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दवाओं का प्रयोग अल्लाह पर तवक्कुल के विरूद्ध नहीं है

प्रश्न: 13272

दवाओं के प्रयोग के बारे में इस्लाम का दृष्टिकोण क्या है ॽ और क्या उनका प्रयोग अल्लाह तआला पर भरोसा करने के विपरीत है ॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम : दवा उपचार करना धर्म संगत है।

अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “अल्लाह तआला ने बीमारी और दवा पैदा की है, अतः तुम दवा (उपचार) करो,और हराम (निषिद्ध) चीज़ के द्वारा दवा न करो।”

इसे तबरानी ने “अल-मोजमुल कबीर” (24/254) में रिवायत किया है।

इस हदीस को शैख अल्बानी ने “अस्सिलसिला अस्सहीहा” (हदीस संख्या: 1633) में सही कहा है।

तथा उसामा बिन शरीक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने फरमाया : आराब (दीहातियों) ने कहा कि ऐ अल्लाह के पैगंबर क्या हम दवा करें ॽ आप ने फरमाया : हाँ,अल्लाह के बंदो,दवा उपचार करो,क्योंकि अल्लाह ने कोई बीमारी नहीं रखी है मगर उसके लिए रोगनिवारण (शिफायाबी) भी रखा है सिवाय एक बीमारी के। लोगों ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल, वह क्या है ॽ आप ने फरमाया : बुढ़ापा।”

इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2038) ने रिवायत किया है और कहा है कि यह हदीस : हसन सहीह है, तथा अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3855) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3436) ने रिवायत किया है।

दूसरा :

दवा उपचार करना अलल्लाह पर तवक्कुल और भरोसा करने के खिलाफ नहीं है :

इब्नुल क़ैयिम ने फरमाया :

सहीह हदीसों के अंदर दवा कराने का आदेश दिया गया है,और वह तवक्कुल के विपरीत नहीं है,जिस तरह कि भूख, प्यास, गर्मी और सर्दी को उनके विपरीत चीज़ों के द्वारा मिटाना तवक्कुल के खिलाफ नहीं है। बल्कि तौहीद की हक़ीक़त उन कारणों को अपनाए बिना संपूर्ण नहीं होती है जिन्हें अल्लाह तआला ने तक़्दीर और शरीअत में उनके मुसब्बबात (उत्पादक) के लिए मुकतज़यात (अभियाचक) करार दिया है, और उनको प्रभावहीन कर देना स्वयं तवक्कुल में खराबी पैदा करता है, जिस तरह कि वह आदेश और हिकमत में खराबी पैदा करता है, और वह तवक्कुल को कमज़ोर कर देता है इस प्रकार कि कारणों को निलंबित करने वाला यह समझता है कि उसका छोड़ देना तवक्कुल के अंदर सबसे मज़बूत है, हालांकि उसको छोड़ देना बेबसी (असमर्थता) है जो उस तवक्कुल के विपरीत है जिसकी वास्तविकता दिल का अल्लाह पर भरोसा करना है उस चीज़ को प्राप्त करने में जो बंदे के लिए उसके दीन और दुनिया में लाभदायक है और उस चीज़ को टालने में जो उसके लिए उसके दीन और दुनिया में हानिकारक है,और इस भरोसे के साथ कारणों को अपनाना भी आवश्यक है, अन्यथा वह हिकमत (तत्वदर्शिता) और शरीअत को अर्थहीन करने वाला होगा। अतः बंदा अपनी कमज़ोरी (असमर्थता) को तवक्कुल और अपने तवक्कुल को असमर्थता न बनाए।

“ज़ादुल मआाद” (4/15).

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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