जिस व्यक्ति को किसी ने गोद ले लिया हो और उसे स्वयं से संबंधित कर लिया हो तो वह क्या करे और क्या उस हराम निसबत -संबंध- से उसका निकाह करना सही है ?
प्रश्न: 160909
मेरी एक सहेली एक ऐसे युवक से शादी करना चाहती है जिसके माता पिता की पिछले वर्ष मृत्यु हो गई, और यह युवक उन दोनों का गोद लिया हुआ बेटा था, उसको गोद लेने वाले बाप ने उसका नाम रखा।
उसने अपने वास्तविक माता पिता को पाने की बहुत कोशिश की ; किंतु कोई फायदा नहीं हुआ ; क्योंकि वह अब इकतीस वर्ष का है।
मेरा प्रश्न यह है कि : यदि उसका लक़ब या उसके परिवार का नाम उसको गोद लेने वाले बाप के अधीन है तो क्या उस नाम से उसका निकाह सही है ?
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसा
और गुणगान केवल
अल्लाह के लिए
योग्य है।
सर्व प्रथम :
गोद लेने का निषेध
क़ुरआन व सुन्नत
और विद्वानों की
सर्वसहमति के साथ
प्रमाणित है,
अतः किसी
के लिए जाइज़ नहीं
है कि वह अपने बाप
के अलावा किसी
अन्य की ओर मंसूब
हो। तथा जो व्यक्ति
– उदाहरण के तौर
पर – किसी अनाथ की
देखरेख का ज़िम्मेदार
है उसके लिए जाइज़
नहीं है कि वह उसे
अपनी तरफ और अपने
क़बीले की तरफ मंसूब
करे,
बल्कि
उसके ऊपर अनिवार्य
है कि वह उसे उसके
बाप की ओर मंसूब
करे। यदि उसके
बाप का पता न हो,
तो उसे अपनी तरफ
भाईचारा या दोस्ती
व वफादारी के तौर
पर मंसूब करे (और
वह गठबंधन की सरपरस्ती
है, गुलामी से
आज़ादी की सरपरस्ती
नहीं है),
और यह ऐसी
चीज़ है जिस पर पारिवारिक
नियमों (पर्सनल
ला) के क्षेत्र
में अमल नही किया
जाता है।
इस युग में आदमी
को प्रमाण पत्र
की आवश्यकता होती
है ताकि वह अपने
जीवन में एक शिक्षार्थी,
एक कार्यकर्ता
और वैवाहिक रूप
से चल सके। तथा
उस आदमी की स्थिति
में जिसे गोद लिया
गया है जिसके बाप
का पता नहीं है
कि उसकी ओर उसे
संबंधित किया जाये
: तो राज्य को चाहिए
कि उसे एक (काल्पनिक)
मुरक्कब नाम की
ओर मंसूब करे,
किसी विशेष
व्यक्ति या किसी
खास क़बीले (जनजाति)
से संबंधित न करे।
तथा गोद लिए गये
व्यक्ति को चाहिए
कि अपने माता पिता
को तलाश करने का
इच्छुक बने,
क्योंकि इस पर
शरई अहकाम और मनोवैज्ञानिक
प्रभाव निप्कर्षित
होते हैं।
तथा जिन बातों
का वर्णन हो चुका
उनके बारे में
तर्कसहित और विद्वानों
के कथनों के साथ
अधिक जानकारी के
लिए : प्रशन संख्या
(126003), (5201),
और (10010) के उत्तर
देखें।
दूसरा :
गोद लिए गए व्यक्ति
की शादी के सही
होने का उसके नाम
को सही करने से
कोई संबंध नहीं
है ;
क्योंकि
निकाह की शर्तें
जिन पर उसका सही
होना निर्भर करता
है वे : पति और पत्नी
का निर्धारण,
पत्नी के सरपरस्त
– ज़िम्मेदार – की
तरफ से ईजाब और
पति की तरफ से स्वीकृति,
पत्नी की सहमति,
और गवाहों की उपस्थिति
या निकाह का एलान,
तथा रूकावटों की
अनुपस्थिति
हैं।
और शादी के इच्छुक
आदमी के नाम का
उस आदमी से संबंधित
होना जिसने उसे
गोद लिया है शादी
की शर्तों में
से किसी शर्त से
नहीं टकराता है,
क्योंकि
शादी के अंदर केवल
यह निर्धारित करना
है कि यह वही विशिष्ट
व्यक्ति है,
उसके बाप के नाम
या उसके खानदान
के नाम की परवाह
किए बिना,
बल्कि यहाँ तक
कि यदि वह शादी
के बाद अपना नाम
बदल दे,
तो
इस से शादी पर कोई
प्रभाव नही पड़ेगा,
क्योंकि
शादी में अपेक्षित
वह व्यक्ति है
जिसका नाम लिया
गया है, उसका नाम
नहीं है।
तथा – महत्व के लिए
– प्रश्न यंख्या
(104588) का उत्तर देखें,
उसके अंदर
‘‘पति पत्नी
के निर्धारण”
के शर्त की व्याख्या
है,
और
उसके अंदर फर्ज़ी
नाम के शादी की
प्रामाणिकता को
प्रभावित न करने
का वर्णन है।
यहाँ हम उस व्यक्ति
को सचेत करना उचित
समझते हैं जिसने
– गलती से या जानबूझकर
या अज्ञानता में
– किसी व्यक्ति
को सरकारी कागज़ात
में अपनी ओर मंसूब
कर लिया है, वह राज्य
के यहाँ इसको शुद्ध
करा ले ; ताकि गोद
लिए गए व्यक्ति
की निस्बत को बदल
दे ;
क्योंकि
इसके न होने पर
ऐसे अहकाम निष्कर्षित
होते हैं जो मीरास
और महरमियत वगैरह
से संबंधित हैं।
यदि वह ऐसा करने
की ताक़त नहीं रखता
है तो गोद लिए गए
व्यक्ति को चाहिए
कि वह स्वयं अपनी
स्थिति का सुधार
कर ले, वह शरई अदालत
के पास जाए ताकि
वह सरकारी विभागों
को संबोधित करके
उसकी स्थिति का
सुधार करे और उसके
लिए ऐसा दस्तावेज़
निकालने को कहे
जिसमें उसका मुरक्कब
नाम हो, जिसमें
वह किसी विशेष
व्यक्ति की ओर
मंसूब न हो,
और संभव
है कि पहला नाम
वैध नामों में
कोई भी नाम हो और
दूसरा नाम और उसके
बाद वाला नाम ऐसा
हो जिसके द्वारा
अल्लाह की इबादत
होती है,
जैसे – अब्दुल्लाह,
अब्दुल
करीम।
शैख अब्दुल अज़ीज़
बिन बाज़ रहिमहुल्लाह
–
अल्लाह उन पर
दया करे – ने
फरमाया :
“और
उसका शरई नामों
मे से कोई नाम रखे
जैसे – अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल्लाह,
अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल्लतीफ,
अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल करीम,
सभी लोग
अल्लाह के बंदे
हैं,
ताकि
स्कूलों में उसे
हानि न पहुँचे,
तथा उसे
कमी,
संकोच
और हानि न पहुंचे।
उद्देश्य यह है
कि : उसका अल्लाह
की इबादत वाला
नाम रखे, जैसे – अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल करीम,
अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल्लतीफ,
अब्दुल्लाह
बिन अब्दुल मलिक,
और इसके
समान अन्य नाम,
और यही -इन
शा अल्लाह- सही
होने के अधिक निकट
है,
या
उसका ऐसा नाम रखे
जो महिलाओं और
पुरूषों दोनों
के लिए योग्य हो,
यह भी अधिक
सुरक्षित हो सकता
है ; क्योंकि
उसे उसकी माँ की
ओर मंसूब किया
जायेगा,
यदि उसका ऐसा नाम
रख दिया जो पुरूषों
और महिलाओं दोनों
के लिए उचित है
जैसे कि कहे : अब्दुल्लाह
बिन अतिय्या बिन
अतिय्यतुल्लाह,
अब्दुल्लाह
बिन हिबतुल्लाह, क्योंकि
‘‘हिबतुल्लाह”, ‘‘अतिय्यतुल्लाह”
पुरूषों और महिलाओं
दोनों के लिए उचित
है।”
“फतावा
नूरून अलद-दर्ब”
(कैसिट न. 83) से समाप्त
हुआ।
यदि उसके लिए सरकारी
कागज़ात में ऐसा
करना दुर्लभ हो
जाए,
तो
कम से कम जो चीज़
उसके ऊपर अनिवार्य
है वह यह है कि वह
अपने दैनिक जीवन
में इसे लागू करे,
इस प्रकार कि वह
अपने संबंधियों
और आस पास के लोगों
के बीच अपने नसब
(वंशज) की वास्तविकता
को प्रकाशित कर
दे,
ताकि
उसका नसब किसी
दूारे के नसब से
न मिल जाए,
तथा महारिम
(वे औरतें
जिनसे उसका
विवाह हराम
है) और मीरास और
इसी तरह अन्य अहकाम
उसके उपर और उसके
आस पास के लोगों
पर संदिग्ध न हो
जाएं, चुनांचे
अवास्तविक नसब
के आधार पर वह या
उसके बेटे ऐसे
व्यक्ति से मिल
जाएं जिनसे उनका
मिलना वैध नहीं
है,
और
वह उस व्यक्ति
का वारिस बन जाए
जिसने उसे गोद
लिया है,
या वास्तविक नसब
से उसके रिश्तेदार
उस व्यक्ति के
वारिस बन जायें, इसके
अलावा अन्य अहकाम
जो उस गलत नसब पर
निष्कर्षित होते
हैं।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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