क्या खिज़्र स्वर्गदूत थे या रसूल या नबी या वली थे ?
क्या खिज़्र नबी थे ?
प्रश्न: 21793
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
शैख शंक़ीती -रहिमहुल्लाह- अल्लाह तआला के फरमान : "फिर (उन दोनों ने) हमारे बन्दों में से एक बन्दा को पाया, जिसे हम ने अपने पास से खास रहमत अता कर रखी थी और उसे अपने पास से खास इल्म सिखा रखा था।" (सूरतुल कह्फ :65) के बारे में कहते हैं :
किन्तु कुछ आयतों से समझ में आता है कि उक्त आयत में वर्णित रहमत से मुराद नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) की रहमत है, और इस इल्मे-लदुन्नी से अभिप्राय वह्य का इल्म है… और यह बात ज्ञात है कि रहमत और इल्मे-लदुन्नी का प्रदान करना इस बात से आम है कि यह नुबुव्वत के माध्यम से है या किसी और तरीक़े से, और उस में आम के द्वारा खास पर दलील पकड़ना है ; क्योंकि किसी सामान्य चीज़ का मौजूद होना किसी विशिष्ट चीज़ के मौजूद होने को आवश्यक नहीं ठहराता है, जैसाकि यह सिद्धांत सुप्रसिद्ध है। और इस बात का सब से स्पष्ट प्रमाण कि रहमत और इल्मे-लदुन्नी जिन के द्वारा अल्लाह तआला ने अपने बन्दे खिज़्र पर एहसान किया है वह नुबुव्वत और वह्य के माध्यम से था, अल्लाह तआला का यह फरमान है : "मैं ने अपने इरादे और ख्वाहिश से कोई काम नहीं किया।" (सूरतुल कह्फ : 82) अर्थात् मैं ने इसे अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल के हुक्म से किया है, और अल्लाह का हुक्म वह्य के द्वारा ही संपन्न होता है, क्योंकि अल्लाह तआला के आदेशों और प्रतिषेधों को जानने का एक मात्र साधन अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की ओर से वह्य है, विशेश रूप से ज़ाहिर में निर्दोष जान को क़त्ल करना, लोगों की कश्तियों को उनमें छेद कर के ऐबदार बनाना, क्योंकि लोगों की जानों और उनके मालों पर आक्रमण करना अल्लाह तआला की तरफ से वह्य के माध्यम ही से उचित हो सकता है, और अल्लाह तआला ने अपने कथन : "मैं तो तुम्हें मात्र अल्लाह की वह्य के द्वारा डराता है।" (सूरतुल अंबिया :45) में डराने और आगाह करने के रास्ते को वह्य के साथ विशिष्ट कर दिया है। और आयत में "इन्नमा"का शब्द निर्भरता और विशिष्टता को दर्शाने के लिए आता है।" (अज़्वाउल बयान 4/172-173)
तथा एक दूसरे स्थान पर फरमाते हैं :
"… इन सभी चीज़ों से ज्ञात होता है कि : खिज़्र का बच्चे को क़त्ल करना, और कश्ती में छेद कर देना, और उनका यह कथन कि : "मैं ने इसे अपने इरादे से नहीं किया है।"आप के नबी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है, फख्र राज़ी ने अपनी तफ़सीर में उन के नबी होने का कथन अधिकांश लोगों की ओर मन्सूब किया है, तथा उन के नबी होने के कथन का संकेत इस से भी मिलता है कि मूसा अलैहिस्सलाम ने उन के लिए नम्रता का प्रदर्शन किया, जैसा कि मूसा अलैहिस्सलाम के इस कथन में है : "मैं आप का हुक्म मानूँ कि आप मुझे उस सच्चे इल्म को सिखा दें जो आप को सिखाया गया है?" (सूरतुल कह्फ :66) और इस कथन में है : "अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वाला पायेंगे।" (सूरतुल कह्फ :69) जबकि खिज़्र ने उनसे कहा : "और जिस चीज़ को आप ने अपने ज्ञान में न लिया हो उस पर सब्र कर भी कैसे सकते हैं?" (सूरतुल कह्फ : 68)
(अज़्वाउल बयान 3/326)
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद