डाउनलोड करें
0 / 0

नमाज़ में हाथ उठाने का तरीक़ा, तथा अगर नमाज़ी उसमें गलती कर जाए, तो उसे क्या करना चाहिएॽ

प्रश्न: 298825

मैंने नमाज़ पढ़ी, और रुकू से उठने को दौरान मैंने अपने हाथों को अपने मोंढों या अपने कानों के पास नहीं रखे, बल्कि उससे नीचे रखे। जब मुझे एहसास हुआ, तो मैंने अपने हाथों की स्थिति को सही कर लिया। तो क्या मेरी नमाज़ सही (मान्य) है या नहींॽ

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

सर्व प्रथम :

सुन्नते नबवी में प्रमाणित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ में चार स्थानों पर अपने दोनों हाथों को उठाते थे, जो कि ये हैं : तकबीरतुल-एहराम के समय, रुकू के समय, रुकू से उठते समय, दो रकअतों से अर्थात पहले तशह्हुद से उठते समय।

इसका प्रमाण वह हदीस है जिसे बुखारी (हदीस संख्या : 739) ने नाफ़े से रिवायत किया है किः इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा जब नमाज़ में प्रवेश करते (नमाज़ शुरू करते) तो तकबीर कहते और अपने दोनों हाथों को उठाते, और जब रुकू करते तो अपने दोनों हाथों को उठाते, और जब वह “समि अल्लाहु लिमन हमिदह” (अल्लाह ने उसकी बात सुनी जिसने उसकी प्रशंसा की) कहते तो अपने दोनों हाथों को उठाते। और जब वह (पहली) दो रकअतों से उठते, तो अपने दोनों हाथों को उठाते थे।” इब्ने उमर ने इसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुँचाया है।”

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने कहा :

“(नमाज़ में) दोनों हाथों को उठाने की चार जगहें हैं : तकबीरतुल-एहराम के समय, रुकू के समय, रुकू से उठते समय, तथा पहले तशह्हुद से खड़े होते समय।”

“अश-शर्हुल-मुम्ते 3 (3/214)” से उद्धरण समाप्त हुआ।

जहाँ तक दोनों हाथों को उठाने के तरीक़े का संबंध हैः तो एक रिवायत में आया है किः उन्हें मोंढों (कंधों) के बराबर तक उठाया जाएगा। तथा एक अन्य रिवायत में है किः उन्हें दोनों कानों की लौ (कान लोब) तक उठाया जाएगा।

अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्होंने कहा : “मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि जब आप नमाज़ के लिए खड़े हुए तो (तकबीर तहरीमा के समय) अपने दोनों हाथों को उठाया यहाँ तक क वे दोनों आपके मोंढों (कंधों) के बराबर हो गए। और ऐसे ही आप उस समय भी अपने दोनों हाथों को उठाते थे जब आप रुकू में जाने के लिए तकबीर कहते थे। तथा जब आप रुकू से अपना सिर उठाते थे तो उस समय भी ऐसे ही दोनों हाथों को उठाते थे और “समि अल्लाहु लिमन हमिदह” कहते थे। परंतु सज्दे में आप हाथ नहीं उठाते थे।”

इसे बुखारी (हदीस संख्या : 736) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 390) ने रिवायत किया है।

तथा मालिक बिन अल-हुवैरिस से वर्णित है किः “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब तकबीर (तहरीमा) कहते तो अपने दोनों हाथों को उठाते थे यहाँ तक कि उन्हें अपने दोनों कानों के बराबर तक ले जाते, और जब आप रुकू करते तो अपने दोनों हाथों को उठाते यहाँ तक कि उन्हें अपने दोनों कानों तक ले जाते। और जब आप रुकू से अपना सिर उठाते और “समि अल्लाहु लिमन हमिदह” कहते तो उस समय भी ऐसा ही करते (अर्थात अपने दोनों हाथों को उठाते)।” इसे मुस्लिम ने (हदीस संख्या : 391) ने रिवायत किया है।

उपर्युक्त हदीसों के आधार पर, विद्वानों ने इस विषय में मतभेद किया है कि हाथों को कैसे उठाया जाएः

उनमें से कुछ का मत यह है कि उन्हें मोंढों के बराबर तक उठाया जाएगा। इसका अभिप्राय यह है कि उसकी दोनों हथेलियाँ उसके दोनों मोंढों (कंधों) के बराबर तक हो जाएँ। यह उमर इब्नुल-खत्ताब और उनके बेटे, तथा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हुम का दृष्टिकोण है। यही “अल-उम्म” में इमाम शाफेई का कथन है और इसी की ओर उनके असहाब भी गए हैं। तथा यही मत इमाम मालिक, अहमद, इसहाक़, और इब्नुल मुंज़िर का भी है, जैसा कि “अल-मजमू” (3/307) में है।

जबकि इमाम अबू हनीफा का विचार यह है कि हाथों को कानों के बराबर तक उठाया जाएगा।

तथा इमाम अहमद से एक रिवायत यह है किः नमाज़ी दोनों तरीक़ों में से किसी एक को चुन सकता है, और दोनों में से किसी एक को दूसरे पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है। इब्नुल मुंज़िर ने इसे कुछ अह्लुल-हदीस (हदीस के कुछ विद्वानों) से वर्णन किया है और उसे अच्छा समझा है।

अलबानी ने कहा: यही सही दृष्टिकोण है। क्योंकि दोनों में से प्रत्येक सुन्नत है। इसी दृश्य की ओर हमारे बहुत से अनुसंधानकारी विद्वानों का झुकाव है, जैसे कि- अली अल-क़ारी और अस-सिन्दी अल-हनफ़ी।

देखें : अल्बानी की “सिफतो सलातिन-नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम” (1/202).

दूसरा :

नमाज़ के दौरान उपर्युक्त स्थानों में हाथों को उठाना नमाज़ की सुन्नतों में से एक सुन्नत है।

अल-मौसूअतुल-फ़िक़्हिय्या (27/95) में आया है : “शाफ़ेइय्या और हनाबिला ने रुकू करते और रुकू से उठते समय दोनों हाथों को उठाने की वैधता पर सहमति व्यक्त की है और यह कि वह नमाज़ की सुन्नतों में से है। जैसा कि सुयूती का कहना है: हाथ उठाना पचास सहाबा की रिवायत से प्रमाणित है।” उद्धरण समाप्त हुआ।

नमाज़ की सुन्नतों को छोड़ने से नमाज़ की वैधता (विधिमान्यता) प्रभावित नहीं होती है। यदि किसी नमाज़ी ने अपनी संपूर्ण नमाज़ के दौरान हाथ नहीं उठाया है, तो इससे उसकी नमाज़ की वैधता (विधिमान्यता) पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन उसने नमाज़ की सुन्नतों में से एक सुन्नत को छोड़ दिया और वह उसके सवाब से वंचित हो जाएगा।

फिर यह भी है कि हाथ उठाने के तरीक़े और उसके उठाने के स्थान में कुछ कमी के साथ हाथों को उठाना, जैसा कि आपसे हुआ हैः इसका मामला पूरी तरह से हाथ उठाने को छोड़ने की तुलना में अधिक आसान है।

इस आधार पर, आपसे हाथ उठाने के तरीके में जो थोड़ी सी त्रुटि हुई है और फिर आपने उस त्रुटि को ठीक कर लिया है; इससे आपकी नमाज़ की वैधता (विधिमान्यता) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इसलिए, आप के लिए हमारी सलाह है किः आप हाथ उठाने के तरीक़े के बारे में अतिशयोक्ति और अधिक चिंता न करें। अगर आप देखती हैं कि आपके हाथ पूरी तरह से आपके मोंढों के बराबर नहीं हुए हैं, तो आप उन्हें फिर से (दूसरी बार) न उठाएं; क्योंकि यह वसवसे, संदेह और अनावश्यक रूप से नमाज़ के कार्यों को दोहराने का कारण बन सकता है, जो कि हाथों को उठाने के तरीके में मात्र एक उल्लंघन से अधिक गंभीर है।

और अल्लाह ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android
at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android