डाउनलोड करें
0 / 0
157713/11/2018

जीवन बीमा की शर्त के साथ ऋण का हुक्म यदि यह शर्त लागू नहीं होती है

प्रश्न: 294684

मैं एक सार्वजनिक संस्था में काम करता हूँ, जो हमें कई रूपों में निर्देशित एक धनराशि उधार दी है, जिसमें कार खरीदना और घर खरीदना शामिल है, और मासिक वेतन से एक राशि की कटौती करती रहती है जब तक कि इस ऋण का बिना ब्याज के भुगतान नहीं हो जाता है। हम जो अनुबंध हस्ताक्षर करते हैं, उसमें समस्या यह है कि उसमें जीवन बीमा नामक एक खंड शामिल है, जबकि वह लागू नहीं की जाती है। अतः आशा है कि आप इस प्रकार के ऋणों से लाभान्वित होने का हुक्म स्पष्ट करेंगे।

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

कार या घर खरीदने के लिए क़र्ज़ (ऋण) लेने में कोई आपत्ति की बात नहीं है, जब तक कि वह ऋण एक अच्छा ऋण (क़र्ज-हसन) है, जिसमें कोई ब्याज (रिबा) शामिल नहीं होता, और ऋणदाता को उसपर पुण्य (सवाब) मिलेगा।

परंतु जीवन बीमा की शर्त लगाना जायज़ नहीं है; क्योंकि यह एक निषिद्ध (हराम) काम में प्रवेश करने के लिए मजबूर करना है।

“फतावा अल-लज्नह अद-दाईमह” (8/15) में आया है : “जीवन बीमा एक प्रकार का वाणिज्यिक बीमा है और यह निषिद्ध है; क्योंकि इसमें अज्ञानता और धोखा, तथा अवैध रूप से धन का उपभोग करना शामिल है।”

अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान, अब्दुर-रज़्ज़ाक़ अफ़ीफ़ी, अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़।” उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा प्रश्न संख्या : (30740) का उत्तर भी देखें।

लेकिन आपका कहना : यह लागू नहीं होता है, तो यदि आपके कहने का अर्थ यह है कि आपको जीवन बीमा कराए बिना ऋण मिल जाता है, तो ऐसी स्थिति में ऋण लेने में कोई हर्ज नहीं है, और अनुबंध में इस शर्त का मौजूद होना आपको नुक़सान नहीं पहुँचाएगा; क्योंकि जो चीज़ निषिद्ध है, वह बीमा में भाग लेना है और यदि आप इसमें भाग लेने के लिए बाध्य नहीं हैं, तो इस स्थिति में कोई समस्या नहीं है। और यहाँ शर्त का होना, न होने की तरह है। इसलिए इस अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में कोई हर्ज नहीं है जब तथ्य यह है कि इस शर्त को लागू नहीं किया जाएगा।

इसके लिए साक्ष्य (प्रमाण) के रूप में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की हदीस को  उद्धृत किया जा सकता है, जिसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बरीरह (एक दासी जो अपने स्वामियों से अपनी आज़ादी खरीदना चाहती थी और उसने ऐसा करने में आयइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की मदद मांगी) की कहानी में उनसे कहा : “उसे खरीद लो और उनके लिए वला ​​(उत्तराधिकार के अधिकार) की शर्त लगा लो। क्योंकि वला का अधिकार उसी के लिए है, जिसने आज़ाद किया है। तो आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने ऐसा ही किया। फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों के बीच उन्हें संबोधित करने के लिए खड़े हुए। चुनाँचे आपने अल्लाह की स्तुति और प्रशंसा की, फिर कहा : “अल्लाह की प्रशंसा के बाद, कुछ लोगों को क्या हो गया है कि वे ऐसी शर्तें लगाते हैं जो अल्लाह की पुस्तक में नहीं हैंॽ कोई भी शर्त जो अल्लाह की किताब में नहीं है, वह अमान्य है, भले ही सौ शर्तें हों। अल्लाह का फैसला पालन किए जाने के अधिक योग्य है और अल्लाह द्वारा निर्धारित शर्त अधिक मज़बूत (विश्वसनीय) है। वला (विरासत का अधिकार) केवल उसी के लिए है, जिसने आज़ाद किया है।” इसे बुख़ारी (हदीस संख्या : 2168) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1504) ने रिवायत किया है।

चुनाँचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें एक अमान्य शर्त से सहमत होने की अनुमति प्रदान कर दी, जिसका उन्हें कभी भी पालन नहीं करना था।

शैख़ुल-इस्लाम रहिमहुल्लाह ने कहा : “विद्वानों के एक समूह ने एक तीसरा जवाब दिया, जिसका उल्लेख अहमद और अन्य लोगों ने किया है और वह यह कि उन लोगों को पता था कि यह शर्त निषिद्ध है, लेकिन उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निषेध करने के बाद भी ऐसा किया। इसलिए उनके शर्त लगाने की उपस्थिति, उसकी अनुपस्थिति की तरह थी।

आपने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से बयान किया कि : तुम्हारा उनके लिए वला की शर्त लगाना, तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाएगा। यह उस शर्त को निर्धारित करने का आदेश नहीं है; बल्कि वह खरीदार को उसकी शर्त लगाने की अनुमति  देना है, अगर विक्रेता उस शर्त के बिना बेचने से इनकार करता है। तथा यह क्रेता को यह बताना है कि यह शर्त उसे नुक़सान नहीं पहुँचाएगी और किसी व्यक्ति के लिए इस तरह के लेनदेन में प्रवेश करने की अनुमति है।

इस प्रकार यह विक्रेता द्वारा वह शर्त निर्धारित करने के बावजूद, कुछ खरीदने की अनुमित है, तथा यह उनके साथ उसकी शर्त लगाने में प्रवेश करने की अनुमति है। क्योंकि इससे कोई नुकसान नहीं होगा। तथा वही हदीस इस बात में स्पष्ट है कि इस तरह की भ्रष्ट (अमान्य) शर्त अनुबंध को अमान्य नहीं करती है, और यही बात (दृष्टिकोण) सही है। यह इब्ने अबी लैला और अन्य का दृष्टिकोण है, और यही अहमद का मत है, उनसे वर्णित दो रिवायतों में सबसे स्पष्ट रिवायत के अनुसार।”

“मजमूउल-फतावा” (29/338) से उद्धरण समाप्त हुआ।

और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android
at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android