मैं अमेरिका में रहता हूँ, और हम कुछ मुफ्त सेवाएं लेते हैं, खासकर हम लोग सीमित आय वालों में से समझे जाते हैं, किंतु इन सेवाओं में से कुछ जैसे उदाहरण के तौर पर खाना, हमारे लिए उसे चर्चों से लेना संभव है, तो क्या यह जाइज़ है ॽ
राज्य और चर्च से सहायता लेना और मांगना
السؤال: 132727
الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.
हर प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।
राज्य या योगदानपर आधारित संस्थाओंसे सहायता स्वीकारकरने में कोई हर्जनहीं है भले हीवह चर्च हो,जब तककि वह धर्म की किसीचीज़ को छोड़ देने,या किसीबुराई को मान्यतादेने,या बच्चोंआदि पर प्रभावडालने का कारणन बनता हो। लेकिनउस से उपेक्षाकरना और उस से निस्पृहहोना प्राथमिकतारखता है,क्योंकिऊपर वाला हाथ नीचेवाले हाथ से बेहतरहै,विशेषकरजब मामला चर्चसे लेने का है जिसकाआम तौर से वह जोकुछ मुसलमानोंको देता हैं उसमेंसंदिग्ध उद्देश्यहोता है। बुखारी(हदीस संख्या : 1428)ने हकीम बिन हिज़ामरज़ियल्लाहु अन्हुके माध्यम से नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम से रिवायतकिया है कि आप नेफरमाया : “ऊपर वाला हाथनीचे वाले हाथसे बेहतर है,और तुमउस व्यक्ति सेआरंभ करो जिसकाखर्च उठाने केतुम ज़िम्मेदारहो,और बेहतरीनदान मालदारी मेंहै,और जो व्यक्तिमांगने से बचनाचाहता है तो अल्लाहउसे बचा लेता है,और जोनिस्पृह होना चाहताहै, अल्लाह उसेनिस्पृह कर देताहै।”
तथा बुखारी(हदीस संख्या :1429) और मुस्लिम (हदीससंख्या : 1033) में इब्नेउमर रज़ियल्लाहुअन्हुमा से वर्णितहै कि उन्हों नेकहा : मैं ने नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम को फरमातेहुए सुना जबकिआप मिंबर पर थेऔर आप ने सदक़ा (दान)मांगने से उपेक्षाकरने तथा मांगनेका चर्चा किया: “ऊपर वालाहाथ नीचे वालेहाथ से बेहतर है,ऊपरवाला हाथ खर्चकरने वाला हाथहै, और नीचे वालाहाथ मांगने वालाहाथ है।”
लोगों से दानमांगना घृणित कामहै,भले ही किसीमुसलमान से मांगाजाए,सिवाय इसकेकि मांगने वालामांगने पर मजबूर(विवश) हो,क्योंकिआप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “मांगना एकखरोंच है जिस सेआदमी अपने चेहरेको खरोंचता हैसिवाय इसके किआदमी किसी राजासे मांगे, या ऐसीचीज़ के अंदरमांगे जिसके बिनाउसके लिए कोई चारहन हो।”इसे तिर्मिज़ी नेतथा अल्बानी नेसहीह तिर्मिज़ीमें सहीह कहा है।
तथा अबू दाऊद(हदीस संख्या :1639) ने इन शब्दों केसाथ रिवायत कियाहै :
“मांगनाखरोंच (छीलन,हलका घाव) है जिससे आदमी अपने चेहरेको नोचता है,अतःजो चाहे अपने चेहरेको वैसे बरकराररखे और जो चाहेउसे छोड़ दे,सिवाय इसके किआदमी किसी राज्यवाले (बैतुलमाल) से मांगे,या किसी ऐसे मामलेमें मांगे जिसकेबिना कोई चारहन हो।’’
“सुबुलुस्सलाम” (1/548) में फरमाया: (कद्दुन) अर्थात्: खरोंच और वहउसके निशान कोकहते हैं, रही बातराजा से प्रश्नकरने की तो उसमेंकोई बुराई नहींहै ;क्योंकिवह उसी चीज़ का प्रश्नकरता है जो उसकाबैतुल माल मेंहक़ है, और राजा कामांगने वाले परकोई उपकार नहींहै। क्योंकि वहवकील है, तो वह ऐसेही है कि कोई मनुष्यअपने वकील से यहप्रश्न करे किवह उसे उसके उसहक़ में से दे देजो उसके पास है।” अंत।
बुखारी (हदीससंख्या : 1475) और मुस्लिम(हदीस संख्या :1040) ने अब्दुल्लाहबिन उमर रज़ियल्लाहुअन्हुमा से रिवायतकिया है कि उन्होंने कहा : नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “आदमी लोगोंसे मांगता रहताहै यहाँ तक कि वहक़ियामत के दिनइस हाल में आयेगाकि उसके चेहरेपर मांस नहीं होगा।”
तथा मुस्लिम(हदीस संख्या :1041) ने अबू हुरैरहरज़ियल्लाहु अन्हुसे रिवायत कियाहै कि उन्हों नेकहा : अल्लाह केपैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “जिस आदमी नेलोगों से उनकेधन को मांगा ताकिवह अधिक से अधिकमाल जमा करे,तो वास्तवमें वह आग का अंगारामांगता है,तो फिरवह कम करे या अधिककरे।’’
तथा हदीस केशब्द : “जिसनेलोगों से उनकेधन को मांगा अधिकमाल जमा करने केलिए” का अर्थयह है कि : वह लोगोंसे मांगता है ताकिअधिक धन जमा करेजबकि उसे उसकीज़रूरत नहीं है।
इन हदीसोंके अंदर सुवक्ताफटकार और मागनेसे स्पष्ट रूपसे घृणा और नफरतदिलाया गया है,सिवायउस व्यक्ति केजिसके पास मांगनेके बिना कोई चारहन हो।
इस आधार पर,जब तक आप लोगोंको सहायता की सख्तज़रूरत नहीं हैतो उसे मांगनेसे उपेक्षा करें,और यदिआप लोगों को इसकीआवश्यकता है तोउसे मांगने औरलेने में आपकेऊपर कोई हर्ज नहींहै।
हम अल्लाहतआला से प्रार्थनाकरते हैं कि अपनीकृपा व अनुकंपासे आपको निस्पृहकर दे।
المصدر:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर