मेरे पास गहने (आभूषण) बेचने की एक दुकान है, और मेरे कुछ रिश्तेदार या दोस्त मेरे पास सोना खरीदने के लिए आते हैं। वे मुझसे सोना लेने और एक या दो दिन बाद क़ीमत लाने के लिए कहते हैं। मुझे डर है कि अगर मैं उनसे कहूँ कि यह हराम है, तो यह रिश्तेदारी के संबंधों को तोड़ने का कारण बन जाएगा।
पैसे के बदले सोना बेचना जायज़ नहीं है, जब तक कि उसी सभा में पूरा दाम प्राप्त न कर ले
Question: 22869
Praise be to Allah, and peace and blessings be upon the Messenger of Allah and his family.
पैसे (केश) के बदले सोना बेचना जायज़ नहीं है, सिवाय इस शर्त के साथ कि सोना और पैसा एक ही बैठक में प्राप्त कर लिया जाए। इसी को फुक़हा “तक़ाबुज़” का नाम देते हैं। चुनाँचे खरीदार सोना प्राप्त कर ले और विक्रेता पैसा प्राप्त कर ले। बिना तक़ाबुज़ के सोना बेचना जायज़ नहीं है। प्रश्न संख्या (65919 ) देखें।
अतः आपके लिए अनिवार्य है कि उस व्यक्ति को जो आपसे खरीदता है यह बात समझा दें। तथा मुसलमान के लिए अनिवार्य है कि अल्लाह या उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो आदेश दिया है, उसे सुने और उसका पालन करे। और यह कि आप ऐसा इसलिए नहीं कर रहे हैं कि आपको, उदाहरण के लिए, उनकी अमानतदारी पर भरोसा नहीं है। बल्कि, आप इसे शरीयत के अनुपालन में करते हैं। तथा आपको इसे नरमी और सौम्यता के साथ समझाना चाहिए।
शैख मुहम्मद बिन सालेह बिन उसैमीन रहिमहुल्लाह से पूछा गया :
सोने को उसकी क़ीमत मिलने से पहले निकालने का क्या हुक्म है, और अगर वह किसी रिश्तेदार के लिए है जिसके रिश्तेदारी के संबंधों के टूटने का डर है, जबकि मुझे पक्का पता है कि वह उसकी क़ीमत भुगतान कर देगा, भले ही कुछ समय बाद होॽ
तो उन्होंने जवाब दिया :
“आपको यह सामान्य नियम पता होना चाहिए कि पूरी क़ीमत प्राप्त किए बिना सोने को दिरहम (पैसे) के बदले बेचना जायज़ नहीं है। इसमें निकट और दूर के बीच कोई अंतर नहीं है। क्योंकि अल्लाह के धर्म में किसी का पक्ष नहीं लिया जाता है। यदि सर्वशक्तिमान अल्लाह का आज्ञापालन करने की वजह से कोई रिश्तेदार आपसे नाराज़ हो जाए, तो उसे नाराज़ होने दें। क्योंकि वही अत्याचारी और पापी है जो आपसे चाहता है कि आप अल्लाह की अवज्ञा करें। और वास्तव में आपने उसे अपने साथ हराम तरीक़े से लेन-देन करने से रोककर नेकी की है। अतः अगर इस कारण से वह क्रोधित हो जाता है या आपसे संबंध तोड़ लेता है, तो वही पापी है और आप उसके पाप के लिए कुछ भी ज़िम्मेदार नहीं हैं।”
(फ़िक़्ह व फ़तावा अल-बुयू'/अशरफ़ अब्दुल-मक़सूद द्वारा संकलित, पृष्ठ : 389).
Source:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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