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4,92030/राबी प्रथम/1433 , 22/फ़रवरी/2012

उनके माता पिता ने अपनी मृत्यु से पूर्ण एक विशिष्ट तरीक़े से मृत्यु संपत्ति को विभाजित करने की वसीयत की तो क्या उनके लिए उसका पालन करना अनिवार्य है ॽ

Pertanyaan: 161164

पिछले वर्ष मेरी माँ का देहांत हो गया, और उस समय हमने मृत्यु संपत्ति को विभाजित करना नहीं चाहा और हमने हर चीज़ अपने पिता के अधिकार अधीन कर दिया . . किंतु मेरे पिता जी की भी 6 ज़ुलहिज्जा को मृत्यु हो गई।

हम तीन बहनें और एक भाई हैं, मेरी माँ ने आदेश दिया था कि हम लड़कियों को पूरा सोना दे दिया जाए जो उन्हों ने छोड़ा है और मेरा भाई घर ले ले, और इस तरह मृत्यु संपत्ति -उनकी समझ के अनुसार- बराबरी के साथ विभाजित हो जायेगी . . . अब हम नहीं जानते कि हम क्या करें . . . ! विरासत को शरीअत के अनुसार विभाजित करें या अपने माता पिता की इच्छा के अनुसार विभाजित करें ॽ कृप्या इस मामले को स्पष्ट करें, अल्लाह आप को अच्छा बदला दे।

Teks Jawaban

Puji syukur bagi Allah, dan salam serta berkat atas Rasulullah dan keluarganya.

सभी प्रकारकी प्रशंसा औरगुणगान केवल अल्लाहके लिए योग्य है।

अगर माता औरपिता ने अपनी संपत्तिको अपने जीवन मेंविभाजित नहीं कियाहै,इस प्रकारकि हर व्यक्तिअपने हिस्से कोले ले और मालिकोंके समान उसमेंव्यवहार करे,तो उन्होंने जो बात कही हैवह वसीयत समझीजायेगी,और किसीवारिस के लिए वसीयतको शेष वारिसोंकी अनुमति के बिनालागू नहीं कियाजायेगा।

यदि सभी वारिसवसीयत से सहमतहैं,और वे व्यस्कहैं और समझबूझरखते हैं तो इसमेंकोई समस्या नहींहै,और यदि आपलोग मीरास को शरीअतके अनुसार विभाजितकरना चाहें तोआप लोगों को इसका अधिकार है,और आपकेलिए वसीयत को लागूकरना अनिवार्यनहीं है क्योंकिमौलिक रूप से किसीवारिस के लिए वसीयतजाइज़ नहीं है,और यदिऐसा होता है तोवारिसों की सहमतिके बिना वहलागू नहीं की जायेगी,क्योंकिअबू दाऊद (हदीससंख्या : 2870), तिर्मिज़ी (हदीससंख्या : 2120),नसाई (हदीस संख्या: 4641) और इब्ने माजा(हदीस संख्या : 27137)ने अबू उमामा सेरिवायत किया हैकि उन्हों ने कहाकि मैं ने अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लाम को फरमातेहुए सुना : “अल्लाह तआलाने हर हक़ वाले कोउसका हक़ दे दियाहै, अतः किसी वारिसके लिए वसीयत करनाजाइज़ नहीं है।” इस हदीस कोअल्बानी ने सहीहअबू दाऊद में सहीकहा है।

तथा दारक़ुतनीने इब्ने अब्बासकी हदीस से इस शब्दके साथ रिवायतकिया है : “किसी वारिसके लिए वसीयत करनाजाइज़ नहीं है सिवायइसके कि वारिसलोग चाहें।” हाफिज़ इब्नेहजर ने बुलूगुलमराम में इसे हसनकहा है।

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