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शिक्षा के लिए दिए गए ऋण का हुक्म

السؤال: 181723

मैं नॉर्वे में रहने वाला एक मुस्लिम छात्र हूँ और वहाँ एक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा हूँ। मेरे पास विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए शैक्षिक ऋण के बारे में एक प्रश्न है। यह ऋण ब्याज मुक्त है और यह छात्रों को दिया जाता है। यदि वे अर्धवार्षिक परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं, तो यह ऋण विश्वविद्यालय की ओर से अनुदान या उपहार में बदल जाता है। लेकिन यदि वे परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाते हैं, तो यह ऋण वर्ष के अंत की परीक्षा तक ब्याज मुक्त रहता है। लेकिन पढ़ाई छोड़ने या स्नातक होने की स्थिति में, या उस स्थिति में जब ऋण विश्वविद्यालय की ओर से अनुदान या उपहार में परिवर्तित नहीं होता है, तो यह लोन ऋण बन जाता है, और इन तीनों स्थितियों में, ऋण पर ब्याज का भुगतान करना पड़ता है। –

प्रश्न यह है : क्या मेरे लिए इस ऋण से लाभ उठाना जायज़ है? क्या यह हलाल है? चूँकि मैं इस वर्ष अपनी पढ़ाई पूरी कर लूँगा, और अल्लाह की कृपा से मैं किसी भी वर्ष फेल नहीं हुआ, और अल्लाह ने चाहा तो भविष्य में भी ऐसा नहीं होगा, इसलिए यदि मैं यह ऋण लेता हूँ, तो इन शा अल्लाह यह अनुदान में बदल जाएगा। और यदि मैं किसी परीक्षा में असफल हो जाता हूँ, या पढ़ाई छोड़ देता हूँ, तो अल्लाह का शुक्र है कि मेरे पास इस ऋण को तुरंत चुकाने के लिए धन है। मुझे इस ऋण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन क्योंकि परीक्षा के बाद यह अनुदान में बदल जाएगा, इसलिए मैं इसे लेना चाहता हूँ। इस मामले पर शरई हुक्म क्या है?

الجواب

الحمد لله والصلاة والسلام على رسول الله وآله وبعد.

शिक्षा के लिए दिए गए ऋण तीन स्थितियों से खाली नहीं हैं :

पहली स्थिति : ऋण रिबा (सूद) पर आधारित न हो, इस प्रकार कि छात्र ने जो लिया था उसे बिना किसी वृद्धि (ब्याज) के वापस कर दे। ऐसी स्थिति में यह लोन जायज़ है और कोई समस्या नहीं है।

दूसरी स्थिति : यह कि ऋण ब्याज पर आधारित हो, जिसमें ऋण लेने वाले से अतिरिक्त राशि के साथ ऋण वापस करने की मांग की जाती है। ऐसी स्थिति में यह क़र्ज लेना जायज़ नहीं है, क्योंकि यह रिबा (सूद) है।

तीसरी स्थिति : यह है जहाँ ऋण में मूल रूप से सूद शामिल न हो, लेकिन वह अपने कुछ रूपों में सूदी शर्त पर आधारित हो। जैसे कि छात्र से कहा जाए : यह ऋण वैसे ही वापस चुकाया जाना है, या यदि आप पढ़ाई में उत्तीर्ण हो जाते हैं, तो यह आपके लिए एक अनुदान है। लेकिन यदि आप पढ़ाई छोड़ देते हैं या उसमें असफल हो जाते हैं, या आप निर्धारित अवधि से अधिक समय तक ऋण चुकाने में देरी करते हैं, तो आपको एक निश्चित वृद्धि (व्याज) के साथ ऋण वापस करना होगा, तो इस स्थिति में उस ऋण को भी लेना जायज़ नहीं है, भले ही उधारकर्ता (कर्ज़दार) सुदृढ़ हो की वह सफल हो जाएगा या आश्वस्त हो कि उसे ब्याज नहीं देना होगा; क्योंकि इस अनुबंध में रिबा पर आधारित शर्त को मंजूरी देना शामिल है, इसके अलावा वास्तव में इसमें गिरने की भी संभावना है, यदि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जो उसके सफल न होने या अपनी पढ़ाई पूरी न कर पाने का कारण बनती हैं।

अतः इसके आधार पर, आपके लिए यह ऋण लेना जायज़ नहीं है, क्योंकि इसमें सूद पर आधारित शर्त शामिल है, और आपने उल्लेख किया है कि आपको उस ऋण की आवश्यकता नहीं है। यह इस बात को अनिवार्य कर देती है कि आप उस ऋण को छोड़ दें।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।  

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