क्या हमारे लिए “या रसूलल्लाह” कहना जायज़ है ?
“या रसूलल्लाह” कहने का हुक्म
प्रश्न: 1741
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हरप्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
गैरूल्लाह(अर्थात अल्लाह के अलावा किसी दूसरे) को पुकारना जायज़ नहीं है, न तो खुशहाली और समृद्धिमें और न ही तंगी और संकट के समय, यद्यपि जिसेपुकारा जा रहा है उसकी प्रतिष्ठा और पद कितना ही बड़ा क्यों न हो, चाहे वह निकटवर्ती ईश्दूत, या अल्लाह के फरिश्तों में से कोई फरिश्ता ही क्यों न हो ; क्योंकि दुआ (प्रार्थना) इबादत (पूजा) है।
नोमानबिन बशीर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत करते हैं कि आप नेफरमाया : “दुआ ही इबादत है।” फिर आप ने यह आयत पढ़ी :
وقال ربكم ادعوني أستجبلكم إن الذين يستكبرون عن عبادتي سيدخلون جهنم داخرين(غافر : 60).
“और तुम्हारे पालनहार ने फरमाया कि तुम मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआ को क़बूल करूँगा। निःसंदेह जो लोग मेरी इबादतसे तकब्बुर (अहंकार) करते हैं वे अपमानितहोकर जहन्नम में जायेंगे।” (सूरत गाफिर : 60), इस हदीस को तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2895) और इब्ने माजा (हदीससंख्या : 3818) ने रिवायत किया है। और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या :2370) में सही कहा है।
इबादतअल्लाह तआला का शुद्ध और एकमात्र अधिकार है, अतः उसे दूसरे की तरफ फेरना जायज़ नहींहै। इसीलिए मुसलमानों की इस बात पर सर्वसहमति है कि जिसने गैरूल्लाह (अल्लाह के अलावाकिसी अन्य) को पुकारा, वह मुशरिक(अनेकेश्वरवादी) है।
शैखुलइस्लाम इब्ने तैमिया रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
“जो व्यक्ति फरिश्तों और ईश्दूतों को मध्यस्थ बनाकर उन्हें पुकारने,उन पर भरोसा करने और उनसे लाभ की प्राप्ति और हानि को हटाने का प्रश्न करने लगा, उदाहरण के तौर पर वह उनसे पापों की क्षमा, दिलों का मार्गदर्शन, आपदाओं व संकटों का मोचन और अकाल की आपूर्ति का प्रश्न करताहै तो वह मुसलमानों की सर्वसहमति के साथ काफिर है।”
“मजमूउल फतावा” (1/124)
इब्नुलक़ैयिम रहिमहुल्लाह ने फरमाया :
औरशिर्क के भेदों में से: मरे हुए लोगों से आवश्यकताओं का मांगना, उनसे आपदाओं में सहायता के लिए अनुरोध करना और उनकी ओर मुतवज्जेहहोना है, और यह मूलशिर्क (अनेकेश्वरवाद) है।” फत्हुल मजीद (पृष्ठ: 145).
इसीलिएअल्लाह तआला ने अपने अलावा को पुकारने वाले का वर्णन इस तरह से किया है कि उससे बढ़करपथभ्रष्ठ कोई नहीं, अल्लाह तआलाने फरमाया :
وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنْيَدْعُو مِنْ دُونِ اللَّهِ مَنْ لا يَسْتَجِيبُ لَهُ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ وَهُمْعَنْ دُعَائِهِمْ غَافِلُونَ وَإِذَا حُشِرَ النَّاسُ كَانُوا لَهُمْ أَعْدَاءً وَكَانُوابِعِبَادَتِهِمْ كَافِرِينَ [الأحقاف : 5-6]
“और उस व्यक्ति से बढ़कर गुमराह दूसरा कौन होगा जो अल्लाह के सिवाऐसों को पुकारता है, जो क़ियामततक उसकी दुआ न क़ुबूल कर सकें बल्कि उनके पुकारने से मात्र गाफिल हों। और जब लोगों कोजमा किया जायेगा तो ये उनके दुश्मन हो जायेंगे और उनकी इबादत से साफ इनकार कर देंगे।” (सूरतुल अह़क़ाफ़ : 5-6).
तथागैरूल्लाह को कैसे पुकारा जा सकता है जबकि अल्लाह तआला ने उनके बेबस (असमर्थ) होनेकी सूचना अपने इस कथन से दी है:
وَالَّذِينَ تَدْعُونَمِنْ دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِنْ قِطْمِيرٍ إِنْ تَدْعُوهُمْ لا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْوَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْوَلا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ [فاطر : 13-14].
“और जिन्हें तुम उसके अतिरिक्त पुकारते हो वे तो खजूर की गुठलीके छिलके पर भी अधिकार नहीं रखते। अगर तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनतेही नही, और अगर (मानलिया कि) सुन भी लें तो क़बूल नहीं करेंगे, बल्कि क़ियामत के दिन तुम्हारे शिर्क को साफ़ नकार देंगे। और आपको कोई भी (अल्लाह सर्वशक्तिमान) जैसा जानकार ख़बरें न देगा।” (सूरत-फातिर : 13-14)
शैखअब्दुर्रहमान बिन हसन आलुश्शैख़ ने फरमाया :
अल्लाहतआला ने अपने अलावा पुकारे जाने वाले लोगों जैसे – फरिश्तों, ईश्दूतों, मूर्तियों आदि की स्थितियों केबारे में ऐसी सूचना दी है जो उनकी असमर्थता, कमज़ोरी व बेबसी को दर्शाती है और यह कि उनके अंदर वे कारण नहींपाये जाते हैं जो पुकारे जाने वाले में होने चाहिए, और वह स्वामित्व (मालिक होना), दुआ व पुकार को सुनना और उसकेक़बूल करने पर शक्ति व सामर्थ्य का होना है।” अंत हुआ। “फत्हुल मजीद” (पृष्ठ : 158).
तथापैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कैसे पुकारा जा सकता है, जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने आपको यह कहने का आदेश दिया है :
قُلْإِنِّي لا أَمْلِكُ لَكُمْ ضَرًّا وَلا رَشَدًا
“आप कह दीजिए कि मैं तुम लोगों के लिए किसी हानि और लाभ का अधिकारनहीं रखता।” (सूरतुल जिन्न : 21)
तथानबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जब सवाल करो तो अल्लाह ही से सवाल करो, और जब सहायता मांगो तो अल्लाह ही से सहायता मांगो।” इस हदीस को तिर्मिज़ी(हदीस संख्या : 2516) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 2043) में इसे सही कहा है।
इसीलिएउस व्यक्ति के ग़लत होने में कोई संदेह नहीं जिसने अपने इस कथन के द्वारा अल्लाह केपैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रशंसा की है :
ऐ सबसे सम्मानित प्राणि वर्ग ! मेरे लिए आप के सिवाय कोई दूसरानहीं जिसका मैं व्यापक आपदाओं के उतरने के समय शरण लूँ।
तथामहान विद्वानों ने उसे इस बारे में ग़लत क़रार दिया है :
शैखअब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ रहिमहुल्लाह ने “फत्हुल मजीद” नामी किताब पर टिप्पणी करते हुए “बोसीरी” के बुर्दा नामी क़सीदा(काव्य) के संबंध में जिसके अंदर यह कथन मौजूद है, फरमाया :
नबीसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बुखारी व मुस्लिम की रिवायत की हुई हदीस में फरमाया :
“मेरी बढ़ा चढ़ा कर तारीफ न करो (कि मुझे हद से आगे बढ़ादो) जिसप्रकार कि ईसाईयों ने ईसा बिन मर्यम की तारीफ में अतिशयोक्ति करके (उन्हें हद से आगेबढ़ा दिया, यहाँ तक किउनको अल्लाह का बेटा बना डाला)। मैं तो अल्लाह का बन्दा और उसका पैग़म्बर हूँ।”
आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सम्मान और आप से मोहब्बत तो आपकी सुन्नत का पालन, आपके धर्म को स्थापित करके और हर उस खुराफात (मिथ्या) का निराकरणकरके होता है जिसे जाहिलों ने उसके साथ जोड़ दिया है, क्योंकि अक्सर लोगों ने इसे त्याग कर दिया है, और इस अतिशयोक्ति और बढ़ा चढ़ा कर तारीफ़ में व्यस्त हो गए हैंजिसने उन्हें इस महा पाप शिर्क में ढकेल दिया है।
“फत्हुल मजीद” (पृष्ठः 155).
तथायह बात कहीं भी ज्ञात नहीं है कि किसी एक सहाबी ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमसे संकट में मदद मांगी हो या पैगंबर को पुकारा हो, और न ही किसी विश्वसनीय विद्वान से इस बात को उद्धृत किया गयाहै, हाँ पथभ्रष्ट लोगों की भ्रांतियाँऔर मिथ्यायें अवश्य पाई जाती हैं।
अतःजब आपको कोई मामला पेश आए तो आप : “या अल्लाह” कहें, क्योंकि वही दुआओं को क़बूल करता है, परेशानियों और संकटोंको दूर करता है, मामलात कोउलटता पलटता और नियंत्रण करता है। तथा अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर