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एक विद्यार्थी लोगों को उनके सवालों के जवाब में विद्वानों के फत्वे बताता है और वह इसके हुक्म के बारे में शंकित है।

प्रश्न: 228377

मैं सऊदी अरब में एक प्रारंभिक विद्यार्थी हूँ, और सीरिया में मेरे कुछ रिश्तेदार रहते हैं, जो कि मुझसे सवाल करते रहते हैं और उनका उत्तर जानने के लिए कहते हैं। इसलिए मैं उनके प्रश्नों का उत्तर ढ़ूँढ़ने का प्रयास करता हूँ। उदाहरण के लिए वे मुझसे वित्र की नमाज़ के बारे में पूछते हैं, तो मैं उन्हें इसके बारे में आपका फत्व बताता हूँ। तथा वे मुझसे पर्दा के हुक्म और उसके प्रमाण के बारे में पूछते हैं, तो मैं शैख़ इब्ने बाज़ और शैख़ इब्ने उसैमीन जैसे विद्वानों के फत्वों को बयान करता हूँ। तथा वे अन्य साधारण सवाल भी पूछते हैं, जिनका मैं उत्तर ढ़ूँढता हूँ तथा उनके बारे में विद्वानों से सवाल भी करता हूँ ताकि उन तक जवाब पहुँचा सकूँ। तथा ज्ञान को प्रसारित करने के उद्देश्य से मैं उन्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नमाज़ की विधि भी बताता हूँ। तथा उनके अधिकतर सवालों के उत्तर के लिए मैं आपके फत्वों और इस्लाम वेब के फत्वों का हवाला देता हूँ.. तो क्या इस प्रकार उनके प्रत्येक प्रश्न का जवाब देना अच्छा हैॽ इसलिए कि कभी-कभी मुझे भ्रम पैदा होता है कि मैं विद्वानों के स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ और अभी से फत्वा का हवाला देता हूँ, और उनके साथ चर्चा करता हूँ और अनुसंधान करता हूँ.. ज्ञात रहे जिन प्रश्नों का उत्तर मुझे नहीं मालूम होता है तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के तुरंत ही कह देता हूँ कि मुझे नहीं पता। कभी कभी वे बहुत प्रश्न पूछते हैं, तो इस बारे में आपकी राय क्या है? यह भी स्पष्ट रहे कि ठोस और निश्चित उत्तर के लिए मैं वेबसाइटों पर सर्च करता हूँ और जब तक मुझे जवाब के सही होने का यक़ीन न हो जाए मैं जवाब नहीं देता हूँ।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

उत्तर :

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।

सर्वप्रथम :

अपने धर्म की शिक्षा सीखने तथा अन्य लोगों को सिखाने में आपकी रूचि के लिए, अल्लाह आपको अच्छा बदला प्रदान करे, और हम आपको – यदिआपकी नीयत अल्लाह के लिए ख़ालिस औक विशुद्ध है – महान स़वाब की शुभसूचना देते हैं। जैसा कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया है :

(निःसंदेह अल्लाह, उसके फ़रिश्ते और आसमान व ज़मीन के वासी यहाँ तक कि चींटिया अपनी बिलों में और यहाँ तक कि मछलियाँ (पानी में) उस आदमी के लिए, जो लोगों को भलाई की शिक्षा देनेवाला है, ख़ैर व बरकत की दुआएँ करती हैं।) इस हदीस को तिरमिज़ी (हदीस संख्या : 2609) ने रिवायत किया है और शैख़ अल्बानी ने ”सहीहुल जामे”’ (हदीस संख्या : 1838) में इसे सही क़रार दिया है।

द्वितीय :

आप ने जो कुछ ज्ञान सीखा है, उसे निम्निलिखित शर्तों के साथ दूसरों को बताने में कुछ भी गलत नहीं है :

– आप सुनिश्चित हों कि आप मसायल को समझते हैं और उन्हें ज्ञान के विश्वसनीय स्रोतों से उद्धृत कर रहे हैं।

– आप यह सुनिश्चित करें कि आप जो कुछ उद्धृत कर रहे हैं, उसे सही ढंग से समझ रहे हैं ताकि आप उद्धरण में ग़लती न करें।

ज्ञान के संचारक के लिए यह शर्त नहीं है कि वह एक मुज्तहिद विद्वान हो, बल्कि उसके लिए यह शर्त है कि जो कुछ वह संचारण कर रहा है उसे समझ रहा हो। जैसा कि उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं :

(ऐ लोगो! मैं तुमसे एक बात कहने जा रहा हूँ… अतः जो व्यक्ति उसे समझे और याद रखे तो चाहिए कि जहाँ तक मुम्किन हो वह उसे बयान करे, और जिसे डर हो कि वह उसे नहीं समझ रहा है, तो मैं किसी के लिए जायज़ नहीं ठहराता कि वह मुझ पर झूठ बाँधे।) इस हदीस को बुख़ारी (हदीस संख्या : 6830) ने रिवायत किया है।

इब्ने बत़्त़ाल रहिमहुल्लाह हदीस की व्याख़्या करते हुए कहते हैं :

”हदीस के शब्द : (जो व्यक्ति उसे समझे और याद रखे तो चाहिए कि वह उसे बयान करे।) का मतलब यह है कि वह अपनी याद और समझ के अनुसार उसे बयान करे।

और इसमें ज्ञान की बातों को अच्छी तरह याद रखने और समझने वालों के लिए प्रोत्साहन है कि वे उसका प्रचार प्रसार करें।

तथा आपके फरमान : (और जिसे डर हो कि वह उसे नहीं समझ रहा है तो मैं किसी के लिए जायज़ नहीं ठहराता कि वह मुझ पर झूठ बाँधे।) में उन लोगों को जो लापरवाही करनेवाले और अज्ञानी हैं उस चीज़ के बारे में बात करने से रोका गया है जिसे वे लोग न समझते हैं और न याद ही रखते हैं।”

”शर्ह सहीह बुख़ारी (8/459)” से। समाप्त हुआ।

तथा शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :

यदि मुझे किसी प्रश्न से संबंधित एक वरिष्ठ विद्वान के फत्वे का ज्ञान हो तो उसके मुताबिक़ फत्वा देने का क्या हुक्म है?

तो शैख़ ने जवाब दिया :

”भरोसेमंद विद्वानों के कथन के अनुसार फत्वा देने में कोई हर्ज नहीं है। किन्तु फत्वा देते समय आप इस प्रकार का शब्द प्रयोग करें : फलाँ (विद्वान) ने ऐसा और ऐसा कहा है, यदि आपको यक़ीन हो कि यह उनका कथन है, तथा आपको इस बात का भी ज्ञान हो कि इसी प्रकार के सवाल के जवाब में उन्होंने ने फत्वा दिया है जिस प्रकार का सवाल आपसे किया गया है।

परंतु यदि आप स्रोत का उल्लेख किए बिना फत्वा दे रहे हैं, तो यह उचित नहीं है। क्योंकि यदि आप स्रोत का उल्लेख किए बिना फत्वा देते हैं, तो फ़त्वा को आप अपनी ओर संबंधित कर रहे हैं (अर्थात उसका ज़िम्मेदार अपने आपको ठहरा रहे हैं), लेकिन अगर आप इसे किसी और से उद्धृत कर रहे हैं, तो आप एक वर्णनकर्ता हैं (और) इस फ़त्वा के प्रभाव (परिणामों) से सुरक्षित रहेंगे तथा आप इस बात से भी सुरक्षित रहेंगे कि आपकी ओर ऐसी चीज़ मन्सूब की जाए जिसके आप योग्य नहीं हैं।

अतः मुक़ल्लिद (किसी अन्य का अनुकरण करने वाले) व्यक्ति को चाहिए कि वह कथन को उसी व्यक्ति की तरफ मन्सूब करे जिसकी वह तक़्लीद (अनुकरण) कर रहा है, न कि स्वयं अपनी तरफ मन्सूब करे, इसके विपरीत जो व्यक्ति किसी मस्अले के हुक्म पर क़ुर्आन और हदीस से तर्क स्थापित करता है और वह क़ुर्आन व हदीस से तर्क स्थापित करने में सक्षम हैः तो उसके लिए उस कथन को अपनी ओर संबंधित करते हुए फत्वा देने में कोई हर्ज नहीं है।”

”मज्मूओ फतावा व रसायल अल-उसैमीन (26/409)” से समाप्त हुआ।

हालांकि, यदि आपके लिए सम्भव है कि जो मुद्दा (सवाल) आपके पास आया है, और विद्वानों के कथनों के माध्यम से जिस उत्तर तक आप पहुँचे हैं, उसे अपने निकट के किसी शैख़ (विद्वान) या अपने से किसी वरिष्ठ विद्यार्थी पर प्रस्तुत करें, ताकि वह आपको आश्वासन दे सके कि आपकी समझ सही है और इसका उत्तर उस रूप के अनुकूल है जिसके बारे में प्रश्न किया गया हैः तो ऐसा करना सर्वश्रेष्ठ है और आपके लिए अधिक सावधानीपूर्ण है।

किन्तु यदि यह संभव नहीं है, तो किसी डर के कारण, आप किसी ऐसे लाभ को बर्बाद न करें, जिसे आप ने निश्चित रूप से विद्वानों के कथनों से ग्रहण किया है।

तथा अधिक जानकारी के लिए प्रश्न संख्या : (103895) का उत्तर देखें।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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