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ऐसे चुटकुलों के खिलाफ चेतावनी जिनमें क़ुरआन करीम की कुछ सूरतों का उपहास पाया जाता है।

प्रश्न: 275500

दुर्भाग्य से, मुझे व्हाट्स्एप पर यह संदेश मिला (एक मूर्ख व्यक्ति से जिसने रोज़ा रखा हुआ था लोगों ने पूछाः रमज़ान में तुम्हारे दिल के सबसे निकट क़ुरआन की कौन सी सूरत है ..ॽ!! उसने उत्तर दियाः अल-मायदा (खाने से भरा थाल), अद-दुखान (धूम्रपान), और अन्निसा (महिला) ..!!!),  कृपया इस तरह के चुटकुलों का हुक्म स्पष्ट करें।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

यह उक्त बात एक महा बुराई और अल्लाह सर्वशक्तिमान के शब्दों (वाणी) का उपहास है, जो सबसे महान और सबसे प्रतिष्ठित वाणी है, और उसका उपहास करने वाला काफिर (नास्तिक और अविश्वासी) है और उसे कठोर धमकी दी गई है, जैसाकि अल्लाह तआला का कथन हैः

يَحْذَرُ الْمُنَافِقُونَ أَنْ تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِي قُلُوبِهِمْ قُلِ اسْتَهْزِئُوا إِنَّ اللَّهَ مُخْرِجٌ مَا تَحْذَرُونَ (64) وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ قُلْ أَبِاللَّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ (65) لَا تَعْتَذِرُوا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ إِيمَانِكُمْ إِنْ نَعْفُ عَنْ طَائِفَةٍ مِنْكُمْ نُعَذِّبْ طَائِفَةً بِأَنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ    التوبة/64، 65

‘‘मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) डर रहे हैं कि कहीं उनके बारे में कोई ऐसी सूरत न अवतरित हो जाए जो वह सब कुछ उनपर खोल दे, जो उनके दिलों में है। कह दीजिए कि "मज़ाक़ उड़ा लो, अल्लाह तो उसे प्रकट करके रहेगा, जिसका तुम्हें डर है।" और यदि उनसे पूछो तो कह देंगे, "हम तो केवल बातें और हँसी-खेल कर रहे थे।" कह दीजिए, "क्या अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ हँसी-मज़ाक़ करते थे? बहाने न बनाओ, निःसंदेह तुम अपने ईमान लाने के पश्चात काफ़िर हो गए। यदि हम तुम्हारे कुछ लोगों को क्षमा भी कर दें, तो भी कुछ लोगों को यातना देकर ही रहेंगे, क्योंकि वे अपराधी हैं।" (सूरतुत तौबाः 64-66)

इस काम में केवल मूर्ख लोग पड़ते हैं जो अल्लाह द्वारा निर्धारित सीमाओं पर धृष्टता दिखानेवाले हैं, वे समझते हैं कि वे मज़ाक़ और मस्ती कर रहे हैं, जैसे उन लोगो का हाल था जिनके बारे में यह आयत करीमा अवतरित हुई थी।

इमाम तबरी ने अपनी तफ्सीर (14/333) में सअद से और उन्हों ने ज़ैद बिन असलम से रिवायत किया है कि : कपटाचारियों में से एक आदमी ने तबूक की लड़ाई के अवसर पर औफ़ बिन मालिक से कहा : हमारे इन क़ारियों का क्या मामला है; कि वे हम में पेट के सबसे इच्छुक हैं, ज़ुबान के सबसे अधिक झूठे और मुठभेड़ के समय सबसे अधिक कायर हैं?! तो औफ़ ने उससे कहाः तू ने झूठ बोला है, बल्कि तू एक पाखंडी है। मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को (इसके बारे में) अवश्य सूचित करूँगा। चुनाँचे औफ़ बिन मालिक अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास गए ताकि आपको उसके बारे में सूचित करें, तो उन्होंने पाया कि क़ुरआन उनसे पहले ही अवतरित हो चुका है। ज़ैद कहते हैं : अब्दुल्लाह बिन उमर ने कहा : मैंने उस आदमी को देखा कि वह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ऊँटनी की पेटी को पकड़ कर लटका हुआ था और पत्थर उसे घायल कर रहे थे। वह कह रहा थाः "हम तो केवल बातें और हँसी-खेल कर रहे थे।") (सूरतुत तौबाः 65) तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उससे कहतेः ("क्या अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ हँसी-मज़ाक़ करते थे?) (सूरतुत तौबाः 65) आप इससे अधिक कुछ नहीं कहते थे।

अबू बक्र इब्नुल अरबी रहिमहुल्लाह ने अपनी तफ्सीर (2/543) में फरमायाः ‘‘जो कुछ उन्हों ने कहा था वह इस बात से खाली नहीं है कि वह गंभीर मुद्रा में था या हास्य के रूप में था। वह कैसे भी थाः यह कुफ्र है; क्योंकि कुफ्र का हास्य करना (हंसी-मज़ाक़ में कुफ्र के शब्द बोलना) कुफ्र है, इसके बारे में उम्मत के मध्य कोई मतभेद नहीं है। क्योंकि वास्तविक बात बोलना सत्य और ज्ञान के समान है, और हास्य झूठ और अज्ञानता के समान है।’’ अंत हुआ।

ये महान सूरतें शरीयत के प्रावधानों, कानूनों और उपदेशों पर आधारित हैं, और एक विश्वासी व्यक्ति उनसे प्यार करता है, क्योंकि ये अल्लाह का वचन हैं, इस वजह से नहीं कि इसमें मायदा (भोजन) या महिलाओं का उल्लेख है, इसे रोज़ेदार के साथ संबंधित करना तो दूर की बात है जिसे (रोज़े के दौरान) पेट और योनि की इच्छा से मना किया गया है।

फिर इस भोंडे मज़ाक़ में अल्लाह के वचन के अर्थ का विरूपण, और उसे एक निषिद्ध एवं घृणित चीज़ के अर्थ में लेना पाया जाती है। क्योंकि धुआं महाप्रलय की निशानियों में से एक निशानी और संकेत है, इससे अभिप्राय वह हराम (निषिद्ध) धूम्रपान नहीं है जिसे यह और इस तरह के अन्य लोग पीते हैं और जिसकी यह उपहास करनेवाला दुष्ट आदमी कामना करता है।

अल्लाह सर्वशक्तिमान ने फरमाया :

فَارْتَقِبْ يَوْمَ تَأْتِي السَّمَاءُ بِدُخَانٍ مُبِينٍ (10) يَغْشَى النَّاسَ هَذَا عَذَابٌ أَلِيمٌ (11) رَبَّنَا اكْشِفْ عَنَّا الْعَذَابَ إِنَّا مُؤْمِنُونَ (12) أَنَّى لَهُمُ الذِّكْرَى وَقَدْ جَاءَهُمْ رَسُولٌ مُبِينٌ    الدخان/10- 13

‘‘तो तुम उस दिन की प्रतीक्षा करो, जब आकाश प्रत्यक्ष धुँआ लाएगा। वह लोगों को ढाँक लेगा। यह दुखद यातना है! वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हम पर से यातना हटा दे। हम ईमान लाते हैं।" अब उनके लिए नसीहत हासिल करने का अवसर कहाँ बाक़ी रहा। हालांकि उनके पास साफ़-साफ़ बतानेवाला एक रसूल आ चुका है।’’ (सूरतुद् दुखानः 10-13)

जिस व्यक्ति को यह संदेश भेजा गया है उसके लिए अनिवार्य है कि वह इसकी निंदा करे, उसके भेजनेवाले को नसीहत करे और उसे फिर से प्रकाशित न करे (अर्थात किसी अन्य को न भेजे); क्योंकि इसमें अल्लाह सर्वशक्तिमान के साथ कुफ़्र (नास्तिकता) और उसके वचन का उपहास करना पाया जाता है।

मनुष्य को अनावश्यक और व्यर्थ बातों से सावधान रहना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी एक शब्द उसके बोलने वाले को पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी से भी अधिक दूर तक नरक में गिरा देता है।

बुखारी (हदीस संख्या : 6478) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2988) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना : (बन्दा अल्लाह की प्रसन्नता की एक बात कहता है जिसे वह कोई महत्व नहीं देता, इसकी वजह से अल्लाह उसके पद (ग्रेड) को ऊंचा कर देता है। तथा एक व्यक्ति अल्लाह के क्रोध की एक बात कहता है जिसे वह कोई महत्व नहीं देता, उसकी वजह से वह नरक में चला जाता है।)

तथा बुखारी (हदीस संख्या : 6477) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 2988) ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कहते हुए सुना : (बन्दा एक बात बोलता है, जिसके बारे में वह नहीं सोचता (कि कितनी गंभीर बात है), उसकी वजह से वह आग में पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी से अधिक दूर गिर जाता है।)

तथा तिर्मिज़ी (हदीस संख्या : 2319) और इब्ने माजा (हदीस संख्या : 3969) में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबी बिलाल बिन हारिस अल-मुज़नी रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है, वह कहते हैं : मैंने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना कि : (तुम में से कोई व्यक्ति ऐसी बात बोलता है जिससे अल्लाह खुश होता है, जिसके बारे में उसे गुमान नहीं होता कि वह बात यहाँ तक पहुँच जाएगी। चुनाँचे अल्लाह तआला उसकी वजह से उसके लिए अपनी मुलाक़ात के दिन तक के लिए अपनी प्रसन्नता लिख देता है। तथा तुम में से कोई व्यक्ति अल्लाह की अप्रसन्नता की कोई ऐसी बात बोल देता है जिसके बारे में उसे गुमान नहीं होता कि उसका क्या प्रभाव होगा, लेकिन उसके कारण अल्लाह तआला उसके ऊपर अपने आक्रोश को उस दिन तक के लिए लिख देता है जिस दिन वह उससे मुलाक़ात करेगा।) इसे शैख अल्बानी ने सहीह अत-तिर्मिज़ी में सहीह कहा है।

हम अल्लाह से सुरक्षा और सुख-शांति का प्रश्न करते हैं।

यह बात जान लेनी चाहिए कि : विद्वानों की सर्व सहमति के अनुसार, कुफ्र (अविश्वास के शब्दों) के साथ मज़ाक : कुफ़्र (नास्तिकता) है, जैसा कि इब्नुल अरबी के शब्दों में यह बात गुज़र चुकी है, अतः उसके लिए उपहास करने का इरादा पाया जाना शर्त (आवश्यक) नहीं है।

शैख इब्ने उसैमीन रहिमुल्लाह ने फरमाते हैं : "यहाँ तीन स्तर हैं : पहला स्तर : उसका बोलने का और अपमान करने का इरादा हो। और यह एक गंभीर व्यक्ति का कार्य है, जैसाकि इस्लाम के दुश्मन (जानबूझकर) इस्लाम का अपमान करते हैं।

दूसरा स्तर : उसका मक़सद (इरादा) बोलना हो लेकिन अपमान करना न हो। अर्थात वह उस चीज़ का इरादा करता है जिससे अपमान का पता चलता है, किन्तु वह मज़ाक़ में ऐसा करता है, गंभीर मुद्रा में नहीं होता है। तो इसका भी हुक्म पहले की तरह है कि : वह काफ़िर (नास्तिक) होगा; क्योंकि यह एक मजाक और उपहास है।

तीसरा स्तर : उसका इरादा न तो उस शब्द को कहने का है और न ही अपमान का, बल्कि बिना किसी इरादा के उसकी ज़ुबान से ऐसी बात निकल जाती है जिससे अपमान का संकेत मिलता है, परंतु उसका मक़सद (जानबूझकर) बात करना या अपमान नहीं होता है। तो ऐसे व्यक्ति को इसके लिए दंडित नहीं किया जाए गा। और अल्लाह सर्वशक्तिमान के इस कथन को इसी संदर्भ में लिया जाएगाः (لا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ) अर्थात : अल्लाह तुम्हारी व्यर्थ क़समों पर तुम्हारी पकड़ नहीं करता। [अल-मायादः 5:89] यह आदमी का अपनी बात चीत के बीच ‘ला वल्लाह’ (नहीं, अल्लाह की क़सम) और ‘बला वल्लाह’ (क्यों नहीं, अल्लाह की क़सम) कहना है। यानी उसका मक़सद और इरादा नहीं होता है। तो इसे पारित होने वाला शपथ (क़सम) नहीं समझा जाएगा। चुनाँचे बिना इरादा के जो भी चीज़ मानव की ज़ुबान पर जारी हो जाती है, तो उसका कोई हुक्म नहीं है।’’ ‘फतावा नूरुन अला अद्दर्ब’ से अंत हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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