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हदीस : “हामा, सफर, नौअ और ग़ूल कुछ भी नहीं है” का अर्थ

प्रश्न: 13930

मैं ने एक अनोखी हदीस पढ़ी है जिस में “हामा, सफर, नौअ और ग़ूल” का खण्डन किया गया है, तो इन शब्दों का क्या अर्थ है ?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए
योग्य है।

इब्ने मुफ्लेह अल हंबली कहते हैं :

मुस्नद और सहीहैन (सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम) इत्यादि में
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आप ने फरमाया :

“न तो कोई हामा है और न सफर।” तथा इमाम मुस्लिम वग़ैरा
ने इन शब्दों की वृद्धि की है कि : “और न कोई नौअ है और न ही कोई ग़ूल है।”

अल हामा : शब्द “अल हाम” का एकवचन है, जाहिलियत (अज्ञानता)
के समय के लोग कहते थे कि : जो भी आदमी मर जाता है और उसे गाड़ दिया जाता है तो उसकी
क़ब्र से एक हामा ( एक कीड़ा या रात का एक पक्षी “उल्लू”) निकलता है, तथा अरब के लोग यह
गुमान करते थे कि मृतक की हडि्डयाँ हामा (उल्लू या पक्षी) बनकर उड़ती हैं, तथा वे लोग कहते थे
कि : जिस आदमी की हत्या कर दी गई है उस के सिर से हामा (उल्लू) निकलता है और बराबर
कहता रहता है कि : मुझे पिलाओ, मुझे पिलाओ यहाँ तक कि उस का बदला ले लिया जाये और उस की हत्या
करने वाले को क़त्ल कर दिया जाये।

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान : “सफर कुछ भी नहीं
है।” के अर्थ में एक कथन यह है कि : अरब के लोग सफर के महीने के आने से अपशकुन
लेते थे, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस का खण्डन करते हुये
फरमाया कि : “सफर के महीने में कोई कुशकुन (बुरा शकुन) नहीं है।” तथा यह
भी कहा गया है कि : अरब के लोग यह गुमान करते थे कि पेट में एक साँप होता है जो इंसान
को संभोग करते समय लग जाता है और उसे हानि पहुँचाता है और यह संक्रामक होता है। तो
शरीअत ने उस को खण्डित कर दिया। तथा मालिक कहते हैं कि : जाहिलियत के समय के लोग सफर
के महीने को एक साल हलाल समझते थे और एक साल उसे हराम घोषित कर देते थे।

नौअ (सितारा, नछत्र) : शब्द “अनवाअ” का एकवचन है, यह अट्ठाईस मंजिलें
(नछत्र) हैं, और यह चन्द्रमा के निर्दिष्ट स्थान हैं, और इसी से संबंधित
अल्लाह तआला का यह फरमान है : “और चाँद के हम ने निर्दिष्ट स्थान (नछत्र) निर्धारित
किये हैं।” और हर तेरह रात में भोर होने के साथ एक सितारा (नछत्र) पश्चिम में
डूबता है, और उस के मुक़ाबले में उसी समय एक दूसरा सितारा (नछत्र) पूर्व
में निकलता है, और वर्ष के समाप्त होने के साथ साथ इन अट्ठाईस सितारों (नछत्रों)
की भी समाप्ति हो जाती है, अरब के लोग यह गुमान करते थे कि एक सितारे (नछत्र) के डूबने
और दूसरे के निकलने के साथ वर्षा होती है, इसीलिए बारिश को उसी से सम्बंधित करते थे और कहते थे कि फलाँ
नछत्र (सितारा) की वजह से हम पर वर्षा हुई है। और इस का नाम “नौअ”इस लिये रखा गया है
कि जब एक सितारा पश्चिम में डूबता है तो उसी समय दूसरा सितारा पूर्व में उदय होता है,
और शब्द “नाआ यनूओ नौअन” का अर्थ होता है : उदय होना, निकलना, उठना। तथा एक कथन के
अनुसार नौअ का मतलब डूबने के हैं, और इस प्रकार वह ऐसे शब्दों में से है जो `अज़दाद´ कहलाते हैं (अरबी भाषा
में अज़दाद उस शब्द को कहते हैं जिस के दो अर्थ हों और दोनों एक दूसरे के विपरीत हों, जैसेकि निकलना और डूबना)

किन्तु जो आदमी वर्षाको अल्लाह तआला के
कृत्य से समझे और अपने कथन : हम पर फलाँ नछत्र से वर्षाहुई है का मतलब यह
ले कि फलाँ नछत्र में वर्षा हुई है : अर्थात अल्लाह तआला ने इस समय में बारिश होने
की आदत बना दी है, तो इस शब्द के हराम या मक्रूह होने में हमारे यहाँ मतभेद है।

तथा “गूल” : शब्द “गीलान”का एकवचन है, और यह शैतानों और जिन्नों
की एक प्रजाति है, अरब के लोगों का यह भ्रम था कि चटियल मैदान में गूल लोगों के
सामने प्रकट होता है और विभिन्न रंग रूप बदलता है और उन्हें रास्ते से भटका कर नष्ट
कर देता है, तो शरीअत ने इस का खण्डन किया और इसे व्यर्थ घोषित कर दिया।
एक कथन तो यह है।

और दूसरा कथन यह है कि : इस में स्वयं गूल और उसके अस्तित्व
को नहीं नकारा गया है, बल्कि इस में अरब के लोगों के इस भ्रम को खण्डित किया गया है
कि वह विभिन्न रंग रूप धारण करता है और लोगों को रास्ते से भटका देता है, तो इस आधार पर “गूल
नहीं है”का अर्थ यह होगा कि वह किसी को भटकाने की शक्ति नहीं रखता है, और इस का साक्षी एक
दूसरी हदीस है जो मुस्लिम वगैरा में है कि : “गूल का कोई प्रभाव नहीं है, किन्तु सआली है।”
सआली से अभिप्राय जिन्नों के जादूगर हैं, हदीस का अर्थ यह हुआ कि गूल का कोई प्रभाव नहीं है किन्तु जिन्नों
में जादूगर होते हैं जो लोगों पर उनके मामले को सन्दिग्ध कर देते हैं और उन्हें विभिन्न
ख्याल दिलाते हैं …, तथा खल्लाल ने ताऊस से रिवायत किया है कि एक आदमी उनके साथ जा
रहा था तो एक कव्वे ने चिल्लाया तो उस आदमी ने कहा : खैर, खैर (अच्छा हो, भला हो), तो ताऊस ने उस से कहा
: इस (कव्वे) के पास कौन सी भलाइ है, और कौन सी बुराई है ? तुम मेरा साथ छोड़ दो। “अल आदाब अश्शरईय्या”
(3/369, 370)

तथा इब्नुल क़ैयिम कहते हैं :

कुछ लोग इस बात की ओर गये हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
का फरमान कि : “बीमार ऊँटों को स्वस्थ ऊँटों के पास न लाया जाये।” आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम के फरमान : “कोई बीमारी संक्रामक नहीं है”के द्वारा मंसूख (निरस्त)
है, लेकिन यह विचार सही नहीं है,
बल्कि यह उन्हीं चीज़ों में से है जिसका अभी
उल्लेख हुआ है कि जिस से रोका गया है वह ऐसी क़िस्म है जिस की अनुमति नहीं, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्ल ने अपने फरमान “कोई बीमारी संक्रामक नहीं है और सफर का महीना अपशकुन
वाला नहीं है।” के द्वारा जिस चीज़ का खण्डन किया है वह मुशरिकों के इस विश्वास
का खण्डन है कि वे इसे अपने शिर्क के अनुमान और अपने कुफ्र के नियम पर साबित होने का
एतिक़ाद रखते थे। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने फरमान बीमार को स्वस्थ के
पास न लाया जाये के द्वारा जिस चीज़ का खण्डन किया है, उस की दो व्याख्यायें
हैं :

(1) इस बात का डर है कि कहीं आदमी का मन, इस तरह की चीज़ों में
से जिसे अल्लाह तआला मुक़द्दर करता है उसे संक्रमण और छूत से सम्बंधित न कर दे, और इस में उस आदमी
को दुविधा में डालना है जो बीमार को स्वस्थ के पास ले जाता है और उसे इस बात से दो
चार करना है कि वह संक्रमण और छूत में विश्वास कर बैठे, इस तरह दोनों हदीसों
में कोई टकराव और विरोध नहीं है।

(2) इस से केवल यह पता चलता है कि बीमार ऊँटों को स्वस्थ ऊँटों
के पास लाना इस बात का कारण बन सकता है कि अल्लाह तआला इस की वजह से उस में रोग पैदा
कर दे, अत: उस का लाना (बीमारी) का सबब है, और कभी कभार ऐसा होता
है कि अल्लाह तआला उस के प्रभाव को ऐसे कारणों के द्वारा हटा देता है जो उसका विरोध
करते हैं, या कारण की शक्ति उसे रोक देती है, और यह शुद्ध तौहीद
(एकेश्वरवाद) है, उस विश्वास के विपरीत जिस पर मुशरिक लोग क़ायम थे।

और यह बिल्कुल उसी तरह है जिस तरह कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला
ने क़ियामत (पुनर्जीवन) के दिन अपने इस फरमान के द्वारा सिफारिश (अनुशंसा) का इनकार
किया है कि : “जिस दिन न कोई क्रय विक्रय होगा,
न कोई दोस्ती और न कोई सिफारिश।” (सूरतुल
बक़रा : 254)

यह आयत उन मुतवातिर हदीसों का विरोध नहीं करती है जो स्पष्ट
रूप से सिफारिश के साबित होने पर तर्क हैं, क्योंकि अल्लाह तआला ने मात्र उस सिफारिश का इनकार किया है जिसे
मुशरिक लोग साबित करते थे, और वह ऐसी सिफारिश है जिस में सिफारिश करने वाला उस आदमी की
अनुमति के बिना सिफारिश करता है जिस के पास सिफारिश की जाती है, किन्तु अल्लाह और उस
के पैगंबर ने जिस सिफारिश को साबित किया है वह अल्लाह की अनुमति के बीद होगी, जैसाकि अल्लाह का फरमान
है : “कौन है जो उस के पास उस की अनुमति के बिना सिफारिश करे ?” (सूरतुल
बक़रा : 255)

तथा अल्लाह तआला का फरमान है : “और वे केवल उसी के लिए
सिफारिश करेंगे जिस से अल्लाह तआला प्रसन्न हो।” (सूरतुल अंबिया : 28)

तथा अल्लाह तआला का फरमान है : “और उस के पास सिफारिश भी
कुछ लाभ नहीं देती सिवाय उस के लिए जिस के लिए अनुमति मिल जाये।” (सूरत सबा :
23)

“हाशिया तहज़ीब सुनन अबू दाऊद” (10/289-291)

और अल्लाह तआला ही शुद्ध मार्ग की तौफीक़ (शक्ति) प्रदान करने
वाला है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्रोत

शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद

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