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे रोग निवारण के अलावा कोई रोग निवारण नहीं, ऐसी स्वास्थ्य (रोग निवारण) प्रदान कर कि कोई बीमारी बाक़ी न रहे।)
इसे तीन बार पढ़ें तो अच्छा है। और अगर इसके साथ ही निम्नलिखित दुआ भी तीन बार पढ़ें तो बेहतर है:
"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन्ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"
(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)
और अगर उपर्युक्त आयतें और दुआयें सीधे जादू से प्रभावित व्यक्ति पर पढ़ें और उसके सिर या उसके सीने पर फूँक मारें (दम करें), तो यह भी अल्लाह के हुक्म से शिफा (रोग निवारण) के कारणों में से है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।
स्रोत:
समाहतुश्शैख अल्लामा अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़ रहिमहुल्लाह की किताब "मजमूअ़ फतावा व मक़ालात मुत-नव्विआ" पृ0 8/144