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निजी ज़रूरतों के लिए मस्जिद के लिए वक़्फ़ संपत्ति का उपयोग करना जायज़ नहीं है

प्रश्न: 139434

क्या कोई मुसलमान उस ज़मीन पर दुकान खोल सकता और चला सकता है जो मस्जिद की संपत्ति का हिस्सा हैॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

यदि यह भूमि जिस पर वह निजी दुकान बनाना चाहता है, मस्जिद के लिए वक़्फ़ की गई भूमि है, अर्थात् यह उस मस्जिद का हिस्सा है जो नमाज़ के लिए तैयार की गई है, या यह उसके मुलहक़ा (मिले हुए) हिस्से में से है : तो इसे किसी भी परिस्थिति में निजी ज़रूरतों और व्यक्तिगत मामलों के लिए उपयोग करना जायज़ नहीं है। बल्कि यह अल्लाह के हक़ में और मुसलमानों के हक़ में अपराध और अतिक्रमण की श्रेणी में आता है।

लेकिन अगर वह ज़मीन लाभ उठाने और मस्जिद पर खर्च करने के लिए वक़्फ़ की गई थी, तो उस पर दुकानें बनाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है। लेकिन उनपर किसी व्यक्ति विशेष का मालिकाना हक़ नहीं होगा, बल्कि वे मस्जिद के वक़्फ़ के रूप में बाक़ी रहेंगी और उनसे प्राप्त होने वाली आय को मस्जिद पर या अन्य धर्मार्थ साधनों (अच्छे कार्यों) पर वक़्फ़ स्थापित करने वाले द्वारा निर्धारित शर्तों के अनुसार खर्च किया जाएगा।

शैख़ इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

मस्जिद के प्रांगण में उसमें रहने के लिए भवन निर्माण करने का क्या हुक्म है, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यह प्रांगण मस्जिद के हॉल का हिस्सा है, और इसमें जमाअत की नमाज़ अदा की जाती है। यदि यह निर्माण पूरा हो गया है, तो मस्जिद के प्रभारियों को क्या करना चाहिएॽ

उन्होंने जवाब दिया :

“मस्जिद की ज़मीन पर कुछ भी नहीं बनाया जाना चाहिए। अगर ज़मीन मस्जिद की है, तो उस पर कुछ भी नहीं बनाया जाएगा। बल्कि, वह मस्जिद के विस्तार के लिए बाक़ी रहेगी, लोगों की संख्या अधिक होने पर उसमें नमाज़ पढ़ी जाएगी और उसमें से कुछ भी नहीं लिया जाएगा। बल्कि वह मस्जिद के लिए अतिरिक्त विस्तार के रूप में बाक़ी रहेगी। अगर इमाम, या मुअज़्ज़िन, या पुस्तकालय के लिए, या मस्जिद की ज़रूरतों के निर्माण के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत है, तो वह मस्जिद के बाहर होना चाहिए। यदि कोई चीज़ (जगह) है, तो इसे मस्जिद के बाहर बनाया जाए, या परोपकारी लोगों की मदद से कोई ज़मीन खरीदकर वहाँ इसका निर्माण किया जाए। तात्पर्य यह है कि मस्जिद के प्रांगण और उसके सहन को मस्जिद के विस्तार के रूप में छोड़ दिया जाएगा।” उद्धरण समाप्त हुआ।

“मजमूओ फ़तावा इब्न बाज़” (30/83-84)

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

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