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5,50111/जुम्डा प्रथम/1446 , 13/नवंबर/2024

उसका पति एक लंबे समय से उससे गायब था और जब वापस लौटा तो उसे गर्भवती पाया, तो उसे क्या करना चाहिए?

Question: 223180

यदि पति एक लंबे समय के लिए अपनी पत्नी के पास से यात्रा पर निकल गया और जब वापस लौटा तो उसे गर्भवती पाया। चुनाँचे उसे संदेह हो गया कि बेटा उसका नहीं है, तो इस स्थिति में उसे क्या करना चाहिए?

Texte de la réponse

Louanges à Allah et paix et bénédictions sur le Messager d'Allah et sa famille.

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

इस मसअले के हुक्म का संबंध एक दूसरे मसअले से है, और वह यह है कि भ्रूण के अपनी माँ के पेट में रहने की अधिकतम अवधि क्या है? यह विद्वानों के बीच एक विवादास्पद मुद्दा है, बल्कि चिकित्सकों के बीच भी, और राजेह बात यह है कि भ्रूण अपनी माँ के पेट में चाँद के एक वर्ष से अधिक नहीं रहता है, इसका वर्णन फत्वा संख्याः (140103) में हो चुका है।

लेकिन इसका राजेह होना इस बात से नहीं रोकता है कि ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें दुर्लभता और विसंगति के तौर पर गर्भ में देरी हो जाए। और शरीअत के प्रावधान अगरचे दुलर्भ के बजाय अधिकांश और अधिकतर पर आधारित होते हैं। परंतु यहाँ पर, सतीत्व (इज़्ज़त व आबरू) की रक्षा करने के लिए, प्रजातियों (नसब) को संरक्षित करने के लिए और ईमान वाली पवित्र महिलाओं को आरोप से बचाने के लिए, दुर्लभ को अपनाने में कोई रूकावट और आपत्ति नहीं है।

अल्लामा क़राफी रहिमहुल्लाह फरमाते हैं:

”यह बात अच्छी तरह जान लीजिए कि मूल सिद्धांत, अधिकतर का एतिबार करना, और उसे दुलर्भ पर प्राथमिकता देना है। यही शरीअत का तरीक़ा है . . . कभी कभी शरीअत बन्दों पर दया करते हुए अधिकतर और अक्सर होनेवाली चीज़ को रद्द कर देती है और उसके ऊपर दुर्लभ को प्राथमिकत देती है, इसका उदाहरण यह है कि: अधिकतर व अक्सर होनेवाली बात यह है कि बच्चा नौ महीने पर जन्म लेता है। अगर वह पाँच वर्ष के बाद एक ऐसी औरत से जन्म ले जिसे उसके पति ने तलाक़ दे दिया था, तो वह दो रूपों से अलग नहीं है या तो वह व्यभिचार (ज़िना) का है, और यही गालिब और अधिकतर संभावना है, और या तो वह अपनी माँ के पेट में देर तक रहा है, और ऐसा नादिर और दुर्लभ ही होता है। शरीअत ने यहाँ अधिकतर और गालिब को रद्द कर दिया, और दुलर्भ के हुक्म को साबित रखा है, और वह गर्भ का विलंब होना है। ऐसा बन्दों पर दया करते हुए किया गया है ताकि उनकी पर्दा पोशी हो सके, और उनके सतीत्व की भंग होने से रक्षा की जा सके।”कुछ परिवर्तन और संक्षेप के साथ ”अल-फुरूक़” (4/104) से अंत हुआ।

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