उस समूह की वे कौन सी शर्तें हैं जिसका शरीयत के अनुसार एक मुसलमान को पालन करना चाहिएॽ
समर्थित संप्रदाय अह्लुस-सुन्नह वल-जमाअह की विशेषताएँ
प्रश्न: 206
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
एक मुसलमान का यह कर्तव्य है कि वह सत्य का पालन करे और समर्थित संप्रदाय अह्लुस-सुन्नह वल-जमाअह के लोगों में शामिल हो, जो सदाचारी पूर्वजों के अनुयायी हैं। वह अल्लाह के लिए उनसे प्यार करे, चाहे वे उसके देश में हों या किसी और देश में, तथा वह उनके साथ नेकी और धर्मपरायणता में सहयोग करे और उनके साथ सर्वशक्तिमान अल्लाह के धर्म का समर्थन करे।
जहाँ तक समर्थित संप्रदाय की विशेषताओं का संबंध है :
तो उनके बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कई सहीह हदीसें वर्णित हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना : “मेरी उम्मत में हमेशा एक समूह ऐसा रहेगा जो अल्लाह तआला के आदेश (शरीयत) पर क़ायम रहेगा। जो लोग उन्हें छोड़ देंगे या उनका विरोध करेंगे, वे उन्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकेंगे, यहाँ तक कि अल्लाह का आदेश (क़ियामत की घड़ी) उनके पास आ जाए और वे उसी पर क़ायम होंगे।”
उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरी उम्मत का एक समूह सदैव सत्य पर (क़ायम रहते हुए) प्रबल रहेगा यहाँ तक कि क़ियामत आ जाएगी।”
मुग़ीरा बिन शो'बा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह फरमाते हुए सुना : “मेरी उम्मत का एक समूह हमेशा लोगों पर हावी रहेगा, यहाँ तक कि उनके पास अल्लाह का हुक्म आ जाए।”
इमरान बिन हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मेरी उम्मत का एक समूह हमेशा सत्य के लिए लड़ता रहेगा, उन लोगों पर प्रबल रहेगा जो उनका विरोध करेंगे, यहाँ तक कि उनमें से अंतिम व्यक्ति मसीह दज्जाल से लड़ाई करेगा।”
इन हदीसों से कई बातें ग्रहण की जा सकती हैं :
पहला :
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “मेरी उम्मत का एक समूह …” में इस बात का प्रमाण है कि यह उम्मत का एक समूह है, संपूर्ण उम्मत नहीं। और यह इंगित करता है कि अन्य समूह और अन्य संप्रदाय भी हैं।
दूसरा :
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान : “जो लोग उनका विरोध करेंगे, वे उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा पाएँगे।” यह इंगित करता है कि ऐसे अन्य समूह भी होंगे जो धर्म के मामले में समर्थित संप्रदाय का विरोध करेंगे। इसी तरह यह उम्मत के विभाजित होने के बारे में वर्णित हदीस के अर्थ से भी मेल खाता है, क्योंकि बहत्तर संप्रदाय मुक्ति पाने वाले संप्रदाय के उस सत्य में विरोधी होंगे जिसपर वे क़ायम होंगे।
तीसरा :
दोनों हदीसें सत्य पर चलने वाले लोगों को खुशखबरी देती हैं। समर्थित संप्रदाय की बात करने वाली हदीस उन्हें इस दुनिया में विजय, समर्थन और प्रबलता की शुभ समाचार देती है।
चौथा :
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : “यहाँ तक कि अल्लाह का आदेश आ जाए" का मतलब वह हवा है जो (क़ियामत के निकट) आएगी और हर ईमान रखने वाले पुरुष और महिला के प्राण को ले लेगी।
यह इस हदीस का खंडन नहीं करता है : “मेरी उम्मत का एक समूह क़ियामत के दिन तक सच्चाई का पालन करना जारी रखेगा।'', क्योंकि हदीस का मतलब यह है कि वे निरंतर सच्चाई का पालन करते रहेंगे यहाँ तक कि क़ियामत के निकट और उसकी निशानियों के दिखाई देने के समय यह हल्की हवा उनके प्राणों को क़ब्ज़ कर लेगी।
समर्थित संप्रदाय (ताइफ़ा मंसूरा) की विशेषताएँ
ऊपर उद्धृत हदीसों और अन्य रिवायतों के संग्रह से समर्थित संप्रदाय की निम्नलिखित विशेषताएँ निष्कर्षित की जा सकती हैं :
1-वे सत्य पर क़ायम हैं :
चुनाँचे हदीस में आया है कि वे "सत्य पर क़ायम हैं।" और वे “अल्लाह के आदेश पर क़ायम हैं।”
और वे “इस मामले (शरीयत) पर क़ायम हैं।”
और वे “धर्म पर क़ायम हैं।”
ये सभी शब्द मिलकर यह दर्शाते हैं कि वे उस सहीह धर्म पर जमे हुए हैं जिसके साथ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा गया था।
2-वे अल्लाह के आदेश पर क़ायम हैं :
उनके अल्लाह के आदेश पर क़ायम होने का अर्थ यह है कि :
- वे अल्लाह की ओर बुलाने का झंडा लेकर चलने के कारण अन्य लोगों से उत्कृष्ट हैं।
- वे (भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने) का मिशन पूरा कर रहे हैं।
3-वे क़ियामत क़ायम होने तक प्रबल (ग़ालिब) रहेंगे :
हदीसों में इस समूह का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि : “वे निरंतर प्रबल रहेंगे यहाँ तक कि उनके पास अल्लाह का आदेश आ जाए और वे प्रबल ही रहेंगे।” तथा “वे प्रबल रहेंगे सत्य पर”, या “वे सत्य पर ग़ालिब रहेंगे।” या "वे क़ियामत तक प्रबल रहेंगे।” या “वे उन लोगों पर हावी रहेंगे जो उनका विरोध करेंगे।”
इस ज़ुहूर (प्रबलता) में शामिल हैं :
-: स्पष्टता, प्रत्यक्षता और छिपा हुआ न होना। चुनाँचे वे ज्ञात, प्रमुख, प्रख्यात और ऊँचे होते हैं।
-: सच्चाई, धर्म, सत्यनिष्ठा, धार्मिकता, अल्लाह के आदेश का पालन करने और उसके दुश्मनों के खिलाफ जिहाद करने में उनकी दृढ़ता।
-: ज़ाहिर होने का मतलब प्रभुत्व व प्रबलता है।
4-वे धैर्यवान हैं और धैर्य पर जमे रहने वाले हैं :
अबू सा'लबा अल-ख़ुशनी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “तुम्हारे आगे धैर्य के दिन हैं, जिनमें धैर्य करना गर्म अंगारों को पकड़ने जैसा होगा।”
समर्थित संप्रदाय के लोग कौन हैं?
बुखारी रहिमहुल्लाह ने कहा : "वे ज्ञान वाले लोग (विद्वान) हैं।"
बहुत-से विद्वानों ने कहा है कि समर्थित संप्रदाय से अभिप्राय : “अह्लुल-हदीस” (हदीस के विद्वान) हैं।
नववी ने कहा : “यह संभव है कि यह संप्रदाय सभी प्रकार के मोमिनों में विभाजित है : उनमें से कुछ बहादुर लड़ाके हैं, कुछ फ़ुक़हा (धर्मशास्त्री) हैं, कुछ मुहद्देसीन (हदीस के विद्वान), कुछ ज़ाहिद (त्यागी), तथा कुछ अच्छाई का आदेश देने वाले और बुराई से रोकने वाले हैं, और उनमें से कुछ अन्य प्रकार के अच्छे कामों वाले लोग हैं।”
नववी ने यह भी कहा : "यह संप्रदाय कई प्रकार के मोमिनों (विश्वासियों) का एक समूह हो सकता है, जिनमें बहादुर और युद्ध में कुशल, फक़ीह, हदीस का विद्वान, क़ुरआन का टिप्पणीकार (मुफ़स्सिर), अच्छाई का आदेश देने वाला और बुराई से रोकने वाला, ज़ाहिद (त्यागी) और उपासक शामिल हैं।”
इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने इस मुद्दे के बारे में बात का विवरण देते हुए कहा : “उन सब का एक ही देश में इकट्ठा होना ज़रूरी नहीं है, बल्कि उनका एक देश में इकट्ठा होना और दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में फैला होना जायज़ है। तथा उनका एक देश में इकट्ठा होना और उसके कुछ हिस्से में होना और दूसरों में न होना जायज़ है। यह भी हो सकता है कि पहले उनमें से कुछ से पूरी ज़मीन खाली हो जाए, फिर उनमें से कुछ और से, यहाँ तक कि एक देश (शहर) में केवल एक दल शेष रह जाए, फिर जब वे भी लुप्त हो जाएँ तो अल्लाह का आदेश आ जाए।”
विद्वानों की चर्चा का निष्कर्ण यह है कि यह संप्रदाय लोगों के एक विशिष्ट समूह तक ही सीमित नहीं है, न ही यह किसी विशिष्ट देश तक ही सीमित है, अगरचे इसका अंतिम समूह शाम (लेवंत) के क्षेत्र में होगा और दज्जाल से लड़ेगा, जैसाकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सूचना दी है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो लोग शरीयत के विज्ञान – अक़ीदा, फ़िक़्ह, हदीस और तफ़सीर के अध्ययन और अध्यापन, आह्वान और क्रियान्वयन – से जुड़े हैं, वे समर्थित संप्रदाय का दर्जा पाने के सबसे योग्य लोग हैं, तथा वे आह्वान, जिहाद, भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने और बिदअत के लोगों का खंडन करने के अधिक योग्य हैं। क्योंकि यह सब वह़्य से लिए गए सही ज्ञान के साथ होना चाहिए।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें उनमें से बनाए। तथा अल्लाह हमारे नबी मुहम्मद पर दया की वर्षा करे।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद