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वुज़ू में अपव्यय करने से निषेद्ध के माध्यम से इस्लाम की अच्छाईयों का वर्णन

प्रश्न: 178636

मैं एक छात्र हूँ, इंजीनियरिंग और जल प्रबंधन का अध्ययन कर रहा हूँ। मैं पानी के दुरूपयोग की समस्या के समाधान के तरीक़े और विधि को जानने की दिलचस्पी रखता हूँ, उदाहरण के तौर पर वुज़ू जो कि ढेर सारे पानी के अपव्यय का कारण है।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

उत्तर:

हरप्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।

इस्लामकी सुंदरता व गुणोंका प्रदर्शन करना,उसकेऊँचे पद और उसकीशरीअत (धर्म-शास्त्र)और उसके प्रावधानका पालन करने सेभलाई प्राप्त होनेका उल्लेख करनाजरूरी है।

आदमीदीन की कोई बातनहीं पाता है जोपहली नज़र में उसकेलिए आपत्तिजनकप्रकट होती हैमगर उसमें चिंतनकरने और उसके उद्देशऔर अंजाम (अंतिमपरिणाम) के बारेमें गौर करने सेउसके सामने ऐसीचीज़ स्पष्ट होकरआती है जो बिल्कुलउसके विपरीत होतीहै।

तहारतऔर वुज़ू के अंदरपानी के इस्तेमालमें किफायत (मितव्य्यता)से काम लेने परउसकी लालायिताकी दृष्टि से इस्लामके मुद्दे को उठानेके दो पक्ष हैं:

सर्वप्रथम :

उसकाशारीरिक और हार्दिकसफाई व सुथराईकरने पर ध्यानदेना, मोमिन जब हरनमाज़ के लिए वुज़ूकरता है तो अपनेगुनाहों से दिनमें पाँच बार पवित्रताहासिल करता है,और मोमिनजब पाँच बार वुज़ूकरता है और एक अंगपर तीन बार वुज़ूकरता है तो उस सेबेहतर सफाई कोईनहीं है।

नसाई(हदीस संख्या : 103)ने अब्दुल्लाहअस्सनाबही से रिवायतकिया है कि अल्लाहके पैगंबर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “जब मोमिनबंदा वुज़ू करताहै और कुल्ली करताहै तो उसके मुँहसे गुनाह निकलजाते हैं, और जब वहनाक को झाड़ता हैतो उसकी नाक सेगुनाह निकल जातेहैं, जब वह अपनेचेहरे को धोताहै तो उसके चेहरेसे गुनाह निकलजाते हैं यहाँतक कि उसकी दोनोंआँखों की पलकोंके नीचे से (भी) निकलजाते हैं, जब वह अपनेदोनों हाथों कोधोता है तो उसकेदोनों हाथों सेगुनाह निकल जातेहैं यहाँ तक किउसके दोनो हाथोंकी अंगुलियों केनीचे से निकल जातेहैं, जब वह अपनेसिर का मसह करताहै तो उसके सिरसे गुनाह निकलजाते हैं यहाँतक कि उसके दोनोंकानों से (भी) निकलजाते हैं, जब वह अपनेदोनों पैरों कोधोता है तो उसकेदोनों पैरों सेगुनाह निकल जातेहैं यहाँ तक किउसके दोनों पैरोंके नाखून के नीचेसे भी निकल जातेहैं, फिर उसका मस्जिदकी ओर चलकर जानाऔर उसका नमाज़ पढ़नाउसके लिए नफ्ल(अतिरिक्त) हो जातीहै।”इसे अल्बानी नेसहीह नसाई मेंसही कहा है।

नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने वुज़ूऔर नमाज़ के द्वारागुनाहों से शुद्धताऔर पवित्रता प्राप्तकरने के बारे में,मैल-कुचेलऔर गंदगी से पाकसाफ होने का उल्लेखकरते हुए अपनेइस कथन के द्वाराबात की है :

“तुम्हाराक्या ख्याल हैयदि तुम में सेकिसी के दरवाज़ेपर एक नदी हो जिसमेंवह प्रति दिन पाँचबार स्नान करेतो क्या उसके मैलमें से कुछ बाक़ीरहेगा ॽ”लोगोंने कहा : उसके मैलकुचैल में से कुछभी बाक़ी नहीं रहेगा।आप ने फरमाया : “तो यहीपाँच दैनिक नमाज़ोंका उदाहरण है,इनकेद्वारा अल्लाहतआला गुनाहों कोमिटा देता है।”इसे बुखारी(हदीस संख्या : 528)और मुस्लिम (हदीससंख्या : 667) ने रिवायतकिया है।

तोनबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने कितनी अच्छीमिसाल बयान कीहै जिसके द्वाराआप वुज़ू और नमाज़के द्वारा गुनाहोंसे पाक व साफ होनेको, पानी के द्वारामैल-कुचैल और गंदगीसे पाक व साफ होनेके अवलोकन के माध्यमसे स्पष्ट करतेहैं।

दूसरा:

पाकीव सफाई हासिल करनेमें पानी के उपयोगमें किफायत औरमितव्य्यता सेकाम लेना उसमेंअपव्यय न करना(यानी अत्यधिकपानी इस्तेमानन करना): तो यहाँपर इस्लाम के मुद्देको इस एतिबार सेलिया जा सकता हैकि वह हर चीज़ मेंअल्पव्यय करने,खपतके युक्तिकरण,और अपव्ययन करने तथा बेकारमें खर्च न करनेका बुलावा देताहै, अतः हमारा इस्लामके मुद्दे के बारेमें बात करना जबकिहम वुज़ू के पानीमें अल्पव्यय करनेके बारे में बातकर रहें है, इस वस्तुस्थितिसे है कि उसने हरचीज़ के अंदर अल्पव्यय,किफायतऔर सावधानी काआदेश दिया है औरकिसी भी चीज़ केअंदर अतिशयोक्तिन करने का आदेशदिया है, और उसीमें से वुज़ू भीहै।

शैखइब्ने बाज़ रहिमहुल्लाहने फरमाया :

“अल्लाहसर्वशक्तिमानने अपनी महान पुस्तकमें कर्ह आयतेंअवतरित की हैंजिनमें अपव्ययऔर फुज़ूल खर्चीका उल्लेख कियागया है और उनसेरोका गया है, और अपनेखाने, पीने और अन्यसभी प्रकार केखर्चों में अल्पव्ययकरने वालों औरशुद्ध व्यवहारकरने वालों कीप्रशंसा की गईहै।

अतःबेकार में खर्चकरना और अपव्ययकरना वैध नहींहै, और न तो कंजूसीऔर कृपणता ही सहीहै, तथा न ही अतिशयोक्तिऔर न ही जफा। इसतरह अल्लाह नेसभी मामलों मेंमध्यस्थता अपनानेको धर्मसंगत करारदिया है, और उसीमें से अतिशयोक्तिसे निषेद्ध भीहै, चुनाँचे बंदोंको उस से रोका गयाहै, जैसाकि नबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमने फरमाया : “तुम दीनमें गुलू (अतिशयोक्ति)करने से बचो, क्योंकितुम से पूर्व लोगोंको दीन में गुलूने नष्ट कर दिया।’’

तथाअल्लाह सर्वशक्तिमूनफरमाता है:

يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ[سورة النساء : 171]

“ऐ किताबवालो (अर्थात्यहूदियो और ईसाइयो),अपनेदीन में ग़ुलू (अतिशयोक्ति)न करो।”(सूरतुन्निसाः171)

औरअल्लाह तआला काउन्हें मना करनाहमारे लिए भी मनाहीहै, तथा जफा और कोताहीनिषिद्ध है, बल्किअनिवार्य है किहम बिना अतिशयोक्ति(अतिवाद) और जफाके अनिवार्य चीज़ोंको पूरा करें,हरामचीज़ों से बचेंऔर भलाई के कामोंमें जल्दी करें।

गुलू(अतिशयोक्ति) कामतलब है : अल्लाहकी शरीअत में वृद्धिकरना, उदाहरण केतौर पर वह आदमीजिसके लिए शरईवुज़ू पार्याप्त(काफी) नहीं होताहै, बल्कि वह पानीमें अपव्यय करताहै, वह अपने दोनोंहाथों और दोनोंपैरों को तीन बारधोने पर बस नहींकरता है बल्किउस पर वृद्धि करताहै, तो यह अल्लाह कीशरीअत में गुलूका एक प्रकार है,इसीतरह अज़ान में,इसीतरह इक़ामत मेंऔर इसी तरह रोज़ेइत्यादि में करताहै।

अतःशरीअत में वृद्धिकरने को ग़ुलू,इफ्रातऔर बिद्अत कहाजाता है, तथा नमाज़में कमी के द्वाराकोताही करना औरपूरा न करना जफाऔर तफ्रीत कहाजाता है, इसी तरहखर्चों के अंदरभी अपव्यय करनाऔर बेकार में खर्चकरना, तथा कंजूसीऔर कमी करना जायज़नहीं है, बल्किइन सब के दरमियानबेहतरीन और सबसेअच्छा मामला उसकेबीच का है, जैसाकिअल्लाह सर्वशक्तिमानने फरमाया :

وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا [البقرة : 143].

“और इसीतरह हमने तुम्हेंएक मध्यस्थ(बीच की) उम्मत बनायाहै।” (सूरतुलबक़राः 143).

शरीअतहर चीज़ के अंदरमध्यस्थता लेकरआई है, गुलू (अतिशयोक्ति),जफाऔर सख्ती नहीं।अल्लाह सर्वशक्तिमानने फरमाया:

يَا بَنِي آدَمَ خُذُوا زِينَتَكُمْ عِنْدَ كُلِّ مَسْجِدٍوَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلا تُسْرِفُوا إِنَّهُ لا يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ [الأعراف:31].

“ऐ आदमके बेटो,मस्जिद मेंजाने के हरसमय अपनाकपड़ा अपनालो, और खाओपियो और अपव्ययन करो,निःसंदेह जोअपव्यय करतेहैं अल्लाहउनसे महब्बतनहीं करता।” (सूरतुलआराफः 31)

अल्लाहतआला ने ज़ीनत अपनानेका आदेश दिया हैक्योंकि उसमेंसत्रपोशी (जननांगोंका पर्दा) है, तथा उसकेअंदर खूबसूरतीहै, फिर फरमाया : “तक़्वा(ईश्भय) का पोशाकसबसे बेहतर है।”तक़्वाका पोशाक : अल्लाहपर ईमान है, और अल्लाहका तक़्वा : उसकीआज्ञाकारिता,उसकीपसंदीदा चीज़ोंका पालन करके औरउसकी हराम की हुईचीज़ों से उपेक्षाकरके, यह सबसे महानपोशाक है, और यहीतक़्वा का लिबासहै। फिर अल्लाहसर्वशक्तिमानने फरमाया : “खाओ औरपियो और अपव्ययन करो।”खाने और पीने काआदेश दिया क्योंकिइनमें स्वास्थ्यकी रक्षा और सुरक्षाहै, और संरचना की ताक़तहै, क्योंकि खानेऔर पीने को छोड़देना मौत के लिएनेतृत्व करता है,हालांकिऐसा करना जायज़नहीं है, बल्किइतनी मात्रा मेंखाना पीना अनिवार्यहै जिससे स्वास्थ्यकी रक्षा हो सके,और मनुष्यइसके अंदर मध्यस्थताअपनाये ताकि उसकीस्वास्थ्य बनीरहे और उसकी हालतठीक रहे, चुनाँचेवह अधिक न खायेकि उसे बीमारीऔर तृप्ति और अनेकप्रकार के दर्दपैदा हो जाएं,तथाखाने में कोताहीऔर कमी न करे किउसके स्वास्थ्यको हानि पहुँचे,बल्किइन दोनों के बीचका रास्ता आपनाए,इसीलिएअल्लाह ने फरमाया: “औरअपव्यय न करो।”और हरचीज़ के अंदर यहइस्राफ और अपव्ययइस जीवन की बुराईयोंमें से है, अतः मोमिनव्यक्ति अपने सभीमामलों में औसतको बरकरार रखताहै, और ईमान वाली महिलासभी मामलों मेंमियानारवी (मध्यस्थता)अपनाती है।”संक्षेपके साथ अंत हुआ।

“मजमूओफतावा इब्ने बाज़” (4/109-112).

शायदआप ने देखा कि शरीअतने मुसलमानों कोवुज़ू में अल्पव्ययका निर्देश दियाहै, और वह इसका आदेशदेते हुए हर चीज़में अल्पव्यय काआदेश देती है,वह इसकाआदेश देते हुएदिन और रात मेंपाँच बार वुज़ूकरना धर्मसंगतकरार देती है,और हरवुज़ू में वुज़ूके अंगों को तीनबार धोना धर्मसंगतकरती है।

चुनाँचेशरीअत की अच्छाईयाँऔर गुणः हर दो आँखवाले के सामनेस्पष्ट और उजागरहैं: वह सफाई व सुथराईका आदेश देती हैजिससे कोई भी चीज़परोक्ष और प्रत्यक्षमें अच्छी नहींहै, और उसके अंदर अल्पव्ययका और अपव्यय नकरने का आदेश देतीहै, अपने उन सिद्धांतोंऔर मूल सूत्रोंके माध्यम से जोइसका आदेश करने,उस परउभारने और उसेउन मूल सिद्धांतोंकी शाखाओं पर उतारनेके माध्यम से।

हमअल्लाह तआला सेतौफीक़ और शुद्धताका प्रश्न करतेहैं।

स्रोत

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