बहुत से डाक्टर चिकित्सकीय मृतक व्यक्ति से पुनर्जीवन उपकरण हटाने के वक़्त के बारे में संकोच करते हैं, और उस समय चिकित्सक के अंदर दो भावनायें संघर्ष कर रही होती हैं, एक तरफ वह यह सोचता है कि वह मौत से जूझ रहे व्यक्ति की यम पीड़ा को लम्बा कर रहा है, और यदि उसे उपकरण से हटा दे, तो वह अपनी मृत्यु के द्वारा आराम पा जायेगा। दूसरी तरफ वह इस बात से डरता है कि उपकरण को हटा देना इस व्यक्ति के जीवन को बरक़रार रखने के अवसर को समाप्त करने का कारण बन सकता है। तो नैदानिक मृत्यु वाले लोगों से पुनर्जीवन के उपकरणों को हटाना कब जायज़ है ?
हरप्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
आदमीका धार्मिक दृष्टि से मृतक होना और उस पर मृत्यु के समय के निर्धारित सभी प्रावधानोंका निष्कर्षित होना उस समय समझा जायेगा जब उसके अंदर निम्नलिखित दो लक्षणों में सेकोई एक लक्षण पाया जाय :
प्रथम:
जबउसके दिल का काम करना और साँस लेना संपूर्ण रूप से बंद हो जाए, और डाक्टर लोग इस बात का फैसला करदें कि इसका बहाल होना संभवनहीं है।
दूसरा:
जबउसके मस्तिष्क के सभी कार्य पूरी तरह से काम करना बंद करदें, और अनुभवी विशेषज्ञ चिकित्सक इस बात का फैसला करदें कि इस विघटनका बहाल होना संभव नहीं है, और उसका दिमाग़विघटित होने लगे।
तोऐसी स्थिति में उस व्यक्ति पर लगाये गए पुनर्जीवन के उपकरणों को हटाना जायज़ है, यद्यपि कुछ अंग उदाहरण स्वरूप दिल, उस पर लगाये गए उपकरणों कीवजह से स्वचालित रूप से काम कर रहा हो।