आप ने फत्वा संख्या : (10127) में उल्लेख किया है कि : जो व्यक्ति काफिर (नास्तिक) होकर मर गया, लेकिन उसने इस्लाम के बारे में नहीं सुना, और प्रयास के बावजूद वह सहीह दीन की जानकारी प्राप्त करने पर सक्षम नहीं हो सका, तो प्रलय के दिन उसका परीक्षण किया जायेगा। तो क्या यह उन काफिरों पर भी लागू होता है जिनका क़ुरआन करीम में वर्णन हुआ है, जैसे : वे ईसाई जो ईसा अलैहस्सलाम के ईश्वरत्व का दावा करते हैं? आप से उत्तर देने का अनुरोध है ताकि मैं अल्लाह की इच्छा से क़ुरआन करीम के अर्थों को सही ढंग से समझ सकूँ।
ईसाइयों में से उस आदमी का हुक्म जिसने इस्लाम के बारे में नहीं सुना
प्रश्न: 215066
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
हर प्रकार की प्रशंसाऔर गुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।
जी हां, यह हुक्मउन सभी नास्तिकों(काफिरों) को सम्मिलितहै जिन्हें नबीसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम का सन्देशनहीं पहुँचा, औरउन्हों ने उसकेबारे में बिल्कुलनहीं सुना, या उन्होंने उसके बारे मेंसहीह ढंग से नहींसुना जिसके द्वाराउन पर हुज्जत क़ायम(तर्कस्थापित) हो सके,और वे नबुव्वत(ईशदूत्व) के प्रकाशतक पहुँचने मेंसक्षम नहीं होसके। यह अल्लाहकी अपने बन्दोंपर दया व करूणाहै कि : उसने बन्दोंको दंडित करनेअरै उन पर हुज्जत(तर्क) स्थापितकरने की इल्लत(कारण) : अपने संदेशका उन तक पहुँचनाक़रार दिया है।अतः जिस व्यक्तिको पैगंबर का संदेशनहीं पहुँचा है,वह यातना का पात्रनहीं है। अल्लाहतआला का कथन है:
مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَنْضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى وَمَاكُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا [الإسراء: 15]
”जो कोईसीधा मार्ग अपनाएतो उसने अपने हीलिए सीधा मार्गअपनाया और जो पथभ्रष्टहुआ, तो उसकेभटकने की हानिउसी के ऊपरहै। और कोई भी बोझउठानेवाला किसीदूसरे का बोझ नहींउठाएगा। और हमलोगों को यातनानहीं देते जब तककोई रसूल न भेजदें।” (सूरतुल इसरा: 15).
तथा अल्लाह नेफरमाया :
رُسُلًا مُبَشِّرِينَوَمُنْذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى اللَّهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِوَكَانَ اللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا [سورة النساء : 165]
”रसूल शुभसमाचार देनेवालेऔर सचेत करनेवालेबनाकर भेजे गएहैं, ताकि रसूलोंके पश्चात लोगोंके पास अल्लाहके मुक़ाबले में(अपने निर्दोषहोने का) कोई तर्कन रहे। अल्लाहअत्यन्त प्रभुत्वशाली,तत्वदर्शी है।”(सूरतुन निसा : 165)
तथा अल्लाह नेफरमाया :
يَا أَهْلَ الْكِتَابِ قَدْ جَاءَكُمْ رَسُولُنَايُبَيِّنُ لَكُمْ عَلَى فَتْرَةٍ مِنَ الرُّسُلِ أَنْ تَقُولُوا مَا جَاءَنَا مِنْبَشِيرٍ وَلَا نَذِيرٍ فَقَدْ جَاءَكُمْ بَشِيرٌ وَنَذِيرٌ وَاللَّهُ عَلَى كُلِّشَيْءٍ قَدِيرٌ [سورة المائدة : 19]
”ऐ किताबवालो! हमारा रसूलऐसे समय तुम्हारेपास आया है और तुम्हारेलिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकरबयान करता है, जबकिरसूलों के आनेका सिलसिला एकमुद्दत से बन्दथा, ताकि तुम यहन कह सको कि ”हमारेपास कोई शुभ-समाचारदेनेवाला और सचेतकरनेवाला नहींआया।” तो देखो! अबतुम्हारे पास शुभ-समाचारदेनेवाला और सचेतकरनेवाला आ गयाहै। अल्लाह कोहर चीज़ का सामर्थ्यप्राप्त है।” (सूरतुलमायदा : 19)
इस अर्थ की आयतेंबहुत हैं और सर्वज्ञातहैं।
तथा सहीह मुस्लिम(हदीस संख्या : 153)में अबू हुरैरारज़ियल्लाहु अन्हुसे वर्णित है किअल्लाह के पैगंबरसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम ने फरमाया: ”उस अस्तित्व कीक़सम जिसके हाथमें मुहम्मद कीजान है, इस उम्मतका जो भी व्यक्ति] चाहे वह यहूदीहो या ईसाई, मेरेबारे में सुनताहै फिर वह मर जाताहै और उस चीज़ परईमान नहीं लाताजिसे देकर मैंभेजा गया हूँ तोवह नरकवासियोंमें से होगा।”
इससे पता चला किजिसके पास सन्देष्टाओंका सन्देश नहींपहुँचा है, उसकेपास हुज्जत(तर्क) है जिसकेद्वारा वह अल्लाहके पास अपनी ओरसे बहस कर सकताहै,और उसकेज़रिया अपने आपसे यातना को हटासकता है।
तथा इस हदीस सेमालूम हुआ कि जिसनेनबी सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके बारे में नहींसुना है, वह उन नरकवासियोंमें से नहीं हैजो उसके पात्रहैं।
शैखुल इस्लामइब्ने तैमिय्याने फरमाया : ”यहाँपर एक मूल सिद्धांतहै जिसका वर्णनकरना ज़रूरी है,और वह यह है कि : शरीअतके नुसूस (मूलपाठ) इस बात को प्रमाणितकरते हैं कि अल्लाहतआला केवल उसीको यातना देताहै जिसकी ओर कोईपैगंबर भेजा होताहै जिसके द्वाराउस पर हुज्जत (तर्क)स्थापित हो जाताहै : अल्लाह तआलाने फरमाया :
وَكُلَّ إِنْسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ وَنُخْرِجُ لَهُيَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنْشُورًا ’ اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَىبِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا ’ مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِيلِنَفْسِهِ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌوِزْرَ أُخْرَى وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا [الإسراء : 13-15]
”हमने प्रत्येकमनुष्य का शकुन-अपशकुनउसकी अपनी गरदनसे बाँध दिया हैऔर क़ियामत केदिन हम उसके लिएएक किताब निकालेंगे,जिसको वह खुलाहुआ पाएगा। ”पढ़ले अपनी किताब(कर्मपत्र)! आज तूस्वयं ही अपनाहिसाब लेने केलिए काफ़ी है।”जो कोई सीधा मार्गअपनाए तो उसनेअपने ही लिए सीधामार्ग अपनाया औरजो पथभ्रष्ट हुआ,तो उसके भटकनेका भार उसी केऊपर है। और कोईभी बोझ उठानेवालाकिसी दूसरे काबोझ नहीं उठाएगा।और हम लोगों कोयातना नहीं देतेजब तक कोई रसूलन भेज दें।” (सूरतुलइसरा : 13-15)
तथा अल्लाह नेफरमाया :
وَسِيقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَى جَهَنَّمَ زُمَرًا حَتَّى إِذَاجَاءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا أَلَمْ يَأْتِكُمْرُسُلٌ مِنْكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِ رَبِّكُمْ وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَيَوْمِكُمْ هَذَا قَالُوا بَلَى وَلَكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَىالْكَافِرِينَ [الزمر :71]
”जिन लोगोंने इनकार कियाएवे गिरोह के गिरोहजहन्नम की ओर लेजाए जाएँगे, यहाँतक कि जब वे वहाँपहुँचेगे तो उसकेद्वार खोल दिएजाएँगे और उसकेपहरेदार उनसे कहेंगे,”क्या तुम्हारेपास तुम्हीं मेंसे रसूल नहीं आएथे जो तुम्हेंतुम्हारे रब कीआयतें सुनाते रहेहों और तुम्हेंइस दिन की मुलाक़ातसे सचेत करते रहेहों?” वेकहेंगे, ”क्योंनहीं (वे तो आए थे)।”किन्तु इनकार करनेवालोंपर यातना की बातसत्यापित होकररही।” (सूरतुज़ ज़ुमर: 71)
तथा फरमाया :
.يَامَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَقُصُّونَعَلَيْكُمْ آيَاتِي وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا قَالُوا شَهِدْنَاعَلَى أَنْفُسِنَا وَغَرَّتْهُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَشَهِدُوا عَلَىأَنْفُسِهِمْ أَنَّهُمْ كَانُوا كَافِرِينَ [الأنعام : 130]
”ऐ जिन्नोंऔर मनुष्यों केगिरोह! क्या तुम्हारेपास तुम्हीं मेंसे रसूल नहीं आएथे, जो तुम्हेंमेरी आयतें सुनातेऔर इस दिन के पेशआने से तुम्हेंडराते थे?” वे कहेंगे,”क्यों नहीं! (रसूलतो आए थे) हम स्वयंअपने विरुद्ध गवाहहै।” उन्हें तोसांसारिक जीवनने धोखे में रखा।मगर अब वे स्वयंअपने विरुद्ध गवाहीदेने लगे कि वेइनकार करनेवालेथे।” (सूरतुल अनआम: 130)
तथा फरमाया :
وَمَا كَانَرَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَى حَتَّى يَبْعَثَ فِي أُمِّهَا رَسُولًا يَتْلُوعَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَمَا كُنَّا مُهْلِكِي الْقُرَى إِلَّا وَأَهْلُهَاظَالِمُونَ [القصص : 59]
”तेरा रबतो बस्तियों कोविनष्ट करनेवालानहीं जब तक कि उनकीकेन्द्रीय बस्तीमें कोई रसूल नभेज देए जो हमारीआयतें सुनाए। औरहम बस्तियों कोविनष्ट करनेवालेनहीं सिवाय इसस्थिति के कि वहाँके रहनेवाले ज़ालिमहों।” (सूरतुल क़सस: 59)
और जब मामला ऐसेही है : तो यह बातसर्वज्ञात है किक़ुरआन के द्वाराउसी पर हुज्जतक़ायम होती है जिसेवह पहुँचा हो, जैसाकिअल्लाह तआला काफरमान है :
لِأُنْذِرَكُمْ بِهِوَمَنْ بَلَغَ [الأنعام : 19]
”ताकि मैंइसके द्वारा तुम्हेंसचेत कर दूँ। औरजिस किसी को यहपहुँचे।” (सूरतुलअनआम : 19).
अतः जिसे क़ुरआनका कुछ हिस्सापहुँचा उस पर उतनीहुज्जत क़ायम होगई जितना हिस्साउसे पहुँचा है।जो हिस्सा उसेनहीं पहुँचा हैउसकी हुज्जतउस पर क़ायम नहींहुई।
यदि कुछ आयतोंका अर्थ संदिग्धहो जाए,और लोगआयत की व्याख्याके बारे में मतभेदकरें : तो जिस बारेमें उन्हों नेमतभेद किया हैउसे अल्लाह औरउसके रसूल की ओरलौटाना अनिवार्यहै।
जब लोग रसूल सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमके मुराद (आशय) औरउद्देश्य को समझनेमें भरपूर प्रयासकरें : तो सही हुक्मतक पहुँचने वालेके लिए दोहरा अज्रव सवाब है,और गलती करने वाले(यानी सही हुक्मसे चूक जाने वाले)के लिए एक अज्रव सवाब है। इसलिएयही बात हमसे पहलेके अहले किताबके बारे में कहनेमें कोई रूकावटनहीं है : चुनांचेहमसे पहले लोगोंमें से जिसे किताबके सभी नुसूस(मूल पाठ) नहीं पहुँचे: तो उसे जो चीज़ पहुँचीहै केवल उतनी हीचीज़ों के बारेमें उस पर हुज्जतक़ायम होगी, और उसमेंजिसका उर्थ उसपर गुप्त रह गया,फिर उसने उसकीजानकारी करने मेंभरपूर प्रयास किया: तो जो व्यक्तिसही हुक्म तक पहुँचगया उसके लिए दोहराअज्र व सवाब है,और जो गलती कर गया(चूक गया) तो उसकेलिए एक अज्र है,और उसकी गलती माफहै।
लेकिन जिसने जानबूझकरकिताब के शब्दया अर्थ में परिवर्तनकिया, और पैगंबरके लाए हुए संदेशको जान-पहचान लिया,फिर भी उससे हठधर्मीकी : तो ऐसा आदमीदण्ड और यातनाका पात्र है। इसीतरह वह आदमी भीहै जिसने अपनीइच्छा का पालनकरते हुए,दुनिया में लीनहोकर, सत्य को ढूंढनेऔर उसका अनुसरणकरने में कोताहीसे काम लिया।
इस आधार पर :
यदि कुछ अहले किताबने अपने धार्मिकपुस्तक में कुछपरिवर्तन किया,और उनमें कुछ दूसरेलोग हैं जो इस चीज़को नहीं जानते,अतः वे जो कुछ पैगंबरलेकर आए हैं उसकीपैरवी करने मेंभरपूर प्रयास करनेवाले हैं : तो इनलोगों को वईद (सज़ाकी धमकी) के पात्रलोगों में से क़रारदेना ज़रूरी नहींहै।
जब अहले किताबमें ऐसे व्यक्तिका होना जायज़ (संभावित)है जो मसीह की लाईहुई सभी शिक्षाओंको नही जानता है,बल्कि उसके ऊपरउनकी लाई हुई कुछशिक्षाया उसके कुछ अर्थगुप्त रह गए, फिरउसने भरपूर प्रयासकिया : तो जो चीज़उस तक नहीं पहुँचीहै उस पर उसे दंडितनहीं किया जायेगा।और वे यहूद जो तुब्बअके साथ थे, तथा मदीनावालों में से वेलोग जो मुहम्मदसल्लल्लाहु अलैहिव सल्लमपर ईमान लानेकी प्रतीक्षा कररहे थे,जैसेइब्ने तैयिहानआदि,उनके समाचारको इसी पर अनुमानितकिया जा सकता है;और यह कि वेमसीह अलैहिस्सलामको अपने अलावाअन्य यहूद की तरहझुठलाने वाले नहींथे।
तथा लेागों नेइस बारे में मतभेदकिया है कि : क्याभरपूर प्रयास औरकठिन परिश्रम करनेके बावजूद यह संभवहै कि तर्क स्थापितकरनेवाले प्रतिदर्शीके लिए पैगंबरकी सच्चाई स्पष्टन हो,या कि ऐसासंभव नहीं है?
और यदि उसके लिएऐसा स्पष्ट न होसका तो क्या वहपरलोक में सज़ाका पात्र है यानहीं?
तथा कुछ लोगोंने उनमें से मुक़ल्लिद(अनुकर्ता) के बारमें भी मतभेद कियाहै।
यहाँ पर बात दोस्थानों में है:
पहला स्थान : सत्यके विरोधी की गलतीऔर उसकी पथ भ्रष्टताके वर्णन में ; औरयह बौद्धिक औरधार्मिक कई तरीक़ों(विधियों) से जानाजाता है,तथा सत्य के विरोधीबहुत से अह्लेक़िबला और गैर अह्लेक़िबला के बहुतसे कथनों में गलती(त्रुटि) को विविधप्रकार के प्रमाणोंसे जाना जा सकताहै।
दूसरा स्थान : उनकेकुफ्र (नास्तिकता)और आखिरत में वईद(सज़ा के वादे) कापात्र होने केबारे में बात।
तो इसके बारे मेंसुप्रसिद्ध इमामों; मालिक,शाफेईऔर अहमद़ के अनुयायिायोंके तीन कथन हैं: एक कथन यह है कि: जो ईमान नहीं लायाहै उसे नरक की आगमें यातना दियाजायेगा, अगरचेउसकी ओर कोई सन्देष्टान भेजा गया हो।क्योंकि बुद्धिके द्वारा उस परहुज्जत क़ायम होचुकी है। यही अबूहनीफा और उनकेअलावा के अनुयायियोंमें से अह्ले कलामव फिक़्ह में सेबौद्धिक हुक्मके मानने वालोंमें से बहुत सेलोगों का कथन है,और इसी को अबुलखत्ताब ने चयनकिया है। तथा एकदूसरा कथन यह हैकि : उसके ऊपर बुद्धिके द्वारा हुज्जतज़रूरी नहीं है;बल्कि उसकेलिए उस व्यक्तिको यातना देनाजायज़ है जिसकेऊपर हुज्जत क़ायम(स्थापित) नहींहुई है, न बुद्धिके द्वारा न शरीअतके द्वारा। यहउन लोगों का कथनहै जिन्हों नेकाफिरों के बच्चोंऔर उनके पागलोंको यातना देनेको वैद्ध ठहरायाहै। यह बहुत सेअहले कलाम, जैसेजह्म, अबुल हसनअल-अशअरी और उनकेअनुयायियों, क़ाज़ीअबू याला और इब्नेअक़ील इत्यादि काकथन है।
तीसरा कथन : और यहीसलफ और इमामोंका मत है कि : केवलउसी को सज़ा दी जायेगीजिसे अल्लाह कासंदेश पहुँच चुकाहै,और केवलउसी को सज़ा दी जायेगीजिसने सन्देष्टाओंका विरोध कियाहै ; जैसा कि किताबव सुन्नत के प्रमाणइस बात को दर्शातेहैं ; अल्लाह तआलाने इबलीस से कहा:
لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنْكَ وَمِمَّنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْأَجْمَعِينَ [ص : 85]
”मैं जहन्नमको तुझसे और उनसबसे भर दूँगा,जिन्होंने उनमेंसे तेरा अनुसरणकिया होगा।” (सूरतसाद : 85)
और जब ऐसी बात है; तो हम जिस चीज़ केअंदर अह्ले किताबके पहले और बादके लोगों से तर्क-वितर्ककरते हैं : तो कभीपहले स्थान मेंबात करते हैं, औरवह उनके सत्य काविरोद्ध करनेका, और उनकी अनभिज्ञताव अज्ञानता औरउनकी पथ भ्रष्टताका उल्लेख और वर्णनहै, तो यह सभी शरईऔर बौद्धिक प्रमाणोंसे सचेत करना है।
और कभी-कभी हम उनकीउस नास्तिकता कावर्णन करते हैंजिसकी वजह से वेलोक और परलोक मेंयातना और सज़ा केपात्र बनते हैं,तो इसका मामलाअल्लाह और उसकेरसूल की ओर है, इसकेबारे में केवलवही बात कही जायेगीजिसकी सन्देष्टाओंने सूचना दी है।
जिस तरह कि हम ईमानऔर जन्नत की शहादतकेवल उसी के लिएदेते हैं जिसकेलिए पैगंबरों नेशहादत दी है।
जिस व्यक्ति परदुनिया में पैगंबरोंके संदेश के द्वाराहुज्जत क़ायम नहींहुई है,जैसेबच्चे, पागल लोग,और दो पैगंबरोंके बीच की अवधिवाले लोग : तो इनकेबारे में कई कथनहैं : जिनमें सबसेस्पष्ट वह है जिसकेबारे में आसार(हदीस) वर्णित हैंकि : उन्हें क़ियामतके दिन परीक्षितकिया जायेगा, चुनांचेअल्लाह उनकी ओरकिसी को भेजे गाजो उन्हें अपनीआज्ञापालन का आदेशदेगा। यदि उन्होंने उसकी आज्ञाका पालन किया, तोवे पुण्य के पात्रहोंगे और यदि उन्होंने उसकी अवज्ञाकी, तो वे अज़ाब केपात्र बनेंगे।”
”अल-जवाबुस्सहीहलिमन बद्दला दीनलमसीह” (2/291 – 298) से संक्षेपके साथ समाप्तहुआ।
तथा अधिक लाभ केलिए, प्रश्न संख्या: (194157) का उत्तर देखें।
और अल्लह तआलाही सबसे अधिक ज्ञानरखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर