वे कौन-सी शर्तें हैं जो एक मुसलमान के द्वारा किए गए कार्य को स्वीकार्य बनाती हैं और फिर अल्लाह उसे उसपर अज्र व सवाब (पुण्य) प्रदान करता हैॽ क्या इसका उत्तर केवल यह है कि मुसलमान क़ुरआन और सुन्नत का पालन करने का इरादा करे, और यह उसे अज्र पाने के योग्य कर देगी, जबकि हो सकता है कि उसने अपने उस काम में कुछ गलती की होॽ या यह है कि उसके लिए अनिवार्य है कि उसके पास इरादा होना चाहिए, और उसके साथ ही उसके लिए सही सुन्नत का पालन करना भी आवश्यक हैॽ
अल्लाह के निकट कर्मों के स्वीकार होने की शर्तें
प्रश्न: 14258
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अल्लाह के निकट इबादतों के स्वीकार्य होने के लिए और उसपर बंदे को अज्र व सवाब दिए जाने के लिए उसमें दो शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है :
पहली शर्त : सर्वशक्तिमान अल्लाह के प्रति इख़्लास (निष्ठा)। अर्थात् इबादत का कार्य केवल अल्लाह के लिए समर्पित होना चाहिए। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وما أمروا إلا ليعبدوا الله مخلصين له الدين حنفاء [سورة البينة: 5]
“हालाँकि उन्हें केवल यही आदेश दिया गया था कि वे अल्लाह के लिए धर्म को विशुद्ध करते हुए, एकाग्र होकर, उसकी उपासना करें।” (सूरतुल-बैयिनह : 5)
इख़्लास (यानी अकेले अल्लाह की इबादत करने) का अर्थ यह है कि : बंदे का अपने सभी प्रोक्ष और प्रत्यक्ष कथनों और कार्यों का उद्देश्य अल्लाह की प्रसन्नता तलाश करना हो। अल्लाह तआला ने फरमाया :
وما لأحد عنده من نعمة تجزى إلا ابتغاء وجه ربه الأعلى [سورة الليل : 19]
“और उसपर किसी का कोई उपकार नहीं है, जिसका बदला चुकाया जाए। वह तो केवल अपने सर्वोच्च रब का चेहरा चाहता है।” (सूरतुल-लैल : 19-20)
तथा अल्लाह ने फरमाया :
إنما نطعمكم لوجه الله لا نريد منكم جزاءً ولا شكوراً [سورة الإنسان : 9]
“हम तुम्हें केवल अल्लाह के चेहरे के लिए खाना खिलाते हैं। हम तुमसे कोई बदला, या कृतज्ञता नहीं चाहते हैं।” (सूरतुल-इन्सान : ९]
तथा अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :
من كان يريد حرث الآخرة نزد له في حرثه ومن كان يريد حرث الدنيا نؤته منها وما له في الآخرة من نصيب [سورة الشورى : 20]
“जो आख़िरत की खेती (प्रतिफल) चाहता है, हम उसकी खेती (प्रतिफल) में बढ़ोतरी कर देते हैं। तथा जो केवल दुनिया की खेती चाहता है, हम उसे उसमें से कुछ दे देते हैं और उसके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं है।” (सूरतुश-शूरा : 20)
तथा अल्लाह ने फरमाया :
مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا نُوَفِّ إِلَيْهِمْ أَعْمَالَهُمْ فِيهَا وَهُمْ فِيهَا لا يُبْخَسُونَ أُوْلَئِكَ الَّذِينَ لَيْسَ لَهُمْ فِي الآخِرَةِ إِلا النَّارُ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوا فِيهَا وَبَاطِلٌ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ [سورة هود : 15-16]
“जो व्यक्ति सांसारिक जीवन तथा उसकी शोभा चाहता हो, हम ऐसे लोगों को उनके कर्मों का बदला इसी (दुनिया) में दे देते हैं और इसमें उनका कोई हक़ नहीं मारा जाता। यही वे लोग हैं, जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा कुछ नहीं है और उनके दुनिया में किए हुए समस्त कार्य व्यर्थ हो जाएँगे और उनका सारा किया-धरा अकारथ होकर रह जाएगा।” (सूरत हूद : 15-16)
तथा उमर बिन अल-खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : "मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “सभी कार्यों का आधार नीयतों पर है और प्रत्येक व्यक्ति को वही कुछ मिलेगा, जिसकी उसने नीयत की। अतः जिसकी हिजरत दुनिया प्राप्त करने या किसी स्त्री से शादी करने के लिए है, तो उसकी हिजरत उसी चीज़ के लिए है, जिसके लिए उसने हिजरत की।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 1) ने रिवायत किया है।
तथा मुस्लिम ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह तआला ने फरमाया : मैं सभी साझेदारों में साझेदारी से सबसे अधिक बेनियाज़ हूँ। जिसने कोई ऐसा काम किया, जिसमें मेरे साथ मेरे अलावा को साझी ठहराया, तो मैं उसको और उसके साझी बनाने के कार्य को छोड़ देता हूँ।” इसे मुस्लिम (किताबुज़-ज़ुह्द, हदीस संख्या : 2985) ने रिवायत किया है।
दूसरी शर्त : वह काम उस शरीयत के अनुसार होना चाहिए, जिसे अल्लाह ने इबादत के लिए निर्धारित किया है और उसके बिना इबादत नहीं की जा सकती है। और वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का, आपके द्वारा लाए हुए शरीयत के नियमों में, अनुसरण करना है। हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है : “जिसने कोई ऐसा कार्य किया, जो हमारे इस (शरीयत के) मामले के अनुसार नहीं है, तो उसे अस्वीकार कर दिया जाएगा।” इसे मुस्लिम (किताबुल-अक़्ज़ियह, हदीस संख्या : 1718) ने रिवायत किया है।
इब्ने रजब रहिमहुल्लाह ने कहा : “यह हदीस इस्लाम के सिद्धांतों में से एक महान (महत्वपूर्ण) सिद्धांत है। यह हदीस प्रत्यक्ष कार्यों को तौलने के लिए तराज़ू (कसौटी) के समान है, जिस तरह कि हदीस : “कार्यों का आधार नीयतों पर है।” आंतरिक कार्यों को तौलने के लिए एक तराज़ू (कसौटी) है। चुनाँचे जिस तरह हर वह कार्य जो अल्लाह के चेहरे के लिए अभिप्रेत नहीं है, उसमें उसके करने वाले के लिए कोई सवाब नहीं है, उसी तरह हर वह काम जो अल्लाह और उसके रसूल के आदेश के अनुसार नहीं है, वह उसके करने वाले के ऊपर लौटा (फेंक) दिया जाएगा। तथा जिसने भी इस्लाम में कोई नयी चीज़ पैदा कर ली, जिसकी अल्लाह और उसके रसूल ने अनुमति नहीं दी है, तो उस चीज़ का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।” (जामिउल-उलूम वल-हिकम, भाग-1, पृष्ठ : 176)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सुन्नत और तरीक़े का पालन करने और मज़बूती से उनपर अमल करने का आदेश दिया है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :
“तुम मेरी सुन्नत (तरीक़े) और मेरे बाद हिदायत याफ्ता ख़ुलफा-ए-राशिदीन (सही मार्ग निर्देशित उत्तराधिकारियों) की सुन्नत (तरीक़े) को लाज़िम पकड़ो, उसे दाँतों से जकड़ लो।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बिदअत (नवाचार) से सावधान किया है, चुनाँचे फरमाया : “और (धर्म में) नई आविष्कार कर ली गई चीज़ों (बिदअतों) से बचो, क्योंकि हर बिद्अत गुमराही (पथभ्रष्टता) है।” इसे तिर्मिज़ी (किताबुल-इल्म, हदीस संख्या : 2600) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह सुनन अत-तिर्मिज़ी” (हदीस संख्या : 2157) में इसे सहीह क़रार दिया है।
इब्नुल-क़ैयिम रहिमहुल्लाह ने कहा : “अल्लाह ने इख़्लास और सुन्नत के अनुसरण को कार्यों के स्वीकार किए जाने के लिए कारण बनाया है। यदि यह कारण नहीं पाया गाया, तो कार्यों को स्वीकार नहीं किया जाएगा।” (किताब अर-रूह़, 1/135)
अल्लाह तआला का फ़रमान है :
الذي خلق الموت والحياة ليبلوكم أيكم أحسن عملاً [سورة الملك :2]
“जिसने मृत्यु और जीवन को पैदा किया, ताकि तुम्हारा परीक्षण करे कि तुममें से कौन सबसे अच्छे कर्म वाला हैॽ” (सूरतुल मुल्क : 2).
फुज़ैल ने कहा : “सबसे अच्छे कर्म वाला” का मतलब है सबसे अधिक इख़्लास वाला और सबसे अधिक सुन्नत के अनुकूल है।
और अल्लाह तआला ही तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) प्रदान करने वाला है।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद