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क्या माँ अपने बेटे का अक़ीक़ा करेगी यदि उसके पिता ने उसे तलाक़ दे दिया है ॽ

प्रश्न: 162811

मेरी एक दोस्त है जिसने इस्लाम स्वीकार किया है किंतु वह अपने गैर मुस्लिम परिवार के साथ रहती है, इस समय वह गर्भवती है और उसके पति ने उसे तलाक़ दे दिया है और एक अन्य देश में रहता है और वह भी मुसलमान है, वह महिला अक़ीक़ा के प्रावधान के बारे में पूछ रही है . . क्या उसके ऊपर अनिवार्य है कि वह अपने नवजात शिशु का अक़ीक़ा करे, और वह यह अक़ीक़ा कैसे करेगी ॽ और क्या वह जनने के बाद बच्चे के कान में अज़ान कहेगी ॽ

उत्तर का पाठ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

अक़ीक़ा एक मुस्तहब (ऐच्छिक) सुन्नत है,वह मुकल्लफ पर वाजिब(अनिवार्य) नहीं है, अतःजिस व्यक्ति ने इस सुन्नत का पालन किया उसे अज्र व सवाब औरप्रतिष्ठा प्राप्त होगी,और जिसने इसका पालन नहीं किया तो उसने कोताहीकी किंतु वह गुनाह का अधिकृत नहीं है (अर्थात उसे गुनाह नहीं मिलेगा),इसी बात की ओर विद्वानोंकी बहुमत गई है,जैसाकि इस का वर्णन प्रश्न संख्या (162021),(20018) और (38197) के उत्तरों में गुज़र चुका है।

दूसरा :

बुनियादी सिद्धांत यह है कि अक़ीक़ा बच्चे केपिता के माल में धर्मसंगत है,उस की माँ के माल में तथा स्वयं बच्चे के मालमें नहीं,क्योंकि अक़ीक़ा की वैधता में वर्णित हदीसों में पिता ही सर्वप्रथम संबोधित है।

किंतु फुक़हा (धर्म शास्त्रियों) का कहना है: पिता के अलावा अन्य व्यक्ति के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों में बच्चे की ओर से अक़ीक़ाकरना जाइज़ है :

1- यदि पिता कोताही करे और अक़ीक़ा करने से उपेक्षाकरे।

2- यदि कोई व्यक्ति पिता से यह अनुमति मांग ले कि वह अक़ीक़ा मेंउसकी ओर से प्रतिनिधित्व करेगा और वह उसे अनुमति प्रदान कर दे।

इस पर उन्हों ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमासे प्रमाणित हदीस से दलील पकड़ी है,उन्हों ने कहा : “अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हसन और हुसैनरज़ियल्लाहु अन्हुमा की ओर से दो दो मेढ़ों का अक़ीक़ा किया।” इसे नसाई (हदीस संख्या : 4219) ने रिवायत किया है और अल्बानीने “सहीह नसाई” में सहीह कहा है।

उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमका अपने नवासों हसन और हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हुमा की ओर से अक़ीक़ा करना इस बात का प्रमाणहै कि बाप के अलावा कोई अन्य निकट संबंधी अक़ीक़ा कर सकता है यदि वह उसकी अनुमति और सहमतिसे हो।

हाफिज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने हदीस : “हर बच्चा अपने अक़ीक़ा का बंधक होता है,जिसे उस के जन्म के सातवेंदिन बलिदान किया जायेगा, उस का सिर मूँडा जायेगा और उसका नाम रखा जायेगा।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3838)और अल्बानी ने “सहीह अबू दाऊद” में सहीह कहा है – कीव्याख्या करते हुए फरमाया :

हदीस का शब्द “युज़्बहो” मब्नी मज्हूल हैजिस से ज्ञात होता हैकि ज़ब्ह करने वाले को निर्धारित नहीं किया गया है, और शाफेइया के निकट वह व्यक्ति निर्धारितहै जिस के ऊपर बच्चे का खर्च अनिवार्य है, और हनाबिला के यहाँ पिता निर्धारित है सिवायइसके कि उसकी मौत या मना करने के कारण यह संभावित न हो।

राफई ने कहा: गोया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम के हसन और हुसैन की ओर से अक़ीक़ा करने की हदीस की तावील की गयी है।

नववी ने कहा: इस बात की संभावना है कि उनकेमाता पिता तंगदस्त रहे हों, या आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पिता कीअनुमति से अनुदान किया हो,या हदीस के शब्द “अक़्क़ा” (अक़ीक़ा किया) से अभिप्रायहै “अमरा” (अक़ीक़ा का हुक्म दिया), या यह कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमके खसाइस (विशिष्टताओं) में से है,जैसाकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनीउम्मत के उन लोगों की तरफ से क़ुर्बानी की जिन्हों ने क़ुर्बानी नहीं की थी,और कुछ लोगों ने इसेआप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खसाइस में से शुमार किया है।” फत्हुल बारी (9/595) से संपन्नहुआ।

सारांश यह कि:

माँ के ऊपर बच्चे की ओर से अक़ीक़ा करना अनिवार्यनहीं है, बल्कि यह केवल उस के लिए मुस्तहब (ऐच्छिक) है यदि पिता उस से उपेक्षा करताहै, या पिता का ज़ब्ह करना उस के दूर होने या जन्म के बारे में अज्ञानता इत्यादि केकारण असंभव हो जाए, और अल्लाह तआला उसके लिए (अर्थात माँ के लिए) अज्र व सवाब लिखेगा।

कृपया उत्तर संख्या : (71161)देखिये।

तीसरा :

जहाँ तक बच्चे के कान में अज़ान कहने का प्रश्नहै तो इसके बारे में कोई हदीस सहीह (प्रमाणित) नहीं है,कुछ विद्वानों ने इसेमुस्तहब कहा है। इसका वर्णन उत्तर संख्या: (136088) में हो चुका है।

इमाम मालिक रहिमहुल्लाह ने इस काम के मुस्तहबन होने को स्पष्ट रूप से वर्णन किया है।

यदि हम बच्चे के कान में अज़ान देने की वैधताऔर धर्मसंगत होने की बात कहें जैसाकि शाफेईया वगैरह इसकी ओर गए हैं, तो दोनों में सेप्रत्यक्ष और स्पष्ट कथन इन-शा-अल्लाह यह है कि महिला के लिए, चाहे वह उसकी माँ याअन्य मुसलमान औरत हो,जाइज़ है कि वह ऐसा कर सकती है (अर्थात अज़ानदे सकती है),उन विद्वानों के विपरीत जिन्हों ने यह शर्त लगाई है कि यह कामआदमी ही करेगा,जैसाकि नमाज़ के लिए अज़ान का मामला है।

शब्रामलसी शाफेई रहिमहुल्लाह ने कहा :

उनका कथन (और अज़ान देना सुन्नत है) अर्थात चाहेकिसी महिला की ओर से ही हो,क्योंकि यह ऐसा अज़ान नहीं है जो केवल मर्दोंका काम है,बल्कि उसका उद्देश्य तबर्रूक (आशीर्वाद) के लिए मात्र अल्लाहका स्मरण है।” निहायतुल मुहताज (8/149) पर उनके हाशिया से संपन्न हुआ।

तथा “अल-मनहज” पर “अश्शोबरी”के हाशिया (हाशियतुश्शोबरी अलल मनहज) में आया है कि नवजात शिशुके कान में अज़ान कहने में पुरूष के होने की शर्त नहीं है,और इसी के अनुकूल वहबात भी है जिसका कुछ मशाइख़ ने समर्थन किया है कि नवजात शिशु के कान में दाई (धात्री)के अज़ान कहने से भी सुन्नत प्राप्त हो जाती है।” तोहफतुल मुहताज (1/461) पर तबलावी के हाशियासे संपन्न हुआ।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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