एक महिला ने अपने पति को रुक़्या (झाड़-फूँक) किया, जबकि उसे उसके बार में कोई ज्ञान नहीं था। और उसके बाद पत्नी बीमार हो गई, उसकी कल्पना में छिपकली जैसी चीजें आती हैं, और उसके बाद उसका तलाक़ हो गया। तो क्या इस रुक़्या का कोई प्रभाव हैॽ
ग़ैर-शरई रुक़्या नुकसान का कारण हो सकता है
प्रश्न: 180492
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
यदि यह रुक़्या शरई रुक़्या था अर्थात अल्लाह की किताब (क़ुरआन) और सुन्नत से प्रमाणित शरई तावीज़ों (अल्लाह की शरण में देने के लिए निर्धारित दुआओं) के द्वारा था, तो उसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। बल्कि वह धर्म संगत और सुन्नत के अनुकूल है, और जो कुछ हुआ उससे इसका कोई संबंध नहीं है।
तथा प्रश्न संख्या (3476 ) का उत्तर देखें।
लेकिन अगर वह ग़ैर-शरई रुक़्या (झाड़-फूँक) था, जैसे कि बिद्अत (नवाचार) या शिर्क (बहुदेववाद) पर आधारित रुक़्या, तो वह एक भ्रष्ट और हानिकारक रुक़्या है जो लाभदायक नहीं है, चाहे वह रुक़्या करने वाले के लिए हो या जिसे रुक़्या किया गया है। खासकर यदि उनमें से कोई किसी प्रकार के शिर्क (बहुदेववाद) या बिद्अत (नवाचार) के कार्य में लिप्त है।
इफ्ता की स्थायी समिति के विद्वानों का कहना है :
“नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुरआन तथा अज़कार एवं दुआओं को पढ़कर रुक़्या करने की अनुमति दी है, जब तक कि वह शिर्क या ऐसे शब्दों पर आधारित न हो, जिसका अर्थ समझ में नहीं आता। क्योंकि इमाम मुस्लिम ने अपनी “सहीह” में औफ़ बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : हम जाहिलिय्यत (इस्लाम पूर्व अज्ञानता) के काल में रुक़्या (झाड़-फूँक) किया करते थे। इसलिए हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, इसके बारे में आपका क्या विचार हैॽ आपने फरमाया : “मुझे अपने झाड़-फूँक (रुक़्या) के शब्द बताओ, क्योंकि रुक़्या में कोई हर्ज नहीं है जब तक कि उसमें शिर्क का कोई तत्व नहीं है।”
विद्वानों ने सर्वसम्मति से सहमति व्यक्त की है कि रुक़्या (झाड़-फूँक) अनुमेय है यदि वह ऊपर उल्लिखित तरीक़े पर है, साथ ही यह अक़ीदा रखा जाए कि वह एक कारण है, जिसका अल्लाह सर्वशक्तिमान के फैसले (तक़दीर) के बिना कोई प्रभाव नहीं है।” “फतावा अल-लज्ना अद-दाईमा” (1/244) से उद्धरण समाप्त हुआ।
जिसने भी एक ग़ैर-शरई (नाजायज़) रुक़्या किया है, उसे अल्लाह के समक्ष उससे तौबा करना चाहिए और सुन्नत से प्रमाणित शरई रुक़्या सीखना चाहिए।
जिस तरह शरई रुक़्या अल्लाह की अनुमति (इच्छा) से आरोग्य का एक कारण हो सकता है, वैसे ही ग़ैर-शरई रुक़्या किसी इनसान के थकान (बीमारी) और विपत्ति से ग्रस्त होने का कारण हो सकता है। अल्लाह तआला का फरमान है :
وَمَا أَصَابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَنْ كَثِيرٍ الشورى : 30
"और तुम्हें जो भी विपत्ति पहुँचती है वह तुम्हारे अपने हाथों की करतूत का (बदला) है, और वह तो बहुत सी बातों को माफ़ कर देता है।" (सूरतुश-शूरा : 30)
हालाँकि, जो कुछ हुआ, उसकी वास्तविकता केवल अल्लाह ही जानता है, और कोई भी निश्चितता के साथ नहीं कह सकता कि : यह किस चीज़ की वजह से हुआ, क्या इस रुक़्या के कारण हुआ या किसी अन्य कारण से, अथवा यह अल्लाह की ओर से मात्र एक परीक्षण है। बंदे के लिए अनिवार्य यह है कि वह अपने सभी पापों के लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान से तौबा (पश्चाताप) करे। क्योंकि बंदे का पाप ही उसे पहुँचने वाली विपत्तियों की जड़ (मूल कारण) है। तथा उसे अपने ऊपर आई हुई तकलीफ़ को दूर करने में अल्लाह का ज़रूरतमंद होना चाहिए। उसके साथ ही इलाज के कारणों (चिकित्सा के उपायों) और शरई रुक़्या (झाड़-फूँक, दम) को अपनाना चाहिए। इसी तरह बंदे के लिए उसकी विभिन्न स्थितियों में निर्धारित अज़कार का नियमित रूप से पाठ किया जाना चाहि, जैसे कि सुबह और शाम, सोने और कपड़े पहनने, घर में प्रवेश करने और उससे बाहर निकलने के अज़कार एवं दुआएँ। क्योंकि बंदा नियमित रूप से अल्लाह तआला का ज़िक्र करने से बढ़कर किसी अन्य चीज़ के द्वारा शैतान से सुरक्षा और संरक्षण प्राप्त नहीं कर सकता।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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