सर्व प्रथम :
क्रेडिट कार्ड्स के उपयोग का हुक्म और उनमें से क्या अनुमेय है और क्या अनुमेय नहीं है, इन सब का वर्णन कई प्रश्नों में किया जा चुका है।
इसी तरह इस बात का भी उल्लेख किया जा चुका है कि विक्रेता के लिए उस खरीदार से कीमत प्राप्त करना जायज़ है जो इस तरह के क्रेडिट कार्ड का उपयोग करके भुगतान करता है, जैसा कि आजकल बहुत सी दुकानों में होता है, क्योंकि विक्रेता सीधे हराम लेनदेन में शामिल नहीं होता है, बल्कि वह केवल अपना हक़ प्राप्त करता है। प्रश्न संख्याः (102744) का उत्तर देखें।
दूसरा :
आपका यह प्रश्न किः (यदि खरीदार का धन हराम है, फिर उसने वेबसाइट के माध्यम से मेरी किताब खरीदी, फिर वह धन मेरे स्वामित्व में आ गया, तो क्या मेरे ऊपर कोई पाप होगाॽ)
तो उसका जवाब यह है : आपका बेचना ठीक है और आप पर कोई पाप नहीं है, क्योंकि विक्रेता के लिए ज़रूरी नहीं है कि वह उस धन के स्रोत के बारे में पूछे जो खरीदार के पास है, और न ही उसके बारे में खोज करने की ज़रूरत है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति जिसके पास कुछ धन है तो मूल सिद्धांत यह है कि वह धन उसी का है यहाँ तक कि उसके विपरीत पर कोई प्रमाण स्थापित हो जाए।
तथा किसी मनुष्य का हराम तरीक़े से कुछ धन कमाना उसके साथ वित्तीय लेनदेन करने से नहीं रोकता है, चुनाँचे मुसलमान यहूदियों के साथ क्रय-विक्रय करते थे, जबकि वे लोग सूद का कारोबार करते थे।
इब्ने रजब रहिमहुल्लाह ने फरमाया : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आफके सहाबा मुशरिकीन और अह्ले किताब के साथ लेनदेन किया करते जबकि वे जानते थे कि वो लोग तमाम हराम से परहेज़ नहीं करते हैं।''
''जामिउल उलूम वल-हिकम'' (पृष्ठ 179) से उद्धरण समाप्त हुआ।
तथा शैखुल-इस्लाम इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह ने कहा : ''सभी वे धन जो मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के हाथों में हैं, जिनके बारे में किसी प्रमाण या संकेत से यह नहीं जाना जाता है कि वह छीना हुआ है या इस तरह अधिग्रहित किया गया है कि उसके होते हुए अधिग्रहण करने वाले के साथ मामला करना जायज़ नहीं है, तो उनसे उसमें मामला करना बिना किसी संदेह के जायज़ है, और इस बाबत इमामों के बीच मैं कोई विभेद नहीं जानता हूं।''
''मजमूउल फतावा'' (29/327) से उद्धरण समाप्त हुआ।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।