मैं एक ईसाई लड़की हूँ, कुछ महीनों से मैं इस्लाम के बारे में पढ़ रही हूँ। अब तक मैं क़ुरआन का अनुवाद तथा इस्लाम के विषय में कुछ किताबें पढ़ चुकी हूँ, इस के साथ-साथ कुछ लेख और अन्य अन्य सामग्रियों का भी अध्ययन कर चुकी हूँ, जो मुझे इंटरनेट पर तथा अन्य स्थानों से मिली हैं। मैं यह दावा नहीं करती कि मुझे हर चीज़ का ज्ञान है या मैं सब कुछ समझती हूँ। क्योंकि बहुत सारी चीज़ें ऐसी हैं जो मुझे भ्रमित कर रही हैं और मुझे इस्लाम की कुछ व्यावहारिक चीज़ों और उनकी व्याख्याओं को जिनके बारे में मैंने पढ़ा है, स्वीकार करने में कठिनाई महसूस होती है। किन्तु मैं अल्लाह पर ईमान रखती हूँ और मेरा ईमान है कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसके नबी (संदेष्टा) हैं और क़ुरआन अल्लाह का प्रकाशना (वह्य) किया हुआ कलाम (वचन) है।
मेरा सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? जैसा कि मैं ने बताया कि अभी भी बहुत सी बातें ऐसी हैं जिन का मुझे ज्ञान नही है। यह महत्वपूर्ण निर्णय है जिसे मैं लेने की कोशिश कर रही हूँ, सच्चाई यह है कि मैं अपने आपको एक भारी और भयावह ज़िम्मेदारी के सामने महसूस कर रही हूँ। मैं सब से अधिक चिंतित इस बात से रहती हूँ कि इस्लाम स्वीकार करने के पश्चात इस्लामिक शिक्षाओं को अपने जीवन मैं किस हद तक लागू कर सकती हूँ। मेरे जीवन में पहले ही से से कुछ चीज़ें बदल गई हैं, मैं ने शराब पीना बन्द कर दिया है, सूअर का मांस खाने से बचती हूँ और (घर) से बाहर निकलते समय लंबे बाजू की शर्ट और लंबी पैंट (या स्कर्ट) पहनने का प्रयास करती हूँ। परन्तु मैं यह भी जानती हूँ कि इस्लाम में प्रवेश करने के बाद कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें मैं तुरन्त करने में सक्षम नहीं हूँ, (कम से कम इस समय मुझे ऐसा लग रहा है) और इसके कई कारण हैं। उदाहरणार्थः हिजाब पहनना यानी पर्दा करना।
इस समय मैं विदेश में पढ़ाई कर रही हूँ, (अमेरिका में पढ़ती हूँ परन्तु मैं यूरोप से हूँ) और क्रिसमस के अवसर पर मैं अपने परिवार के पास वापस जाऊंगी। मुझे नहीं लगता कि मैं उन्हें अपने इस्लाम स्वीकार करने की खबर तत्काल दे सकूंगी। अतः मुझे नहीं मालूम कि उनके साथ रहते हुए इस्लाम के कुछ आदेशों का पालन कर सकूँगी। उदाहरणार्थः पाँचों समय की नमाज़ें अदा करना, रोज़ा रखना या सूअर का मांस खाने से बचना आदि।
इस बात का ज्ञान होने के बावजूद कि मैं इस्लाम स्वीकार करने के बाद इस्लाम के सभी आदेशों का पालन नहीं कर सकती (कम से कम तत्काल नहीं कर सकती) तो क्या मेरा इस्लाम स्वीकार करना ग़लत है? जबकि मैं जानती हूँ कि अभी भी बहुत सी बातें समझ और ज्ञान की कमी के कारण, मैं नही समझती हूँ या उन्हें दिल की गहराई से स्वीकार करने में कठिनाई महसूस करती हूँ। आप से अनुरोध है कि मेरा मार्गदर्शन करें।
एक ईसाई लड़की को इस्लाम स्वीकार करने का निर्णय लेने में कठिनाइयों का सामना
प्रश्न: 3313
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
उत्तर :
हरप्रकार कीप्रशंसा औरगुणगान केवलअल्लाह के लिएयोग्य है।
ऐ बुद्धिमान विवेकपूर्णसत्य के लिए उत्सुकप्रश्नकर्ता! आप ने सच केलिए अपनी खोज मेंजो कुछ हासिल कियाहै वह एक उल्लेखनीयउपलब्धि और एकमहान काम है।और अब उसे अपनेजीवन में सबसेमहत्वपूर्ण कदमसे पूरित करनाबाक़ी रह गयाहै, और वह : शहादतैन(ला इलाहाइल्लल्लाह और मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह)का उच्चारणकरना औरइस्लाम धर्ममें प्रवेश करनाहै। वास्तव मेंहम आप के इसप्रयास कोसम्मान कीनज़र से देखतेहैं कि आप नेपूरे क़ुरआनकरीम का अनुवादपढ़ा औरइस्लाम केविषय मे कईपुस्तकों तथा लेखोंका अध्ययनकिया है। औरयह भी सराहनीयबात है कि आपने कई हराम(वर्जित)चीज़ों कोजैसे शराब पीनाऔर सूअर का मांसखाना छोड़दिया है। औरसब सेमहत्वपूर्णबात यह है किआप को इस्लामधर्म, इस्लामके पैगंबर तथाइस्लाम कीपुस्तक(क़ुरआन) केप्रति संतुष्टिप्राप्त होचुकी है। आपके प्रश्न केमाध्यम से हमआपको पेशआनेवालीबाधाओं को संक्षेपमें दो पहलुओंमें प्रस्तुत करसकते हैं :
– कुछ सामाजिक शर्मिंदगी(परेशानियाँ)।
– कुछमामले ऐसे हैजिन्हें आपअभी तक पूरीतरह समझ नहींपाई हैं।
जहाँ तक दूसरेपहलू का संबंधहै, तो इस्लाममें प्रवेशकरने के लिएयह शर्त नहींहै कि इन्सानको पूरेइस्लाम धर्मका ज्ञान होनाचाहिएक्योंकि यह एकविशाल सागरहै। अतःमनुष्यइस्लामस्वीकार करने केबाद अल्लाह केधर्म को सीखसकता है औरउसके मन कोशरीयत के सभीप्रावधानों(अहकाम) केप्रतिसंतुष्टि प्राप्तहो सकती है। शुरुआतमें,इतना काफीहै कि ईमान के छहस्तंभों पर साररूप से ईमानलाएं (अर्थात अल्लाहपर, उसकेस्वर्गदूतोंपर, उसकीपुस्तकों पर,उसके रसूलों (संदेष्टाओं)पर, आखिरत केदिन पर औरअच्छी तथा बुरीतक़्दीर(भाग्य) परईमान लाएं), तथाइस्लाम केपाँचोंस्तंभों का साररूप से ज्ञानहो और उन्हें स्वीकारकरें (अर्थात इसबात की गवाहीदेना कि अल्लाहके अलावा कोई सत्यपूज्य नहीं औरमुहम्मदसल्लल्लाहुअलैहि व सल्लमअल्लाह केरसूल हैं,नमाज़स्थापित करना,ज़कात देना,रमज़ान केरोज़े रखना औरअल्लाह के घरका, यदि वहाँतक पहुँचनेमें सक्षम हैंतो हज्ज करना)।तथा आप जानलीजिए किज्ञान और संतोषधीरे-धीरे विकसितहोते हैं, औरउपासना के कृत्योंऔर अल्लाह की आज्ञाकारितासे ईमान बढ़जाता है। औरयह सब अल्लाहतआला के प्रावधानों(अहकाम) कीगहरी समझ औरउनकी स्वीकृतिका कारण बनतेहैं।
जहाँ तक पहलीबात का संबंधहै, तो हमेंयक़ीन है किजब आप इस्लाममें प्रवेशकरेंगी औऱ अल्लाहके लिए सच्चाईऔर ईमानदारी अपनाएंगीऔर नेक कार्यकरेंगी तोअल्लाह आप को इतनीशक्ति,दृढ़ता, साहसऔर निश्चितताप्रदान करेगा,जिस से आप सभीकठिनाइयों कासामना करने औरउन पर क़ाबूपाने मेंसक्षम होंगी।
आप से पहले जोमहिलाएंमुसलमान बनीहैं उनके अनुभवोंमें उस चीज़के लिए एकअच्छा उदाहरणहै कि हिजाब औरउसके अलावाशरीयत के अन्यप्रावधानों कोलागू करने से भविष्यमें आप के साथ क्याहो सकता है, हालांकिआसपास केमाहौल में सामान्यरूप से अविश्वास(नास्तिकता)ही काअस्तित्व है। हमयह भी कहतेहैं कि यदिकोई महिला हमसे पूछे किक्या मैं पूर्णहिजाब किएबिना इस्लामस्वीकार करलूँ या मैंकुफ्र ही परबाक़ी रहूँ? तो निश्चितरूप से हम उसमहिला को जवाबदेंगे कि वहइस्लामस्वीकार कर लेक्योंकिकुफ्र पर बाक़ीरहने की आपदाके पाप,दुष्टता औरगंभीरता कीतुलना एक पाप करनेके साथ इस्लामसे बिल्कुलनहीं की जासकती। (अर्थातपाप करने केबावजूदमुसलमान बनजाना, कुफ्रपर बने रहनेसे बहुत अच्छाहै, बल्किदोनों में कोईतुलना ही नहींहै)
जिनकठिनाइयों औरसामाजिक शर्मिंदगीका आप नेउल्लेख कियाहै उन्हें हमपूरी तरह समझरहे हैं, और हमनिश्चित रूपसे जानते हैंकि इन्सान काअपने परिवारऔर आसपास केसमाज का विरोधकरना बहुत मुश्किलऔर कठिन कामहै, परन्तुअल्लाह हरमुश्किल कामआसान बना देताहै। अल्लाहतआला का फरमानेहै :
( والله مع الصّادقين )
”अल्लाहसच्चों के साथहै।” (अर्थातउन का रक्षकहै।)
तथाअल्लाह नेफरमाया :
( والله وليّ المؤمنين )
”अल्लाहईमान वालों कावली और मददगारहै।”
तथा अल्लाहने फरमाया :
( ومن يتقّ الله يجعل له مخرجا )
”और जोइन्सानअल्लाह सेडरता हैअल्लाह उस के लिएछुटकारे कारास्ता निकालदेता है।”
तथा अल्लाहने फरमाया :
( سيجعل الله بعد عُسر يُسرا )
”अल्लाहकठिनाइयों केबाद आसानीप्रदान करेगा।”
तथा अल्लाहने फरमाया :
( والذين جاهدوا فينالنهدينهم سبلنا)
”औरजिन लोगों नेहमारे लिएसंघर्ष कियाहम अवश्य हीउन्हें अपनामार्गदर्शायेंगे।”
हम आप को यह भीबताना चाहतेहैं कि जबआदमी इस्लामस्वीकार कर लेऔर उसे अपनेऊपर असहनीयकष्ट और उत्पीड़नका भय हो तोऐसी स्थितिमें उसके लिएअपने इस्लामको छुपाना औरउसे गुप्तरखना संभव है,तथा वह अपनीउपासनाकृत्यों को आसपास के लोगोंकी आँखों से छुपासकता है। हालांकिऐसा करने के लिएउसे कठिनाइयोंका सामना करनापड़ेगा, लेकिनसत्य का पालनकरने के लिए औरनरक की यातनासे अपने आप को बचानेके लिए सब कुछ तुच्छहो जाता है और ईमानवालाव्यक्ति सभीकठिनाइयों परक़ाबू पा लेताहै।
इस जवाब केअंत में, हम आपके किए गए प्रयासों,आपके उठाए गएकदम और सवालकरने में आपकीरुचि पर आप काशुक्रिया अदाकरते हैं। हम आशाकरते हैं किइस जवाब से आपका अगला औरतत्काल क़दम पूरीतरह से स्पष्टहो गया होगा। हमभविष्य में आपको किसी भी क्रममें कोई आवश्यकतापड़ती है तो ख़ुशीसे मदद के लिए तैयारहैं। हम अल्लाह सेप्रार्थना करतेहैं कि वह आपको सत्य मार्गपर चलाए, आप की सहायताकरे और आप केमामलों कोआसान कर दे।अल्लाह हीसीधे पथ कामार्गदर्शनकरने वाला है।
और अल्लाहहीसर्वश्रेष्ठ ज्ञानरखता है।
स्रोत:
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद