एक आदमी ने अपनी पत्नी को तलाक़-बाईन दे दिया। जबकि उस पत्नी से उसकी एक बेटी और दो बेटे हैं और वही उन बच्चों का पालन-पोषण करेगी, तथा वह (पति) अल्लाह के हुक्म से उनके लिए आवास की व्यवस्था करेगा और बच्चों के लिए भरण-पोषण का भुगतान करेगा। यह अदालतों का सहारा लिए बिना सौहार्दपूर्ण समझौते के अनुकूल तय पाया है। अल्लाह की कृपा से, गुज़ारा भत्ते की जिस राशि पर समझौता हुआ है वह वकीलों की राय के अनुसार, उस राशि से दोगुनी है जिसका निर्णय अदालत से होता। इस समय उसके पास दो प्रश्न हैं : क्या उसने उन्हें जो आवास उपलब्ध कराया है उसके उपकरणों वग़ैरह में ख़राबी होने की स्थिति में उनकी मरम्मत (मेंटेनेंस) करवाना उस पर अनिवार्य है, अथवा उनकी मरम्मत और रखरखाव की लागत उस गुजारा भत्ता की राशि के अंतर्गत मानी जाएगी जिसपर समझौता हुआ हैॽ तथा वह अपनी तलाक़शुदा पत्नी के वित्तीय अधिकारों को भी जानना चाहता है, और क्या वह उसके लिए आवास उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है? क्या ‘इद्दत का भरण-पोषण’ नामक कोई चीज़ है, क्योंकि उन लोगों (तलाकशुदा के प्रतिनिधियों) ने उससे एक भरण-पोषण की मांग की है जिसे इद्दत के (भरण-पोषण के) नाम से जाना जाता है, और यह ‘नफक़तुल-मुत्अह’ और विलंबित मह्र से अलग है? हम इस तरह का एक लंबा सवाल पूछने के लिए क्षमा चाहते हैं, लेकिन यह मामला महत्वपूर्ण है, ताकि किसी के साथ कोई अन्याय न हो। अल्लाह आप लोगों को बेहतर बदला प्रदान करे।
अपने बच्चों तथा उनका पालन-पोषण करने वाली अपनी अपरिवर्तनीय तलाक़शुदा महिला के प्रति पति के लिए क्या अनिवार्य है?
प्रश्न: 264146
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
सर्व प्रथम :
तलाक़-बाईन दी गई महिला गुज़ारा भत्ता (भरणपोषण) और आवास की हक़दार नहीं है; सिवाय इस स्थिति के कि वह गर्भवती हो। (अर्थात गर्भवती होने की स्थिति में वह इन चीज़ों की हक़दार होगी)। इस बात का प्रमाण :
वह हदीस है जिसे इमाम मुस्लिम ने अपनी सहीह (हदीस संख्या : 1480) में शअ़बी से रिवायत किया है, वह कहते हैं : मैं फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हा के पास गया और उनसे उनके प्रति अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फैसले के बारे में प्रश्न किया। तो उन्होंने बताया कि : उनके पति ने उनको अपरिहार्य तलाक़ दे दिया था। वह कहती हैं कि : मैं आवास और ख़र्च (निर्वाह-धन) के मामले को लेकर अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास गई। वह कहती हैं : तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुझे आवास तथा खर्च का अधिकार नहीं दिया, और मुझे आदेश दिया कि मैं इब्ने उम्मे मक्तूम के घर में अपनी इद्दत पूरी करूँ।
तथा मुस्लिम ही की एक अन्य रिवायत में यह है कि उन्होंने कहा : मैंने इसका चर्चा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किया तो आपने फरमाया : (तुम्हारे लिए न कोई गुज़ारा भत्ता है और न ही आवास।) तथा अबू दाऊद की एक रिवायत में है कि (आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया) : (तुम्हारे लिए कोई भरण-पोषण नहीं है, सिवाय इसके कि तुम गर्भवती हो।)
दूसरा :
'मुत्अह' केवल प्रवेश करने (अर्थात संभोग) से पहले तलाक़ दी गई महिला के लिए अनिवार्य है, जिसके लिए विवाह के समय मह्र निर्धारित न किया गया हो, जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है :
لَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِنْ طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ مَا لَمْ تَمَسُّوهُنَّ أَوْ تَفْرِضُوا لَهُنَّ فَرِيضَةً وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى الْمُوسِعِ قَدَرُهُ وَعَلَى الْمُقْتِرِ قَدَرُهُ مَتَاعاً بِالْمَعْرُوفِ حَقّاً عَلَى الْمُحْسِنِينَ البقرة :236
‘‘और तुम पर कोई दोष नहीं यदि तुम स्त्रियों को संभोग करने या मह्र निर्धारित करने से पहले तलाक़ दे दो, (इस स्थिति में) उन्हें कुछ दो, नियमानुसार धनी पर अपनी शक्ति के अनुसार तथा निर्धन पर अपनी शक्ति के अनुसार देना है, यह उपकारियों पर आवश्यक है।’’ (सूरतुल बक़रह : 236)
यदि तलाक़ प्रवेश करने (संभोग) के पशचात हुई हो तो जम्हूर फुक़हा (विद्वानों की बहुमत) के निकट उसके लिए मुत्अह (खर्च) अनिवार्य नहीं है, परन्तु पति के लिए मुस्तहब (ऐच्छिक) है कि वह अपनी स्थिति के अनुसार उसे कुछ ख़र्च दे दे, जिसके देने में वह सक्षम हो।
इसका उल्लेख फत्वा संख्या : (126281) में किया जा चुका है।
तीसरा :
यदि पति अपनी पत्नी को पहली या दूसरी तलाक़ दे दे, और उसे वापस न लौटाए यहाँ तक कि इद्दत समाप्त हो जाए और वह महिला कारणवश उससे अलग हो जाए, तो वह इद्दत के दौरान गुज़ारा भत्ता की हक़दार होगी।
लेकिन यदि उसने पत्नी को तीसरी तलाक़ की तरह बाईन-तलाक़ दे दी है, तो वह औरत निर्वाह-धन तथा आवास की हक़दार नहीं होगी। जैसा कि फातिमा बिन्त क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस में यह बात गुज़र चुकी है।
चौथा :
यदि तलाक़शुदा औरत ही बच्चों का पालन-पोषण करनेवाली है, तो उसके आवास के बारे में विद्वानों का मतभेद है किः क्या यह पिता (अर्थात परवरिश पाने वाले बच्चों के पिता) पर अनिवार्य है, या कि उस औरत पर और उस औरत के ऊपर ख़र्च करनेवाले पर अनिवार्य है, अथवा यह एक संयुक्त दायित्व है जिसका किराया पति और तलाक़शुदा औरत दोनों भुगतान करेंगे, हाकिम की राय के अनुसार। या यह कि यदि औरत के पास रहने का घर है तो वह उसी पर निर्भर करेगी और यदि उसके पास आवास नहीं है तो पिता के लिए अनिवार्य है कि उसके आवास की व्यवस्था करे।
यह अंतिम कथन एक अच्छा कथन है। प्रश्न संख्या : (220081) देखें।
तथा “हाशिया इब्न आबिदीन” (3/562), “शर्ह अल-ख़ुरशी” (4/218), “अल-मौसूअतुल-फिक़्हिय्या” (17/313) देखें।
जब पिता अपने बच्चों के लिए आवास उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है – जैसा कि इसका वर्णन आगे आ रहा है –, तो तलाक़शुदा औरत जब तक पालन-पोषण करनेवाली है उनके साथ रहने की शर्त लगा सकती है, तथा उसके लिए अपने परिवार वालों के साथ रहना या अपने लिए किराये पर आवास लेना अनिवार्य नहीं है।
तथा वे दोनों इस बात पर समझौता कर सकते हैं कि वह अपने परिवार वालों के घर में बाक़ी रहेगी या अपने किसी निजी घर में रहेगी।
पाँचवाँ :
यदि तलाक़शुदा पत्नी ही उसके बच्चों का पालन-पोषण कर रही है, तो वह इस पालन-पोषण का पारिश्रमिक मांग सकती है, भले ही कोई दूसरी महिला है जो इस तरह की देखभाल निःशुल्क करनेवाली हो। यह हनाबिला का मत है।
‘‘मुन्तहा अल-इरादात’’ में कहा गया है कि : “माँ को बच्चे के पालन-पोषण की प्राथमिकता प्राप्त है, भले ही दूसरी महिला के समान पारिश्रमिक के बदले ही क्यों न हो, जैसे स्तनपान के मामले में है।''
देखिए : ''शर्ह मुन्तहा अल-इरादात'' (3/249)
मालिकियों का मत यह है कि : बच्चों के पालन-पोषण (देखभाल) के लिए कोई शुल्क नहीं ली जाएगी।
जबकि हनफिय्या तथा शाफेइय्या के निकट इस मुद्दा के विषय में कुछ विस्तार है। देखें :“अल-मौसूअतुल-फिक़्हिय्या” (17/311)
छठा :
पति पर अपने बच्चों का ख़र्च उठाना अनिवार्य है। जिसमें रहने के लिए आवास, भोजन, पेय, पढ़ाई एवं इलाज के ख़र्च तथा हर वह चीज़ शामिल है जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है।
तथा इसका अनुमान परंपरा के अनुसार लगाया जाएगा और इसमें पति की वित्तीय स्थिति को भी ध्यान में रखा जाएगा। क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
لِيُنْفِقْ ذُو سَعَةٍ مِنْ سَعَتِهِ وَمَنْ قُدِرَ عَلَيْهِ رِزْقُهُ فَلْيُنْفِقْ مِمَّا آتَاهُ اللَّهُ لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْسًا إِلا مَا آتَاهَا سَيَجْعَلُ اللَّهُ بَعْدَ عُسْرٍ يُسْرًا
الطلاق : 7
‘‘धन वाले को अपने धन के अनुसार ख़र्च करना चाहिए, और जिस पर उसकी जीविका तंग की गई हो तो उसको चाहिए कि जो कुछ अल्लाह ने उसे दे रखा है उसी में से (अपनी ताक़त के अनुसार) ख़र्च दे, अल्लाह किसी प्राणी पर बोझ नहीं रखता परन्तु उतना ही जितनी शक्ति उसे दे रखी है, अल्लाह शीघ्र ही तंगी (ग़रीबी) के पश्चात आसानी (संपन्नता) भी प्रदान करेगा।’’ (सूरतुत तलाक़ : 07)
और यह एक देश से दूसरे देश में तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के साथ बदलता रहता है।
रही बात उन उपकरणों के मेंटेनेंस औऱ मरम्मत की जिन्हें वे उपयोग करते हैं :
तो यदि दिए गए ख़र्च (निर्वाह-धन) की राशि, खाने पीने की आवश्यकताओं इत्यादि के साथ-साथ उसके लिए भी पर्याप्त है, तो उसी ख़र्च से मरम्मत की जाएगी।
और यदि निर्वाह-धन की राशि उसके लिए पर्याप्त नहीं है, और उन्हें इन उपकरणों की आवश्यकता हैः तो उसकी मरम्मत (मेंटेनेंस) पिता के पैसे से होगी; क्योंकि यह भी ख़र्च में शामिल है।
और अल्लाह ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर