क्या कुछ ऐसी दुआएँ हैं जो हम आपदाओं और संकट, जैसे युद्ध और मुस्लिम देशों के पर काफिरों के हमलों, के समय कर सकें?
संकट और कठिनाई के समय में नबवी अज़कार एवं दुआएँ
प्रश्न: 21614
उत्तर का सारांश
फ़ित्नों (संकटों) से बचने और कठिनाइयों से राहत के लिए कुछ दुआएँ इस प्रकार हैं : • “अल्लाहुम्मा इन्ना नज-अलुका फी नुहूरिहिम व नऊज़ो बिका मिन शूरुरिहिम” • “ला इलाहा इल्लल्लाहुल अज़ीमुल हलीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुल अर्शिल अज़ीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुस समावाति व-रब्बुल अर्ज़ि व-रब्बुल अर्शिल करीम” • “ला इलाहा इल्लल्लाहुल हलीमुल करीम, ला इलाहा इल्लल्लाहुल अलिय्युल अज़ीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुस समावातिस सब्ए व-रब्बुल अर्शिल करीम” • “अल्लाहुम्मा अन्ता अज़ुदी व अन्ता नसीरी व बिका उक़ातिल” • “ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्ह़ानका इन्नी कुन्तु मिनज़्-ज़ालिमीन” • “अऊज़ो बि कलिमातिल्लाहित्-ताम्मति मिन ग़ज़बिही व मिन शर्रि इबादिही व मिन हमज़ातिश-शयातीनि व अन् यहज़ुरुन” • “अल्लाहुम्मा रहमतका अर्जू फला तकिल्नी इला नफ्सी तर्फता ऐन, व असलिह ली शानी कुल्लहु, ला इलाहा इल्ला अन्त” • “या ह़य्यु या क़य्यूमु बि-रह़मतिका अस्तग़ीसु” • ”अल्लाहु रब्बी, ला उश्रिको बिही शैअन्”
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नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़ित्नों से अल्लाह की शरण लेना
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बहुधा फित्नों (परीक्षा एवं विपत्ति) से बचने के लिए अल्लाह की शरण लेते थे, जैसा कि ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आपने फरमाया : “तुम प्रकट और गुप्त दोनों तरह की परीक्षाओं से अल्लाह की शरण लो।" इसे मुस्लिम (हदीस संख्या : 2867) ने रिवायत किया है।
तथा इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "आज रात मेरा पालनहार सबसे सुंदर रूप में मेरे पास आया" (फिर उन्होंने पूरी हदीस उल्लेख की, जिसमें अल्लाह का यह कथन है :) "ऐ मुहम्मद, जब आप नमाज़ पढ़ें, तो कहें :
اللهم إني أسألك فعل الخيرات، وترك المنكرات، وحب المساكين، وأن تغفر لي وترحمني وتتوب علي، وإن أردت بعبادك فتنة فاقبضني إليك غير مفتون
“अल्लाहुम्मा इन्नी अस्अलुका फे’लल-ख़ैराति, व तर्कल-मुन्कराति, व हुब्बल मसाकीनि, व-अन् तग़फ़िरा ली व-तर-ह-मनी, व ततूबा अलय्या, व इन अरद्ता बि-इबादिका फ़ित्नतन फ़क़्बिज़नी ग़ैरा मफ़्तून” (ऐ अल्लाह, मैं तुझसे भलाइयों के करने, बुराइयों के छोड़ने और मिसकीनों से प्रेम करने का प्रश्न करता हूँ, और इस बात का कि तू मुझे माफ कर दे, मुझपर दया कर और मेरे पश्चाताप को स्वीकार कर ले। और यदि तू अपने बंदों को किसी परीक्षा में डालना चाहे, तो मुझे उस परीक्षा में डाले बिना अपने पास उठा ले। (अर्थात, मुझे मृत्यु दे दे।)” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3233) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इस हदीस के बारे में “सहीह अत-तरग़ीब वत-तरहीब” (408) में “सहीह लि-ग़ैरिह” कहा है।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फ़ित्नों (परीक्षाओं) से पनाह माँगते थे; क्योंकि जब वे आते हैं तो केवल ज़ालिमों को ही नहीं पकड़ते, बल्कि सभी को अपनी चपेट में ले लेते हैं।
परीक्षाओं तथा विपत्तियों एवं संकटों के समय की दुआ
हमारे लिए परीक्षाओं, संकटों और आपदाओं से संबंधित दुआओं की हदीसों से परिचित होना अच्छा है, ताकि हम उनके साथ अल्लाह से दुआ करें, उनका प्रचार-प्रसार करें और उनमें से जो कुछ भी हम याद कर सकते हैं उसे याद करें… और उनके अर्थों को समझें ताकि हम उनके माध्यम से अल्लाह की इबादत करें, क्योंकि ये इन परिस्थितियों में कहे जाने वाले सबसे महान शब्द हैं :
- अबू बुरदह बिन अब्दुल्लाह की हदीस है कि उनके पिता ने उन्हें हदीस बयान की, कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब किसी क़ौम से से डरते थे तो कहते थे : اللهم إنا نجعلك في نُحُورِهِم، ونعوذ بك من شرورهم "अल्लाहुम्मा इन्ना नजअलुका फी नुहूरिहिम व नऊज़ो बिका मिन शूरुरिहिम” (ऐ अल्ला, हम तुझे उनके सामने रखते हैं और हम उनकी बुराई से तेरी शरण लेते हैं)। इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1537) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” (हदीस संख्या : 1360) में इसे सहीह कहा है।
- इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम संकट के समय कहा करते थे : لا إله إلا الله العظيم الحليم، لا إله إلا الله رب العرش العظيم، لا إله إلا الله رب السموات ورب الأرض ورب العرش الكريم “ला इलाहा इल्लल्लाहुल अज़ीमुल हलीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुल अर्शिल अज़ीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुस समावाति व-रब्बुल अर्ज़ि व-रब्बुल अर्शिल करीम” (अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो बड़ी महिमा वाला, सहनशील है। अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो महान अर्श का रब है। अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो आसमानों का रब और धरती का रब और अर्शे करीम का रब है।) इसे बुखारी (हदीस संख्या : 6345) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2730) ने रिवायत किया है।
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "संकट से राहत के शब्द ये हैं : لا إله إلا الله الحليم الكريم، لا إله إلا الله العلي العظيم، لا إله إلا الله رب السموات السبع ورب العرش الكريم “ला इलाहा इल्लल्लाहुल हलीमुल करीम, ला इलाहा इल्लल्लाहुल अलिय्युल अज़ीम, ला इलाहा इल्लल्लाहु रब्बुस समावातिस सब्ए व-रब्बुल अर्शिल करीम” (अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो बड़ा दानशील, अत्यंत सहनशील है। अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो सर्वोच्च और बड़ी महिमा वाला है। अल्लाह के अलावा कोई इबादत के योग्य नहीं, जो सातों आसमानों का रब और अर्शे करीम का रब है।) “सहीहुल-जामे' अस-सग़ीर व ज़ियादतुहु” (हदीस संख्या : 4571)
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सैन्य अभियान करते, तो यह दुआ पढ़ते : اللهم أنت عضدي وأنت نصيري وبك أقاتل “अल्लाहुम्मा अन्ता अज़ुदी व अन्ता नसीरी व बिका उक़ातिल” (ऐ अल्लाह, तू मेरी भुजा (मदद) हैं और तू ही मेरा सहायक है और मैं तेरे ही समर्थन से लड़ता हूँ।” इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 3584) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह अत-तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2836) में सही कहा है।
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "क्या मैं तुम्हें एक ऐसी बात न बताऊँ, कि यदि तुममें से किसी व्यक्ति पर इस दुनिया के मामलों के बारे में कोई संकट या परेशानी आए और वह यह दुआ पढ़ ले, तो उसे राहत मिल जाएगी… (यह) ज़ुन-नून (मछली वाले नबी) की दुआ है : لا إله إلا أنت سبحانك إني كنت من الظالمين "ला इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तू मिनज़-ज़ालिमीन” (तेरे सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, तू पाक है, निःसंदेह मैं अत्याचार करने वालों में हो गया।) एक रिवायत में है : “कोई भी मुसलमान व्यक्ति किसी भी चीज़ के बारे में यह दुआ नहीं करता है, परंतु अल्लाह उसकी दुआ क़बूल कर लेता है।" “सहीह अल-जामे' अस-सगीर व ज़ियादतुहु” (हदीस संख्या : 2065)
- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों को भय और घबराहट के समय ये शब्द पढ़ना सिखाते थे : أعوذ بكلمات الله التامة من غضبه وشر عباده ومن همزات الشياطين وأن يحضرون “अऊज़ो बि कलिमातिल्लाहित्-ताम्मति मिन ग़ज़बिही व मिन शर्रि इबादिही व मिन हमज़ातिश-शयातीनि व अन् यहज़ुरुन” (मैं अल्लाह के पूर्ण शब्दों की शरण लेता हूँ उसके क्रोध से, उसके बंदों की बुराई से, शैतान की उकसाहटों (बुरी प्रेरणाओं) से और इस बात से कि वे (शैतान) मेरे पास आएँ।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या :3839) ने रिवायत किया है अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” (हदीस संख्या : 3294) में इसे हसन क़रार दिया है।
- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “जो व्यक्ति संकट में है उसकी दुआ है : اللهم رحمتك أرجو فلا تَكِلْنِي إلى نفسي طرفة عين وأصلح لي شأني كله لا إله إلا أنت “अल्लाहुम्मा रहमतका अर्जू फला तकिल्नी इला नफ्सी तर्फता ऐन, व असलिह ली शानी कुल्लहु, ला इलाहा इल्ला अन्त” (ऐ अल्लाह, मैं तेरी ही रहमत की आशा रखता हूँ। अतः तू पलक झपकने के बराबर भी मुझे मेरे नफ़्स के हवाले न कर और मेरे लिए मेरे संपूर्ण काम सुधार दे। तेरे अलावा कोई इबादत के लायक़ नहीं।)” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 5090) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” (हदीस संख्या : 4246) में इसे हसन क़रार दिया है।
- जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किसी परेशानी से ग्रस्त होते, तो यह पढ़ते थे : يا حي يا قيوم برحمتك أستغيث "या ह़य्यु या क़य्यूमु बि-रह़मतिका अस्तग़ीस” (ऐ परम जीवित, ऐ सब कुछ थामने वाले! मैं तेरी ही दया से फरयाद करता हूँ।) एक अन्य रिवायत के अनुसार : “जब किसी शोक या चिंता से पीड़ित होते।” (सहीह अल-जामे` अस-सगीर, 4791)
- अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अस्मा बिन्त उमैस रज़ियल्लाहु अन्हा से फरमाया : “क्या मैं तुम्हें कुछ शब्द न सिखाऊँ जिन्हें तुम परेशानी के समय या संकट में पढ़ा करोॽ : الله ربي لا أُشْرِكُ به شيئا ”अल्लाहु रब्बी, ला उश्रिको बिही शैअन्” (अल्लाह मेरा पालनहार है, मैं उसके साथ किसी को साझी नहीं करता।) इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 1525) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह अबू दाऊद” (हदीस संख्या : 1349) में सहीह कहा है। तथा “सहीहुल-जामे'” में एक रिवायत में है : “जो कोई चिंता, या शोक, या बीमारी या संकट से पीड़ित हो और कहे : الله ربي لا شريك له “अल्लाहु रब्बी ला शरीका लहू” (अल्लाह ही मेरा रब है, उसका कोई साझी नहीं), तो वह उससे दूर कर दी जाती है।”
इनके अलावा और अन्य हदीसें हैं जो संकट और भय के समय में बड़ा सकारात्मक प्रभाव डालती हैं … जैसे मन की शांति, शारीरिक सुरक्षा और सर्वशक्तिमान अल्लाह से निकटता … परंतु हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सहीह हदीसों में प्रमाणित दुआओं ही पर संतोष करना चाहिए, क्योंकि ये उससे बेनियाज़ कर देती हैं जो प्रामाणिक नहीं है.. और इसी में बेहतरी है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर