बंदे को चाहिए कि कोई भी कार्य करने से पहले अपनी नीयत को मन में उपस्थित रखे और उसको ठीक कर ले, तो यह कैसे होगाॽ तथा यह जानने के लिए मानक और नियम क्या हैं कि आप जो कर रहे हैं वह सही है और विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए हैॽ
किसी कार्य में इख़्लास के नियम
प्रश्न: 240287
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
किसी भी कार्य के शुरू में नीयत (इरादे) का सुधार करना और उसे उपस्थित रखना सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है जिस पर मुसलमान को ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कर्मों की स्वीकृति या अस्वीकृति का आधार इसी पर है, तथा इसी पर दिलों के सुधार या उसके बिगाड़ का आधार भी है।
जो व्यक्ति अपने कार्य में नेक इरादा (शुद्ध नीयत) करना चाहता है, उसे उस मकसद पर ध्यान देना चाहिए जो उसे उस काम को करने के लिए प्रेरित कर रहा है, तथा उसे इस बात का लालायित होना चाहिए कि उसका मकसद अल्लाह तआला को प्रसन्न करना, उसकी आज्ञाकारिता और उसकी आज्ञा का पालन करना है।
इस प्रकार उसकी नीयत अल्लाह के लिए होगी। फिर उसके बाद, उसे काम करने के इस मूल मक़सद को, जो ख़ालिस (विशुद्ध रूप से) सर्वशक्तिमान अल्लाह के लिए है, बनाए रखना चाहिए, चुनाँचे उसे कर्म करते हुए उससे विचलित नहीं होना चाहिए, तथा उसका दिल और उसका इरादा नहीं बदलना चाहिए, और न ही अल्लाह के अलावा किसी और चीज़ की ओर मुड़ना चाहिए, और उसमें कोई शिर्क नहीं आना चाहिए।
दूसरा :
बंदा निम्नलिखित बातों पर ध्यान देकर किसी कार्य में अपने इख़्लास (निष्ठा) को पहचान सकता है, और यह कि वह केवल अल्लाह के लिए कर रहा है :
- उसे वह काम इसलिए नहीं करना चाहिए कि दूसरे लोग उसे देखें या उसके बारे में सुनें।
बुखारी (हदीस संख्या : 6499) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2987) ने जुंदुब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्होंने कहा : अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : “जो व्यक्ति (अपने अच्छे काम को) लोगों को सुनाता है, अल्लाह उसे लोगों को सुना देगा, और जो व्यक्ति अपने अच्छे कार्य को लोगों को दिखाता है, तो अल्लाह उसे लोगों को दिखा देगा।”
हाफ़िज़ इब्ने हजर रहिमहुल्लाह ने कहा :
“खत्ताबी ने कहा : इसका मतलब यह है जो व्यक्ति कोई काम इख़्लास (अल्लाह के प्रति निष्ठा) के बिना करता है। वह केवल यह चाहता है कि लोग उसे देखें और उसके बारे में सुनें : उसे उसका बदला इस तरह दिया जाएगा, कि अल्लाह उसे बदनाम कर देगा और उसे बेनकाब कर देगा, और जो कुछ वह छिपाता था उसे प्रकट कर देगा।
और उसके अर्थ में यह भी कहा गया है : जो व्यक्ति अपने काम से लोगों के बीच प्रतिष्ठा और उच्च स्थान प्राप्त करने का इरादा रखता है, और अल्लाह की प्रसन्नता नहीं चाहता है : तो अल्लाह उसे उन लोगों के पास चर्चित कर देगा जिनके पास वह उच्च पद प्राप्त करना चाहता है, लेकिन उसके लिए आख़िरत में कोई सवाब नहीं होगा।”
“फत्हुल-बारी” (11/336) से उद्धरण समाप्त हुआ।
अल-इज़्ज़ बिन अब्दुस्सलाम रहिमहुल्लाह ने कहा : “अच्छे कामों को छिपाने के मुस्तहब होने से वह व्यक्ति अपवाद रखता है, जो उसे इसलिए प्रकट करता है ताकि उसके उदाहरण का पालन किया जाए, या उससे लाभान्वित हुआ जाए, जैसे कि ज्ञान की पुस्तकें लिखना।”
“फ़त्हुल-बारी” (11/337) से उद्धरण समाप्त हुआ।
- उसका दिल लोगों की प्रशंसा या निंदा से संबंधित न हो।
इब्नुल-क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने कहा :
“जब बंदे का पैर विनम्रता की स्थिति में स्थिर हो जाता है और वह उसमें दृढ़ हो जाता है : तो उसका हौसला बढ़ जाता है और वह लोगों की प्रशंसा और आलोचना से खुद को ऊपर उठा लेता है। इसलिए वह न तो लोगों की प्रशंसा से खुश होता है, और न ही उनकी आलोचना पर शोकाकुल होता है। यह उस व्यक्ति का वर्णन है जो अपने स्वयं के भाग्य (आत्मानंद) से बाहर निकल चुका है, और अपने पालनहार की बंदगी के लिए योग्य हो चुका है, तथा ईमान एवं यक़ीन की मिठास ने उसके दिल को छू लिया है।”
“मदारिजुस-सालिकीन” (2/8) से उद्धरण समाप्त हुआ।
- उसके निकट अपने अच्छे कर्मों को छिपाना और गुप्त रखना, उसे प्रकट करने की अपेक्षा अधिक प्रिय हो।
आसिम से वर्णित है कि उन्होंन कहा : “अबू वाइल जब अपने घर में नमाज़ पढ़ते, तो वह बहुत रोते थे। तथा यदि उन्हें पूरी दुनिया दे दी जाए कि वह ऐसा उस जगह पर करें जहाँ उन्हें कोई देखता हो, तो वह कभी नहीं करते।” इसे अहमद ने “अज़्-ज़ुह्द” (पृ. 290) में रिवायत किया है।
- उसे दिखावे और प्रसिद्धि के स्थानों से खुद को दूर रखने के लिए उत्सुक होना चाहिए, जब तक कि उसमें कोई शरई हित न हो।
इबराहीम बिन अदहम रहिमहुल्लाह ने कहा : “वह अल्लाह के प्रति सच्चा (ईमानदार) नहीं है जो प्रसिद्ध होना चाहता है।”
“इह्याओ-उलूमिद्दीन” (3/297) से उद्धरण समाप्त हुआ।
- लोगों के देखने के लिए उसे अपने अच्छे काम में वृद्धि नहीं करनी चाहिए और उसे बेहतर नहीं बनाना चाहिए।
जबकि कहा गया है कि : "इख़्लास का मतलब : बंदे के कर्मों का परोक्ष और प्रत्यक्ष में (बाहरी और आंतरिक रूप से) समान होना है।
रियाकारी (दिखावा) : यह है कि उसका बाहरी रूप आंतरिक रूप से बेहतर हो।” “मदारिजुस-सालिकीन” (2/91) से उद्धरण समाप्त हुआ।
- उसे हमेशा अपने आपको कोताही एवं कमी से आरोपित करना चाहिए, और उसे इसमें कोई अपना गुण नहीं देखना चाहिए (खुद को किसी अच्छे काम का श्रेय नहीं देना चाहिए), और उसे पता होना चाहिए कि सारा श्रेय (अनुग्रह) अल्लाह का है, और अगर सर्वशक्तिमान अल्लाह (का अनुग्रह) नहीं होता, तो वह नष्ट हो जाता।
अल्लाह तआलाल ने फरमाया :
وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَى مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ
النور: 21
“और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुममें से कोई भी कभी पवित्र न होता।” (सूरतुन-नूर : 21)
- काम के बाद उसे बहुत अधिक क्षमा माँगना चाहिए, क्योंकि उसे अपनी कमी व कोताही का एहसास है।
अस-सा’दी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“बंदे को चाहिए कि जब भी वह इबादत का कोई कार्य समाप्त करे, तो अपनी कमियों के लिए अल्लाह से क्षमा याचना करे और उसे ऐसा करने के लिए सक्षम बनाने के लिए उसका धन्यवाद करे। उसे उस व्यक्ति की तरह नहीं होना चाहिए जो सोचता है कि उसने इबादत का कार्य पूरा कर लिया है और ऐसा करके अपने रब पर उपकार किया है, और उसने उसके लिए एक स्थान और उच्च पद बना दिया है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति नाराज़गी और उसके कार्य को अस्वीकार किए जाने के योग्य है, ठीक वैसे ही जैसे पहला व्यक्ति स्वीकार किए जाने और अन्य कार्यों की तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) दिए जाने के योग्य है।”
“तफ़सीर अस-सा’दी” (पृष्ठ : 92) से उद्धरण समाप्त हुआ।
- नेक काम करने के लिए अल्लाह की तौफ़ीक़ पर उसे आनंदित होना चाहिए।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
قُلْ بِفَضْلِ اللَّهِ وَبِرَحْمَتِهِ فَبِذَلِكَ فَلْيَفْرَحُوا هُوَ خَيْرٌ مِمَّا يَجْمَعُونَ
يونس/ 58 .
“आप कह दें : (यह) अल्लाह के अनुग्रह और उसकी दया के कारण है। अतः उन्हें इसी पर प्रसन्न होना चाहिए। यह उससे उत्तम है, जो वे इकट्ठा कर रहे हैं।” (सूरत यूनुस : 58)।
जो भी व्यक्ति अपने कर्मों के संबंध में इन बातों पर ध्यान देता है, तो आशा है कि वह इख़लास अपनाने वालों में से होगा।
जहाँ तक किसी अमल में निश्चित रूप से इख़लास की उपस्थिति का सवाल है, तो इसे सत्यापित करने का कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि इसका ज्ञान अकेले अल्लाह के पास है। लेकिन बंदे को इख़लास प्राप्त करने के कारणों को अपनाना चाहिए, और अल्लाह से अच्छे कार्य की तौफ़ीक़ माँगनी चाहिए। लेकिन उसे अपने बारे में या किसी दूसरे के बारे में निश्चितता के साथ इख़लास का हुक्म नहीं लगाना चाहिए।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर