राफिज़ा का मिथ्यारोप कि उमर बिन खत्ताब रजियल्लाहु अन्हु ने शराब पी है!!
प्रश्न: 237679
क्या अहले सुन्नत व जमाअत की किताबों में यह बात उपस्थित है कि अमीरूल मोमिनीन उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने शराब पी है, यहाँ तक कि अपने इस्लाम लाने के बाद भी, और क्या यह हमारी किताब में मौजूद है? क्योंकि कुछ शिया लोगों ने जिनसे मैं बहस कर रहा हूँ, उन्हों ने इसका उल्लेख किया है, मैं नहीं जानता कि उन लोगों को कैसे जवाब दूँ।
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
उत्तर :
हर प्रकार
की प्रशंसा और
गुणगान केवल अल्लाह
के लिए योग्य है।
यह आरोप,
एक झूठ
और मनगढ़ंत आरोप
है। और यह बात प्रत्येक
मुसलमान को अच्छी
तरह ज्ञात है कि
एक मुसलमान के
लिए जायज़ नहीं
है कि वह किसी व्यक्ति
को किसी भी प्रकार
के पाप से आरोपित
करे,
सिवाव
इसके कि उसके पास
कोई स्पष्ट प्रमाण
हो जिसमें कोई
संदेह न हो।
जब बिना
प्रमाण और सबूत
के लोगों पर आरोप
लगाना एक महा पाप
है,
तो फिर
उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु जैसे व्यक्ति
पर आरोप लगाना
कैसा होगा?!
जबकि उमर
फारूक़ रज़ियल्लाहु
अन्हु ने अपने
इस्लाम लाने के
समय से ही शराब
के विरूध युद्ध
की घोषणा कर दी
थी। चुनांचे उसके
निषिद्ध किए जाने
से पहले ही उन्हें
उसके खतरे की चिन्ता
हो गई थी। उमर बिन
खत्ताब रज़ियल्लाहु
अन्हु से वर्णित
है कि उन्हों ने
कहा :
‘‘जब शराब
का निषेध अवतरित
हुआ,
तो उमर
रज़ियल्लाहु अन्हु
ने कहा : ऐ अल्लाह!
हमारे लिए शराब
के बारे में स्पष्ट,
संतोषजनक
हुक्म बयान कर,
तो सूरतुल
बक़रा की यह आयत
उतरी :
يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ
وَالْمَيْسِرِ قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ
‘‘वे आप
से शराब और जुए
के बारे में प्रश्न
करते हैं,
आप कह
दीजिए कि उन दोनों
के अंदर बड़ा गुनाह
है।’’
(सूरतुल बक़रा
: 219) कथावाचक कहते
हैं कि: तो उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु को बुलाया
गया और उन्हें
यह आयत पढ़कर सुनाई
गई। तो उन्हों
ने फिर कहा : ऐ अल्लाह! शराब
के बारे में हमारे
लिए स्पष्ट हुक्म
बयान कर जिससे
संतुष्टि हो जाए।
तो सूरतुन निसा
की यह आयत उतरी
:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا
لَا تَقْرَبُوا الصَّلَاةَ وَأَنْتُمْ سُكَارَى
‘‘ऐ ईमान वालो
नशे की हालत में
नमाज़ के निकट न
जाओ।’’
(सूरतुन्
निसाः 43) चुनांचे
नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
का मुनादी (नादकर्ता)
जब नमाज़ खड़ी की
जाती थी तो आवाज़
लगाता था : सावधान! कोई
नशे में धुत आदमी
नमाज़ के निकट न
आए। फिर उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु को बुलाया
गया और उन्हें
यह आयत पढ़कर सुनाई
गई,
तो उन्हों
ने फिर कहा : ऐ अल्लाह!
शराब के बारे में
हमारे लिए स्पष्ट
हुक्म बयान कर
जिससे संतुष्टि
हो सके। तो यह आयत
उतरी
:
فَهَلْ أَنْتُمْ مُنْتَهُونَ
‘‘तो क्या तुम
बाज़ आने वाले हो?’’
(सूरतुल
मायदाः 91)
उमर
रज़ियल्लाहु अन्हु
ने कहा:
‘‘हम बाज़ आ गए।’’
इसे
अबू दाऊद (हदीस
संख्या : 3670) ने रिवायत
किया है।
फिर उन्हों
ने खिलाफत की बागडोर
संभालने के बाद
लोगों को शराब
से सावधान करने
और उसका हुक्म
स्पष्ट करने की
ओर ध्यान दिया।
इब्ने उमर
रज़ियल्लाहु अन्हुमा
से वर्णित है कि
उन्हों ने कहा
: ‘‘मैं
ने उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु को नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
के मिंबर पर फरमाते
हुए सुना : अम्मा
बाद, ऐ लोगो! शराब
का निषेध अवतरित
हो चुका है,
और वह
पाँच चीज़ों से
बनाई जाती है : अंगूर,
खजूर,
शहद,
गेहूं और जौ।
और शराब वह है जो
अक़्ल (बुद्धि) को
ढांप ले।’’
इसे
बुखारी (हदीस संख्या
: 4619) और मुस्लिम (हदीस
संख्या :3032) ने रिवायत किया
है।
इसी प्रकार
उन्हों ने शराब
पीने का दण्ड निधार्रित
करने की ओर ध्यान
दिया,
जब उन्हें
इसका कोई स्पष्ट
प्रमाण न मिला,
और बड़े
बड़े सहाबा रज़ियल्लाहु
अन्हु से इस विषय
में विचार विमर्श
किया।
अनस बिन
मालिक रज़ियल्लाहु
अन्हु से वर्णित
है कि :
‘‘नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
के पास एक आदमी
लाया गया जिसने
शराब पी थी,
तो आप
ने उसे खजूर की
दो डालियों से
लगभग चालीस बार
मारे। वह कहते
हैं कि : और अबू बक्र
रज़ियल्लाहु अन्हु
ने भी ऐसा ही किया।
फिर जब उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु का ज़माना
आया तो उन्हों
ने लोगों से विचार
विमर्श किया। तो
अब्दुर्रहमान
ने कहा : सबसे हल्का
हद (डण्ड) अस्सी
(कोड़ा) है। तो उमर
ने इसी का आदेश
कर दिया।’’
इसे
मुस्लिम (हदीस
संख्या : 1706) ने रिवायत
किया है।
तो क्या
मानव प्रकृति में
यह बात समझ में
आती है कि एक व्यक्ति
जो मुस्लिम समाज
को शराब से पवित्र
करने की ओर इस स्तर
तक ध्यान देता
है,
और आजीवन
इसी पथ पर स्थिर
रहता है,
फिर वह शराब
पीने के बारे में
असावधान हो जाएगा?!
राफिज़ा
की ओर से यह मिथ्यारोप
उनके लिए आश्चर्य
की बात नहीं है,
जबकि
शैखुल इस्लाम इब्ने
तैमिय्या रहिमहुल्लाह
ने उनके बारे में
यह वर्णन किया
है कि ‘‘वे सामान्य
रूप से उम्मत के
दलों में सबसे
अधिक झूठ बोलने
वाले हैं।’’
‘‘मजमूउल फतावा’’ (27/125) से
समाप्त हुआ।
तथा हदीस
और आसार की किताबों
में कहीं भी यह
बात मौजूद नहीं
है कि उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु ने शराब
पी है। बल्कि इस
बारे में अधिक
से अधिक जो बात
वर्णित वह यह है
कि उन्हों ने नबीज़
पी है। और यह आप
रज़ियल्लाहु अन्हु
की मृत्यु की कहानी
में साबित है कि
चिकित्सक ने उन्हें
नबीज़ पिलाई थी।
नबीज़ का
शब्द शराब के लिए
बोला जाता है,
तथा
उस पानी पर भी बोला
जाता है जिसमें
कुछ खजूर या किशमिश
डाल दिया जाता
है ताकि पानी मीठा
हो जाए फिर उसके
शराब बनने से पहले
उसे पी लिया जाता
है। तो इस दूसरे
प्रकार को ही उमर
रज़ियल्लाहु अन्हु
ने पिया था। तथा
नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
भी इसे पीते थे।
और इसके जायज़ होने
पर विद्वानों की
सर्वसम्मति है।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु
अन्हुमा कहते हैं
: ‘‘नबी
सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम अपनी सवारी
पर आए और आपके पीछे
उसामा बैठे थे।
आप ने पीने के लिए
फरमाइश की तो हमने
आपको नबीज़ का एक
बर्तन पेश किया।
आप ने स्वयं पिया
और उससे जो बचा
उसे उसामा को पिला
दिया और फरमाया
: तुम ने अच्छा किया,
तुम
ने बढ़िया किया,
इसी
तरह तुम बनाया
करो।’’
इसे मुस्लिम
(हदीस संख्या: 1316)
ने रिवायत किया
है।
इमाम नववी
रहिमहुल्लाहु
तआला ने फरमाया
:
‘‘यह नबीज़ : किशमिश
या इसके अलावा
किसी अन्य चीज़
के द्वारा मीठा
किया गया पानी
है,
इस तरह
कि उसका स्वाद
अच्छा हो जाए,
और वह
नशा पैदा करने
वाला न हो। लेकिन
यदि उसका समय लंबा
हो जाए और वह नशा
पैदा करनेवाला
हो जाए : तो वह हराम
(निषिद्ध) है।’’
शरह
सहीह मुस्लिम
(9/64) से अंत हुआ।
तथा आप रहिमहुल्लाह
ने फरमाया :
‘‘नबीज़ पीना
उस समय तक जायज़
है : जब तक कि
वह मीठा है परिवर्तित
नहीं हुआ है,
और उसमें
नशा नहीं पैदा
हुआ है
;
और यह उम्मत
की सर्वसहमति के
साथ जायज़ है।’’
‘‘शरह सहीह मुस्लिम’’ (13/174) से
समाप्त हुआ।
आश्चर्य
है उस व्यक्ति
पर जो ऐसी दर्जनों
हदीसों से मुँह
फेर लेता है जिनमें
उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु के गुण,
प्रतिष्ठा
और उनके धर्म की
शक्ति का उल्लेख
है,
और यह
कि वह नबी सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम
और अबू बक्र रज़ियल्लाहु
अन्हु के बाद इस
उम्मत के सबसे
अच्छे व्यक्ति
हैं,
और इस
पर सहाबा रज़ियल्लाहु
अन्हु की सर्वसहमति
है,
और अली
रज़ियल्लाहु अन्हु
ने इसकी गवाही
दी है और कूफा के
मिंबर पर इसकी
घोषण की है। इसके
बाद भी वह उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु को (नबीज़)
जैसे संदिग्ध व
संभावित शब्द के
द्वारा आरोपित
करना चाहता है,
जबकि
साफ,
स्पष्ट
और ठोस चीज़ को छोड़
देता है जो उनकी
विशेषतक व प्रतिष्ठा
को साबित करती
है। यह उन जोगों
का रास्ता है जिनके
दिलों में टेढ़
है। अल्लाह तआला
ने फरमाया :
فَأَمَّا الَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ
زَيْغٌ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَابَهَ مِنْهُ
‘‘जिनके दिलों
में कुटिलता (टेढ़ापन)
है,
वे उसकी
संदिग्ध आयतों
का अनुसरण करते
हैं।’’ (सूरत आल इम्रान : 7)
और अल्लाह
तआला ही सबसे अधिक
ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर