जरीर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से (किसी महिला पर) अचानक नज़र पड़ने के बारे में पूछा, तो आपने मुझे अपनी निगाह फेर लेने का आदेश दिया।” इसे तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और उन्होंने कहा : यह एक हसन सहीह हदीस है।” (सुनन तिरमिज़ी, हदीस संख्या : 2700)।
इस हदीस की व्याख्या करते हुए मुबारकपूरी ने कहा : “हदीस के शब्द : (अचानक) का मतलब है कि उसकी नज़र एक गैर-महरम (परायी) महिला पर अचानक बिना इरादे के पड़ जाए।
“(तो आपने मुझे अपनी निगाह फेर लेने का आदेश दिया।) इसका मतलब यह है कि मैं दूसरी बार न देखूँ। क्योंकि पहली नज़र यदि अपनी इच्छा से नहीं थी, तो उसे माफ़ कर दिया जाएगा। यदि वह निरंतर देखता रहा, तो गुनाहगार होगा। इसी अर्थ में अल्लाह का यह फरमान है :
قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ
سورة النور: 30
“(ऐ नबी!) आप ईमान वाले पुरुषों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें।” (सूरतुन-नूर : 30)
तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “ऐ अली! एक नज़र पड़ने के बाद दोबारा मत देखो, क्योंकि तुम्हारे लिए पहली नज़र अनुमेय (क्षमा) है और दूसरी अनुमेय (माफ़) नहीं है।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2701) ने रिवायत किया है और वह सहीहुल-जामे (हदीस संख्या : 7953) में है।
“अत-तोहफा” के लेखक ने कहा : “हदीस के शब्द : “एक नज़र पड़ने के बाद दोबारा न देखो।” अर्थात एक नज़र पड़ने के पीछे दूसरी नज़र न पड़ाओ, और पहली नज़र के बाद दूसरी नज़र न डालो। “क्योंकि पहली नज़र तुम्हारे लिए अनुमेय है।” अर्थात् अगर पहली नज़र अनजाने में पड़ी है। “और दूसरी तुम्हारे लिए नहीं है।” अर्थात् दूसरी नज़र क्योंकि वह आपकी इच्छा से है। इसलिए वह तुम्हारे ख़िलाफ गिनी जाएगी।”
इस प्रकार आपके लिए यह स्पष्ट हो जाता है कि एक गैर-महरम महिला को जानबूझकर देखना, इसी तरह अचानक नज़र पड़ने के बाद निरंतर देखते रहना हराम (निषिद्ध) है, उसके शरीर के किसी भी स्थान को देखना जायज़ नहीं है, चाहे वह आपकी आँखों में सुंदर हो या नहीं, चाहे वह यौन इच्छा को भड़काए या नहीं, चाहे उसके साथ बुरा विचार या आनंद हो या नहीं।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें और आपको सभी हराम कामों से बचाए। अल्लाह ही सीधे रास्ते का मार्गदर्शन करने वाला है।