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ऐसी चीज़ बेचना जो आपके पास नहीं है

प्रश्न: 169750

व्यापार के इस तरीक़े का क्या हुक्म है? उदाहरण के लिए : कोई व्यक्ति 100 दिनार में मोबाइल फोन बेचने के लिए विज्ञापन देता है। मैं यह विज्ञापन इंटरनेट पर डाल देता हूँ। एक व्यक्ति मुझसे इंटरनेट पर पूछता है कि क्या मैं इसे 90 दीनार में बेचने के लिए सहमत हूँ। फिर मैं उस व्यक्ति से संपर्क करता हूँ जिसने विज्ञापन दिया है और उसे 80 दीनार की पेशकश करता हूँ, तो वह मुझे फोन बेचने के लिए सहमत हो जाता है।

फिर मैं उस व्यक्ति से संपर्क करता हूँ जिसने 90 दीनार में खरीदने की पेशकश की थी और उसकी क़ीमत से सहमत हो जाता हूँ। फिर मैं उसे 80 में खरीदता हूँ और 90 में बेच देता हूँ। इस प्रकार मैं 10 दीनार का लाभ कमाता हूँ।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

यदि प्रश्नकर्ता उस व्यक्ति को, जो उससे खरीदना चाहता है, तब तक फोन नहीं बेचता है, जब तक कि वह उसे खरीद कर अपने क़ब्ज़े में नहीं ले लेता, फिर उसके बाद उसे बेचता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

लेकिन अगर वह फोन को, उसके पहले मालिक से उसकी खरीद पूरी करने और अपने क़ब्ज़े में लेने से पहले बेच देता है, तो व्यापार का यह तरीक़ा जायज़ नहीं है; क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए उस चीज़ को बेचना जायज़ नहीं है जो उसके स्वामित्व में नहीं है। तथा जो कुछ उसने खरीदा है, उसके लिए उसे तब तक बेचना जायज़ नहीं है, जब तक कि वह उसे पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में न कर ले।

हकीम बिन हिज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने कहा : मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा : एक आदमी मेरे पास आता है और मुझसे वह चीज़ बेचने के लिए कहता है जो मेरे पास नहीं है। क्या मैं उसके लिए उसे बाज़ार से खरीद लूँ और फिर उसे बेच दूँ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो तुम्हारे पास नहीं है, उसे मत बेचो।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 1232), नसाई (हदीस संख्या : 4613), अबू दाऊद (हदीस संख्या : 3503), इब्ने माजा (हदीस संख्या : 2187) और अहमद (हदीस संख्या : 14887) ने रिवायत किया है। तथा अलबानी ने इरवाउल-ग़लील (हदीस संख्या : 1292) में इसे सहीह कहा है।

ताऊस से वर्णित है, वह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत करते हैं कि “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाद्य पदार्थों को तब तक बेचने से मना किया जब तक कि आदमी उसे पूरी तरह से अपने क़ब्ज़े में न कर ले।” मैंने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से पूछा : ऐसा क्यों हैॽ तो उन्होंने कहा : क्योंकि यह तो दिरहम (पैसे) के बदले दिरहम (पैसे) का बेचना हुआ, जबकि खाद्य पदार्थ की डिलीवरी विलंबित होती है।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 2132) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1252) ने रिवायत किया है।

इब्ने हजर फत्हुल–बारी (4/349) में कहते हैं : इसका मतलब यह है कि उन्होंने इस निषेध के कारण के बारे में पूछा। तो इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने उत्तर दिया कि यदि खरीदार ने उसे अपने क़ब्ज़े में लेने से पहले (दूसरे को) बेच दिया, जबकि बेचा गया सामान अभी विक्रेता ही के हाथ में है, तो यह ऐसा है जैसे उसने दिरहम को दिरहम के बदले बेचा है। इसका स्पष्टीकरण सहीह मुस्लिम में वर्णित सुफयान की रिवायत से होता है, जिसे उन्होंने इब्ने ताऊस से रिवायत किया है। ताऊस ने कहा : मैंने इब्ने अब्बास से पूछा : ऐसा क्यों है? उन्होंने कहा : क्या आप नहीं देखते कि लोग सोने के बदले अनाज का सौदा करते हैं, जबकि अनाज की डिलीवरी में देरी होती है। अर्थात् अगर उसने, उदाहरण के लिए, एक सौ दीनार में खाद्य पदार्थ खरीदा, और उसने विक्रेता को उसका भुगतान कर दिया, लेकिन उससे खाद्य पदार्थ अपने क़ब्ज़े नहीं लिया, फिर उसने उस खाद्य पदार्थ को एक सौ बीस दीनार में किसी और को बेच दिया और उससे क़ीमत प्राप्त कर लिया, जबकि अनाज अभी (पहले) विक्रेता के हाथ ही में है। तो मानो उसने एक सौ दीनार को एक सौ बीस दीनार में बेचा। इस व्याख्या के आधार पर, यह निषेध खाद्य पदार्थ के लिए विशिष्ट नहीं है। इसी लिए इब्ने अब्बास ने कहा : मैं हर चीज़ को इसी तरह समझता हूँ। और इसका समर्थन ज़ैद बिन साबित की हदीस द्वारा होता है : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सामान को उसी स्थान पर बेचने से मना किया है, जहाँ उसे खरीदा गया है जब तक कि व्यापारी उसे अपने निवास स्थानों पर न ले आएँ।” इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है और इब्ने हिब्बान ने सहीह कहा है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

अल्लामा अल-ऐनी ने “उम्दतुल-क़ारी” (11/250) में कहा : “इसका मतलब यह है कि : वह एक दिरहम के बदले किसी आदमी से कुछ समय के लिए कोई अन्न खरीदे, फिर उसे अपने क़ब्ज़े में लेने से पहले उससे या किसी और से, उदाहरण के लिए, दो दिरहम में बेच दे। तो यह जायज़ नहीं है; क्योंकि यह वास्तव में : दिरहम (पैसे) को दिरहम (पैसे) के बदले बेचना है, जबकि अन्न अनुपस्थित है। इसलिए मानो उसने अपना वह दिरहम जिससे उसने खाद्यान्न खरीदा था, उसे दो दिरहम के बदले बेचा है। अतः यह रिबा (सूद) है, क्योंकि यह एक अनुपस्थित चीज़ को एक उपस्थित चीज़ के बदले बेचना है। इसलिए यह सही (मान्य) नहीं है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

शैख़ इब्ने बाज़ ने कहा : “एक मुसलमान के लिए नकद या क्रेडिट (उधार) पर कोई सामान बेचना जायज़ नहीं है जब तक कि वह उसका मालिक न हो और उसपर क़ब्ज़ा न कर ले; क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हकीम बिन हिज़ाम से कहा : “जो तुम्हारे पास नहीं है, उसे मत बेचो।” तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में फरमाया : “उधार लेना और बेचना एक साथ जायज़ नहीं है, और न उस चीज़ को बेचना जायज़ है जो आपके पास है ही नहीं।” इसे पाँच इमामों (अबू दाऊद, नसाई, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा और अहमद) ने सहीह इस्नाद के साथ रिवायत किया है।

इसी तरह, जो व्यक्ति इसे खरीदता है, उसे इसे बेचने का अधिकार नहीं है जब तक कि वह भी इसे अपने क़ब्ज़े में न ले ले; उपर्युक्त दोनों हदीसों के आधार पर, तथा उस हदीस के आधार पर जिसे इमाम अहमद और अबू दाऊद ने ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है (और इब्ने हिब्बान और हाकिम ने सहीह कहा है) कि उन्होंने कहा : “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सामान को उसी स्थान पर बेचने से मना किया है, जहाँ उसे खरीदा गया है जब तक कि व्यापारी उसे अपने ठिकानों पर न ले आएँ।” तथा उस हदीस के कारण जिसे बुखारी ने अपनी सहीह में इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के समय काल में बिना नाप के खाद्यान्न खरीदने वालों को देखा है कि उन्हें उसे अपने स्थानों पर ले जाने से पहले बेचने पर दंडित किया जाता था।” तथा इस अर्थ की और बहुत-सी हदीसें हैं।”

“मजमूओ फ़तावा अश-शैख इब्ने बाज़” (19/64) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।  

स्रोत

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