डाउनलोड करें
0 / 0
6,62615/02/2010

रेहन की वैधता की हिकमत (तत्वदर्शिता)

प्रश्न: 132648

इस्लाम में रेहन की आवश्यकता का क्या कारण है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाहके लिए योग्य है।

शरीअत में रेहन : उस धनको कहते हैं जिसे क़र्ज़का दस्तावेज़और प्रमाण पत्र क़रार दिया जाता है, ताकि अगर जिस आदमी पर क़र्ज़है उस से क़र्ज़की प्राप्ति असंभव हो जाये तो उस (रेहन)के मूल्य से क़र्ज़का भुगतानकर लिया जाये।

रेहन पवित्र क़ुरआन, सुन्नत (हदीस)और विद्वानों की सर्वसम्मति से जाइज़ है।

चुनाँचि पवित्र क़ुरआन से इस का सबूतअल्लाह तआला का यह फरमान है : “अगर तुम यात्रा पर हो और (क़र्ज़के मामले को) लिखने वाला न पाओ तो रेहन रखलिया करो।” (सूरतुल बक़रा :283)

तथा सुन्नत (हदीस) से इस का प्रमाणयह हदीस है कि : “नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक यहूदी से एक अवधि तक केलिए गल्ला खरीदा और उस के पास लोहे की एक कवच गिरवी रख दी।” (सहीह बुखारी हदीस संख्या : 2068, सहीह मुस्लिमहदीस संख्या : 1603)

तथा रेहन के जाइज़ होने पर विद्वानोंका इत्तिफाक़ (सर्वसम्मति) है।

देखिये : “अल-मुग़नी” (4/215), “बदायेउस्सनाये” (6/145), “मवाहिबुल जलील” (5/2), “अल-मौसूअतुल फिक़्हिय्या” (23/175-176)

तथा फुक़हा इस बात पर एक मत हैं किरेहन जाइज़ मामलों में से है और यह कि वह अनिवार्य नहीं है।

इब्ने क़ुदामा “अल-मुग़नी”(4/215) में कहते हैं :

“रेहन वाजिब नहीं है। इस बारेमें हम किसी मतभेद करने वाले को नहीं जानते हैं।”

अत: क़र्ज़देने वाले के लिए जाइज़ है कि वह क़र्ज़दार से रेहन न ले।

तथा रेहन को धर्म संगत किये जानेकी हिकमत (तत्वदर्शिता) : यह है कि वह उन साधनों में से है जिस के द्वारा क़र्ज़देने वाला आदमी अपने क़र्ज़को मज़बूत (प्रमाणित) कर देता है, चुनाँचिअल्लाह तआला ने जिस तरह क़र्ज़को लिखकर पक्का (प्रमाणित) करने का हुक्म दिया है उसी तरह उसे रेहन के द्वारा प्रमाणित औरमज़बूत करने का हुक्म दिया है।

जब क़र्ज़की अदायगी का समय आ जाये, और क़र्ज़ दार क़र्ज़की अदायगी से इंकार कर दे, या असमर्थ होजाये, तो रेहन रखी हुई चीज़ को बेच दिया जायेगा और क़र्ज़देने वाला अपने हक़ को ले लेगा, और अगर उसकेमूल्य में से कुछ बाक़ी बच जाता है तो उसे क़र्ज़ दार को वापस लौटा दिय जायेगा।

रेहन इस शरीअत के गुणों और अच्छेतत्वों में से है, क्योंकि इस में क़र्ज़ दार और क़र्ज़देने वाले दोनों का एक साथ हित निहित है।

इस का उल्लेख इस प्रकार है कि : क़र्ज़देने वाला रेहन के द्वारा अपने हक़ को पक्काऔर मज़बूत कर लेता है, और यह उसे अपने मुसलमान भाई को क़र्ज़देने पर प्रोत्साहित करता है, अत: क़र्ज़का इच्छुक भी इस से लाभान्वित होता है, क्योंकिवह किसी क़र्ज़ देने वाले को पा जायेगा।

और अगर रेहन को रोक दिया जाये, तोबहुत से लोग अपने धनों के नष्ट हो जाने के भय से क़र्ज़ देने से रुक जायेंगे।

देखिये : “अश्शर्हुल मुम्ते”(9/121)

और अल्लाह तआला ही सर्व श्रेष्ठ ज्ञानरखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android
at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android