मैं एक मुसलमान हूँ और इस्लाम के मार्ग पर चलने का भरपूर प्रयास करता हूँ। मेरा प्रश्न यह है कि: यदि मेरे जैसे मुसलमान अचानक औरतों के विशेष (निजी) अंग को देख लें तो इस का क्या हुक्म है ॽ क्या एक मुसलमान व्यक्ति का किसी ऐसी लड़की या औरत को देखना जो उचित हिजाब नहीं पहनती है और बाज़ारों या सड़कों या गलियों या किसी भी स्थान पर चलती है, पाप (गुनाह) समझा जायेगा ॽ मैं असभ्य या कोई और चीज़ बनने का प्रयास नहीं करता हूँ, मैं इस बात की कोशिश करता हूँ कि अपनी दृष्टि को नीची रखूँ और यह कि किसी लड़की की तरफ न देखूँ, लेकिन वास्तव में, मैं इस मामले में नियंत्रण करने से असमर्थ हूँ, और जब मैं कोई गुनाह करता हूँ तो कुंठित हो जाता हूँ।
बिना इच्छा के उसकी निगाह बेपर्दा औरतों पर, उनकी अधिकता के कारण, पड़ जाती है, तो क्या वह पापी है ॽ
प्रश्न: 160554
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
आप के लिए इस बात से अवगत होना उचित है कि जब तक आप इस बात के लालायित हैं कि अपनी कोशिश भर औरतों की तरफ नहीं देखते हैं,किंतु सार्वजनिक स्थानों पर बेपर्दा औरतों की अधिकता के कारण जिस से उन पर निगाहों का पड़ना आदमी के लिए बहुत संभावित होता है,आपकी निगाह अचानक औरतों पर पड़ जाती है,या किसी अन्य कारण से आप की निगाह किसी औरत पर पड़ जाती हैफिर आप इस के बाद अपनी निगाह को नीची रखने का भरपूर प्रयास करते हैंऔर पूरी कोशिशि करते हैं कि हराम चीज़ को न देखें,यदि आप की स्थिति ऐसी ही है जैसाकि उल्लेख किया गया है,तो आप पर इस बारे में – अल्लाह के हुक्म से – कोई आपत्ति नहीं है। इस का प्रमाण जरीर बिन अब्दुल्लाह की रिवायत है कि उन्हों ने कहा: “मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अचानक नज़र के बारे में पूछा तो आप ने मुझे हुक्म दिया कि मैं अपनी निगाह को फेर लूँ।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 2159) ने रिवायत किया है।
नववी रहिमहुल्लाह ने फरमाया: (अचानक नज़र) का अर्थ: यह है कि उसकी निगाह किसी परायी औरत पर बिना इच्छा के पड़ जाये ;तो पहली बार में इस पर कोई गुनाह नहीं है,और उसके ऊपर अनिवार्य है कि तुरंत अपनी निगाह को फेर ले,यदि वह निगाह को टिकाये रखता है तो इस हदीस के आधार पर वह पापी होगा,क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे आदेश दिया है कि वह अपनी निगाह को हटा ले (फेर ले),साथ ही अल्लाह तआला का कथन है: قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ “आप मोमिनों से कह दीजिए कि अपनी निगाहों को नीची रखें . . . और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।” शर्ह मुस्लिम (14/139) से समाप्त हुआ।
तथा अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “ऐ अली, एक नज़र के बाद दूसरी नज़र न डालो, क्योंकि पहली नज़र तुम्हारे लिए है और दूसरी नज़र तुम्हारे लिए नहीं है।” इसे तिर्मिज़ी (2701) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ् (7953) में सहीह कहा है।
खत्ताबी रहिमहुल्लाह ने फरमाया:
“पहली नज़र उस के लिए होती है, उस के विरूद्ध नहीं होती है: जब वह अचानक बिना इच्छा के हो या जानबूझ कर न हो, और उस के लिए दूसरी बार नज़र डालना (देखना) जाइज़ नहीं है,और न ही उसके लिए जानबूझ कर देखना जाइज़ है चाहे पहली बार हो या दूसरी बार।” मआलिमुस्सुनन (3/222) से समाप्त हुआ।
इस आधार पर, ऐ सम्मानित भाई! हम आपको नसीहत करते हैं कि अपनी यथाशक्ति अपनी नज़र को नीची रखें और इस पर अल्लाह तआला से मदद मांगें, और महान शरई कारणों में से जो आपकी नज़र को नीची रखने पर आप के मददगार हैं यह है कि आप शादी कर लें, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका मार्गदर्शन किया है।
हम अल्लाह तआला से प्रश्न करते हैं कि आप को हर भलाई की तौफीक़ दे और आप से खुले और छिपे (प्रोक्ष और प्रत्यक्ष) हर फित्ने को दूर कर दे।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर