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महिला का अपने अभिभावक की अनुमति के बिना बाहर निकलना वर्जित है

प्रश्न: 226665

यदि पत्नी अपने पति की अनुमति के बिना घर से बाहर निकलती है तो उसके वापस होने तक स्वर्गदूत (फरिश्ते) उस पर शाप करते रहते हैं। क्या अगर लड़की अपने पिता या अपने अभिभावक की अनुमति के बिना बाहर निकलती है, तो उसके साथ भी यही होता है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

उत्तर
:

हर प्रकार
की प्रशंसा और
गुणगान केवल अल्लाह
के लिए योग्य है।

सर्व
प्रथम :

फुक़हा
इस बात पर सहमत
हैं कि पत्नी के
लिए – बिना किसी
ज़रूरत या धार्मिक
कर्तव्य के – अपने
पति की अनुमति
के बिना बाहर निकलना
हराम (निषिद्ध)
है। और ऐसा करने
वाली पत्नी को
वे अवज्ञाकारी
(नाफरमान) पत्नी
समझते हैं।

‘‘अल-मौसूअतुल
फिक़हिय्या’’ (19/10709) में आया है
कि :

‘‘मूल
सिद्धांत यह है
कि महिलाओं को
घर में ही रहने
का आदेश दिया गया
है,
और बाहर
निकलने से मना
किया गया है …अतः उसके
लिए बिना उसकी
– अर्थात पति की
– अनुमति के बाहर
निकलना जायज़ नहीं
है।

इब्ने
हजर अल-हैतमी कहते
हैं : यदि किसी महिला
को पिता की ज़ियारत
के लिए बाहर निकलने
की ज़रूरत पड़ जाए,
तो वह अपने पति
की अनुमति से श्रृंगार
का प्रदर्शन किए
बिना बाहर निकलेगी।
तथा इब्ने हजर
अल-असक़लानी ने
निम्न हदीस :

(”अगर
तुम्हारी औरतें
रात को मस्जिद
जाने के लिए अनुमति
मांगें तो तुम
उन्हें अनुमति
प्रदान कर दिया
करो।’’ )

पर टिप्पणी
के संदर्भ में
इमाम नववी से
उल्लेख किया है
कि उन्हों ने कहा
: इससे इस बात पर
तर्क लिया गया
है कि औरत अपने
पति के घर से बिना
उसकी अनुमति के
नहीं निकलेगी,
क्योंकि यहाँ
अनुमति देने का
आदेश पतियों से
संबंधित है।’’
संक्षेप के
साथ ‘‘अल-मौसूआ’’ से उद्धरण
समाप्त हुआ।

दूसरा
:

और इसी
के समान वह लड़की
भी है जो अपने वली
(अभिभावक) के घर
से उसकी अनुमति
के बिना निकलती
है। अगर उसका अभिभावक
उसकी शादी करने
के मामले का मालिक
है,
तो वह
उसके सभी मामलों
में उसके ऊपर निरीक्षण
करने का तो और अधिक
मालिक होगा।
और उन्हीं
में से यह भी है
कि : वह उसे अपने
घर से बाहर निकलने
की अनुमति दे, या
अनुमति न दे ;
विशेषकर ज़माने
की खराबी,
भ्रष्टाचार
और परिस्थितियों
के बदलने के साथ।
बल्कि वली (अभिभावक)
पर – चाहे वह बाप
हो या भाई – अनिवार्य
है कि वह इस ज़िम्मेदारी
को उठाए,
और उसके पास
जो अमानत
(धरोहर) है उसकी रक्षा
करे,
ताकि
वह अल्लाह तआला
से इस हाल में मिले
कि उसने अपनी बेटी
को सभ्य बनाया
हो,
उसे
शिक्षा दिलाई हो
और उसके साथ अच्छा
व्यवहार किया हो।
तथा लड़की पर अनिवार्य
है कि वह इस तरह
की चीज़ों में,
और भलाई के
सभी मामले में
उसका विरोध न करे,
और अपने घर
से अपने अभिभावक
की अनुमति के बिना
बाहर न निकले।

तीसरा
:

हमारी
जानकारी के अनुसार
– अपने पति के घर
से बिना उसकी अनुमति
के बाहर निकलने
वाली महिला पर
शाप करने के बारे
में कोई सहीह हदीस
नहीं है। परंतु
इस बारे में जो
कुछ वणित है वह
दो ज़ईफ (कमज़ोर) हदीसें
हैं :

पहली
हदीस:

इब्ने
उमर
रज़ियल्लाहु
अन्हुमा से वर्णित
है कि उन्हों ने
कहा : ‘‘एक महिला
नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
के पास आई और कहा
: ऐ अल्लाह के पैगंबर,
पति का अपनी
पत्नी के ऊपर क्या
अधिकार हैं?

आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने फरमाया : वह उसे
अपने आप से (लाभान्वित
होने से) न रोके
अगरचे वह सवारी
की पीठ ही पर क्यों
न हो।

उस महिला
ने (फिर) कहा : ऐ अल्लाह
के पैगंबर,
पति का अपनी
पत्नी के ऊपर क्या
अधिकार है?

आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने फरमाया : वह उसके
घर में से किसी
चीज़ को उसकी अनुमति
के बिना दान में
न दे। यदि उसने
ऐसा किया तो उसे
अज्र (पुण्य) मिलेगा
और उस महिला के
ऊपर गुनाह होगा।

उस महिला
ने (फिर) कहा : ऐ अल्लाह
के पैगंबर,
पति का अपनी
पत्नी के ऊपर क्या
अधिकार है?

आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने फरमाया : वह उसके
घर से उसकी अनुमति
के बिना बाहर न
निकले। यदि उसने
ऐसा किया : तो अल्लाह
के स्वर्गदूत,
दया के स्वर्गदूत
और प्रकोप के स्वर्गदूत
उस पर शाप करते
हैं यहाँ तक कि
वह तौबा कर ले या
लौट आए।

उसने
कहा : ऐ अल्लाह के
पेगंबर! यदि वह
उस पर अत्याचार
करने वाला हो तो?

आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
ने फरमाया : अगरचे
वह उस पर अत्याचार
करने वाला ही क्यों
न हो।

उसने
कहा : उस अस्तित्व
की क़सम जिसने आप
को सत्य के साथ
भेजा है इसके बाद
जब तक मैं जीवित
हूँ मेरे ऊपर मेरे
मामले का कभी कोई
मालिक नहीं होगा।’’

इस हदीस
को इब्ने अबी शैबा
ने ‘‘अल-मुसन्नफ’’ (हदीस संख्या
: 17409) में,
अब्द
बिन हुमैद ने ‘‘अल-मुसनद’’ (हदीस संख्या:
813),

अबू तयालिसी
ने ‘‘अल-मुसनद’’ (3/456),
और बैहक़ी
ने ‘‘अस-सुननुल
कुबरा’’ (7/292) में,
सभी ने लैस
बिन अबी सलीम के
तरीक़े से अता से
और उन्हों ने इब्ने
उमर
रज़ियल्लाहु
अन्हुमा से रिवायत
किया है।

यह हदीस
ज़ईफ है,
इसमें
दो इल्लतें (कमज़ोरियाँ)
पाई जाती हैं :

1- लैस
बिन अबी सलीम: हदीस
के विज्ञान के
आलोचक उन्हें ज़ईफ
क़रार देने पर सहमत
हैं। देखिए: ‘‘तहज़ीबुत तहज़ीब’’ (8/468).

2- हदीस
के शब्दों में
इख्तिलाफ़ का पाया
जाना,
जिससे
पता चलता है
कि लैस इसके अंदर
इज़ितराब के शिकार
हुए हैं। इसीलिए
हाफिज़ इब्ने हजर
रहिमहुल्लाह ने
‘‘अल-मतालिबुल
आलिया‘‘ (5/189) में
कहा है : ‘‘और यह विरोधाभास
(इख़्तिलाफ) लैस
बिन अबी सलीम की
तरफ से है और वह
ज़ईफ हैं।’’
अंत हुआ।

इस हदीस
को शैख अल्बानी
रहिमहुल्लाह ने
‘‘अस-सिलसिला
अज़-ज़ईफा’’ (हदीस संख्या:
3515) में ज़ईफ करार दिया
है।

दूसरी
हदीस:

इब्ने
अब्बास रज़ियल्लाहु
अन्हुमा से वर्णित
है कि :

‘‘खसअम
नामी क़बीले की
एक महिला नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
के पास आई और उसने
कहा :

ऐ अल्लाह
के नबी! मैं बिना
पति वाली महिला
हूँ और मैं शादी
करना चाहती हूँ।
तो आप बतलाएं कि
पति का उसकी पत्नी
के ऊपर क्या हक़
(अधिकार) है?
अगर मैं उसपर
सक्षम हूँ तो ठीक
है,
अन्यथा
मैं बिना पति के
ही बैठी रहूँगी?

तो नबी
सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम ने फरमाया
:
‘‘पति का अपनी
पत्नी के ऊपर यह
अधिकार है कि जब
वह उससे लाभान्वित
होने की इच्छा
करे और वह उसके
ऊँट की पीठ पर भी
हो तो वह उसे मना
न करे। तथा पति
के पत्नी पर अधिकारों
में से यह भी है
कि वह अपने घर से
उसकी अनुमति के
बिना कुछ न दे,
यदि उसने ऐसा
किया तो गुनाह
उसके ऊपर होगा
और सवाब उसके अलावा
को मिलेगा। तथा
पति का पत्नी के
ऊपर यह अधिकार
भी है कि वह उसके
घर से उसकी अनुमति
के बिना बाहर न
निकले। यदि उसने
ऐसा किया तो फरिश्ते
उस पर शाप करते
हैं यहाँ तक कि
वह लौट आए या तौबा
(पश्चाताप) कर ले।’’
इसे बज़्ज़ार
(2/177) और अबू याला ने
‘‘अल-मुसनद’’(4/340) में खालिद
अल-वासिती के तरीक़
से,
हुसैन
बिन क़ैस से,
उन्हों ने
इक्रमा से,
उन्हों ने
इब्ने अब्बास से
रिवायत किया है।

शैख
अल्बानी रहिमहुल्लाह
ने फरमाया :

‘‘यह हुसैन
वही हैं जिनका
लक़ब (उपनाम) ‘‘हनश’’
है,
और वह
मतरूक रावी हैं
(यानी ऐसा
रावी जिससे
रिवायत करना छोड़
दिया गया हो) जैसाकि
हाफिज़ इब्ने हजर
ने ‘‘अत-तक़रीब’’
में कहा है।
और इसी की ओर ज़हबी
ने भी ”अल-काशिफ”
में संकेत
किया है : ‘‘बुखारी ने
कहा : उसकी हदीसे
को नहीं लिखा जायेगा।’’
और अल-हैसमी
ने भी उसकी यही
इल्लत बयान की
है,
लेकिन
उन्हों ने कहा
है (4/307) कि : ‘‘इसे बज़्ज़ार
ने रिवायत किया
है,
इसमें
हुसैन बिन क़ैस
नामी रावी हैं
जो ‘‘हनश’’
से परिचित
हैं,
और वह
ज़ईफ हैं,
हुसैन बिन
नुमैर ने उन्हें
सिक़ा (विश्वस्त)
क़रार दिया है,
और उसके शेष
रावी भरोसेमंद
(विश्वस्त) हैं।’’

तथा
मुंज़िरी ने इस
हदीस को ज़ईफ क़रार
देने की ओर इस तरह
संकेत किया है
कि ‘‘अत-तर्गीब’’ (3/77) में इसका वर्णन
‘‘रिवायत किया
गया है’’
के शब्द
से शुरू किया है।’’

‘‘अस्सिलसिलतुज़्ज़ईफा’’ (हदीस संख्या
: 3515) से अंत हुआ।

चौथा
:

उपर्युक्त
बातों के आधार
पर,
हम भी
उसी तरह कहते हैं,
जैसा कि विद्वानों
ने कहा है कि : महिलाओं
के लिए अपने अभिभावकों
की अनुमति के बिना
बाहर निकलना हराम
(वर्जित) है,
और इस मामले
में चाहे वे शादीशुदा
हों या शादीशुदा
न हों सब बराबर
हैं,
लेकिन
हम यह नहीं कहते
कि इस पर फरिश्तों
की ओर से शाप निष्कर्षित
होता है,
क्योंकि इस
विषय में वर्णित
हदीस प्रमाणित
नहीं है।

और अल्लाह
तआला ही सबसे अधिक
ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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