क्या स्वर्ग, नरक, अर्श (सिंहासन), कुर्सी और “अल-लौहुल महफूज़” शेष रहेंगे या अल्लाह उन्हें प्रलय के दिन नष्ट कर देगाॽ
क्या प्रलय के दिन की घटनाएँ इस दुनिया के बाहर की चीज़ों जैसे स्वर्ग और नरक को भी प्रभावित करेंगीॽ
प्रश्न: 289378
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
अल्लाह तआला फरमाता है :
يَوْمَ تُبَدَّلُ الْأَرْضُ غَيْرَ الْأَرْضِ وَالسَّمَاوَاتُ وَبَرَزُوا لِلَّهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ
إبراهيم : 48
"जिस दिन यह धरती दूसरी धरती से बदल दी जाएगी और आकाश भी (बदल दिए जाएँगे)। और वे सब के सब अकेले प्रभुत्वशाली अल्लाह के सामने उपस्थित होंगे।” [सूरत इब्राहीम : 48]
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
إِذَا السَّمَاءُ انْفَطَرَتْ * وَإِذَا الْكَوَاكِبُ انْتَثَرَتْ * وَإِذَا الْبِحَارُ فُجِّرَتْ * وَإِذَا الْقُبُورُ بُعْثِرَتْ * عَلِمَتْ نَفْسٌ مَا قَدَّمَتْ وَأَخَّرَتْ
الانفطار: 1-5
“जब आकाश फट जाएगा और जब तारे बिखर जाएँगे और जब समुद्र बह पड़ेंगे और जब क़ब्रें उखेड़ दी जाएँगी तब हर प्राणी जान लेगा जो कुछ उसने आगे भेजा है और जो कुछ पीछे छोड़ा है।” [सूरतुल इनफितार : 1-5]।
जो कुछ इस दुनिया के बाहर है : उनमें से कुछ निश्चित रूप से प्रलय शुरू होने पर इस परिवर्तन से प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि यह अनंत काल और हमेशा के लिए रहने के लिए बनाया गया है, जैसे स्वर्ग और नरक।
अल-हलीमी रहिमहुल्लाह ने कहा :
“स्वर्ग, भले ही उनमें से कुछ दूसरों की तुलना में अधिक ऊँचे हैं, लेकिन ये सब आकाश से ऊपर सिंहासन के नीचे हैं। और यह अपने आप में एक ऐसा क्षेत्र है जो हमेशा रहने के लिए बनाया गया है। अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह विनाश के लिए बनाई गई चीज़ों से अलग है।”
“अल-मिन्हाज” (1/432) से उद्धरण समाप्त हुआ।
यही मामला अर्श (सिंहासन) और कुर्सी का भी है। क्योंकि शरई नुसूस (धार्मिक ग्रंथों) में आकाशों और धरती की स्थितियों के बदलने के बाद उनका बाक़ी रहना प्रमाणित है।
अल्लाह तआला ने फरमाया :
وَانْشَقَّتِ السَّمَاءُ فَهِيَ يَوْمَئِذٍ وَاهِيَةٌ * وَالْمَلَكُ عَلَى أَرْجَائِهَا وَيَحْمِلُ عَرْشَ رَبِّكَ فَوْقَهُمْ يَوْمَئِذٍ ثَمَانِيَةٌ
الحاقة : 16-17
“और आकाश फट जाएगा तो वह उस दिन पूर्णतः क्षीण हो जाएगा। और फ़रिश्ते उसके किनारों पर होंगे और उस दिन तुम्हारे पालनहार के सिंहासन को आठ फ़रिश्ते अपने ऊपर उठाए हुए होंगे।” [सूरतुल हाक़्क़ा : 16-17]।
जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्होंने कहा : जब समुद्र के प्रवासी (अर्थात् हबश के मुहाजिरीन) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वापस आए, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “क्या तुमने हबश (इथियोपिया) की भूमि में जो अजीब चीजें देखी हैं, उसके बारे में मुझे नहीं बताओगेॽ”
उनमें से एक नौजवान ने कहा : क्यों नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल! इस दौरान कि हम बैठे थे, उनकी एक बूढ़ी महिला पादरी हमारे सामने अपने सिर पर पानी का एक मटका लिए उनके एक युवा के पास से गुजरी। तो उस युवा ने उसके कंधों के बीच अपना हाथ रखा और उसे धक्का दे दिया। जिसके कारण वह अपने घुटनों पर गिर गई और उसका मटका टूट गया। जब वह खड़ी हुई, तो उस युवा की ओर मुड़ी और बोली : ऐ धोखेबाज़, तुझे पता चल जाएगा जब अल्लाह कुर्सी रखेगा और अगले एवं पिछले लोगों को इकट्ठा करेगा, तथा हाथ-पैर बोलेंगे (गवाही देंगे) कि वे क्या किया करते थे। तो कल उसके पास तुझे, मेरे और अपने मामले का पता चल जाएगा। वर्णनकर्ता कहते हैं कि इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “उस (बुढ़िया) ने सच कहा, उस (बुढ़िया) ने सच कहा। अल्लाह तआला ऐसे समुदाय को कैसे सम्मान व प्रतिष्ठा प्रदान कर सकता है, जिसमें उनके कमज़ोर का बदला उनके ताकतवर से न लिया जा सके।” इसे इब्ने माजा (हदीस संख्या : 4010) ने रिवायत किया है और अलबानी ने “सहीह सुनन इब्ने माजा” (हदीस संख्या : 3255) में हसन कहा है।
जहाँ तक “अल-लौहुल महफूज़” का संबंध है कि क्या वह दुनिया के अंत के बाद शेष रहेगा या नहींॽ इसकी स्थिति को अल्लाह ही बेहतर जानता है। क्योंकि यह एक परोक्ष मामला है जिसके विषय में वह़्य के आधार पर ही कोई बात कही जा सकती है। और हम इसके बारे में वह़्य (क़ुरआन व हदीस) का कोई पाठ नहीं जानते हैं। और अल्लाह तआला का फ़रमान है :
وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولَئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْئُولًا
[الإسراء : 36].
“और जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निःसंदेह कान और आँख और दिल इनमें से प्रत्येक के विषय में पूछा जाएगा।” [सूरतुल इस्रा :36]।
इस तरह की चीज़ों के बारे में बहुत छानबीन करना : तकल्लुफ़ (कृत्रिमता) से रहित नहीं है, और ऐसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करना है जिसका कोई मतलब नहीं (जो अर्थहीन है), तथा उसपर कोई कार्य और इस दुनिया या आख़िरत में कोई भलाई निष्कर्षित नहीं होती है।
खुद के प्रति शुभचिंतक व्यक्ति को चाहिए कि उस चीज़ के संबंध में पूछे और समझ हासिल करे जिसकी उसे अपने धर्म के संबंध में आवश्यकता है और जिस पर स्थिति का सुधार और प्रतिष्ठा ग्रहण करना निष्कर्षित होता है।
और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर