मैं महर से संबंधित इस्लामी दृष्टिकोण जानना चाहता हूँ। क्या इस्लाम महर की अनुमति देता है, या कि वह इसे एक पाप मानता हैॽ यदि महर एक पाप है, तो अतीत में महर प्राप्त करने वाले व्यक्ति को इसके साथ क्या करना चाहिएॽ
महर पत्नी का प्रमाणित अधिकार है
प्रश्न: 2378
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
इस्लाम में महर पत्नी के अधिकारों में से एक है, जिसे वह संपूर्ण रूप से प्राप्त करेगी और वह उसके लिए हलाल है, उसके विपरीत कि कुछ देशों में यह प्रचलित है कि पत्नी के लिए कोई महर नहीं है। पत्नी को उसका महर देने के अनिवार्य होने के प्रमाण कई एक हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
अल्लाह तआला का फ़रमान है :
وَءاتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً
سورة النساء : 4
“और तुम महिलाओं को उनके महर खुशी से दो।” (सूरतुन-निसा : 4).
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने इस आयत के विषय में मुफ़स्सेरीन (क़ुरआन के व्याख्याकारों) की टिप्पणियों के अंतर्गत फरमाया : “पुरुष को निश्चित रूप से महिला को महर का भुगतान करना चाहिए और ऐसा खुशी-खुशी करना चाहिए।”
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَإِنْ أَرَدْتُمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَكَانَ زَوْجٍ وَءَاتَيْتُمْ إِحْدَاهُنَّ قِنْطَارًا فَلَا تَأْخُذُوا مِنْهُ شَيْئًا أَتَأْخُذُونَهُ بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا وَكَيْفَ تَأْخُذُونَهُ وَقَدْ أَفْضَى بَعْضُكُمْ إِلَى بَعْضٍ وَأَخَذْنَ مِنْكُمْ مِيثَاقًا غَلِيظًا
سورة النساء : 20-21
“और यदि तुम एक पत्नी के स्थान पर दूसरी पत्नी लाना चाहो और तुमने उनमें से किसी को (महर में) ढेर सारा धन दे रखा हो, तो उसमें से कुछ न लो। क्या तुम उसे अनाधिकार और खुला गुनाह होते हुए भी ले लोगे। तथा तुम उसे कैसे ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो और वे तुमसे (विवाह के समय) दृढ़ वचन (भी) ले चुकी हैं।” (सूरतुन-निसा : 20-21).
इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह ने कहा : इसका मतलब यह है कि : यदि तुम में से कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अलग करना (तलाक देना) चाहता है और उसकी जगह दूसरी पत्नी लाना चाहता है, तो उसने पहली पत्नी को जो महर दिया है उसमें से उसे कुछ भी नहीं लेना चाहिए, भले ही वह बहुत बड़ा धन रहा हो। क्योंकि महर को वैवाहिक संबंधों का आनंद लेने के अधिकार के बदले में दिया जाता है। इसी कारण अल्लाह तआला ने फरमाया :
وكيف تأخذونه وقد أفضى بعضكم إلى بعض
“तुम उसे कैसे ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिलन कर चुके हो।” दृढ़ और मजबूत वचने से अभिप्राय विवाह का अनुबंध है।
अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और उन पर पीलेपन के निशान थे। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे इस बारे में पूछा, तो उन्होंने आपसे बताया कि उन्होंने अन्सार की एक महिला से शादी कर ली है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे पूछा : तुमने उसे कितना (महर) दियाॽ” उन्होंने कहा : खजूर की एक गुठली के वज़न के बराबर सोना। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “वलीमह (शादी की दावत) करो, चाहे एक बकरी ही सही।” इसे बुखारी (हदीस संख्या : 4756) ने रिवायत किया है।
महर पत्नी का अधिकार है, जिसे उसके पिता या किसी और को लेने की अनुमति नहीं है। सिवाय इसके कि वह अपनी इच्छा-खुशी से किसी को कुछ प्रदान कर दे।
अबू सालेह ने कहा : “जब एक आदमी अपनी बेटी की शादी करता था, तो वह उसके समुचित महर को स्वयं ले लेता था। इसलिए अल्लाह ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया और उसके बारें में यह आयत उतरी :
وَءاتُوا النِّسَاءَ صَدُقَاتِهِنَّ نِحْلَةً
سورة النساء : 4
“और तुम महिलाओं को उनके महर खुशी से दो।” (सूरतुन-निसा : 4).
(तफ़सीर इब्ने कसीर)।
इसी तरह, अगर पत्नी महर में से कुछ हिस्सा पति के लिए छोड़ दे, तो पति उसे ले सकता है, जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है :
فإن طبن لكم عن شيء منه نفسا فكلوه هنيئا مريئا
سورة النساء : 4
“फिर यदि वे अपनी इच्छा से उसमें से कुछ तुम्हारे लिए छोड़ दें, तो उसे हलाल व पाक समझकर खाओ।” (सूरतुन-निसा : 4).
और अल्लाह तआला ही सबसे बेहतर जानता है।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद