तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान का अर्थ क्या हैॽ
तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान का अर्थ
प्रश्न: 34732
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
क़दरः इसका अर्थ है अल्लाह तआला का अपने पूर्व ज्ञान और अपनी हिक्मत (तत्वदर्शिता) के तक़ाज़े के अनुसार संसार में घटित होनेवाली हर चीज़ का भाग्य निर्धारित करना।
तक़्दीर पर ईमान लाने में चार चीज़ें शामिल हैं :
प्रथमः इस बात पर ईमान लाना कि अल्लाह तआला को प्रत्येक चीज़ का सार (इज्माली) रूप से तथा विस्तार पूर्वक, अनादि-काल (अज़ल) तथा अनंत-काल (अबद) से ज्ञान है, चाहे उसका संबंध अल्लाह तआला की क्रियाओं से हो अथवा उसके बन्दों के कार्यों से हो।
द्वितीयः इस बात पर ईमान लाना कि अल्लाह तआला ने उस चीज़ को लौहे मह्फ़ूज़ (सुरक्षित पट्टिका) में लिख रखा है।
इन्हीं दोनों चीज़ों के विषय में अल्लाह तआला फरमाता है :
)أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاء وَالأرْضِ إِنَّ ذلِكَ فِي كِتَابٍ إِنَّ ذلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ([الحج :70].
''क्या आप ने नहीं जाना कि आकाश और धरती की प्रत्येक चीज़ अल्लाह तआला के ज्ञान में है, यह सब लिखी हुई पुस्तक में सुरक्षित है, अल्लाह तआला पर तो यह कार्य अति सरल है।'' (सूरतुल-हज्ज: 70)
तथा सहीह मुस्लिम में अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है, वह बयान करते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह कहते हुए सुना :
''अल्लाह तआला ने आकाशों और धरती की रचना करने से पचास हज़ार वर्ष पूर्व समस्त सृष्टि के भाग्यों (तक़्दीरों) को लिख रखा था।''
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “सबसे पहली चीज़ जिसे अल्लाह तआला ने पैदा किया वह क़लम है। अल्लाह तआला ने उससे फरमायाः लिख। उसने कहाः ऐ मेरे पालनहार, मैं क्या लिखूँॽ अल्लाह तआला ने फरमायाः प्रलय तक होने वाली हर चीज़ की तक़्दीर (भाग्य) लिख।” इसे अबू दाऊद (हदीस संख्याः 4700) ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह अबू दाऊद में इसे सही क़रार दिया है।
तीसरीः इस बात पर ईमान लाना कि संसार की प्रत्येक चीज़ का वजूद (अस्तित्व) अल्लाह तआला की मशीयत (इच्छा) पर निर्भर है।
चाहे यह अल्लाह सर्वशक्तिमान के कार्य से संबंधित हो, या प्राणियों के काम से संबंधित हो।
अल्लाह तआला ने अपने कार्य के संबंध में फरमायाः
(وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ وَيَخْتَارُ ) [القصص: 68].
''और आपका रब (पालनहार) जो इच्छा करता है पैदा करता है और जिसे चाहता है चुन लेता है।'' (सूरतुल-क़सस्: 68)
तथा फरमायाः
( وَيَفْعَلُ اللَّهُ مَا يَشَاءُ ) [ابراهيم: 27].
“और अल्लाह जो चाहे कर गुज़रता है।” (सूरत इब्राहीमः 27)
और फरमाया:
( هُوَ الَّذِي يُصَوِّرُكُمْ فِي الأَرْحَامِ كَيْفَ يَشَاءُ ) [آل عمران: 6].
“वही है जो माता के गर्भ में जिस प्रकार चाहता है तुम्हारे रूप बनाता है।” (सूरत आल-इम्रानः 6)
तथा मख्लूक़ के कार्य के विषय में फरमायाः
( وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَيْكُمْ فَلَقَاتَلُوكُمْ ) [النساء : 90]
“और यदि अल्लाह तआला चाहता तो तुम्हें उनके अधिकार अधीन कर देता और वे अवश्य तुम से युद्ध करते।” (सूरतुन-निसाः 90)
और फरमायाः
( وَلَوْ شَاءَ رَبُّكَ مَا فَعَلُوهُ ) [الأنعام : 112] .
''और यदि तुम्हारा रब (पालनहार) चाहता तो वे ऐसे कार्य न करते।'' (सूरतुल-अन्आमः 112)
अतः सभी घटनाएं, कृत्याँ और वस्तुएं अल्लाह की इच्छा से ही होती हैं। जो भी अल्लाह चाहता है वह होता है, और जो वह नहीं चाहता वह नहीं होता है।
चैथीः इस बात पर ईमान लाना कि संसार की प्रत्येक वस्तु अपनी ज़ात (अस्तित्व), विशेषताओं और गतिविधियों के साथ अल्लाह तआला की सृष्टि (पैदा की हुई) है, अल्लाह तआला ने फरमायाः
(اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ ) [الزمر: 62].
''अल्लाह प्रत्येक चीज़ का पैदा करने वाला है और वही प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।'' (सूरतुज़-ज़ुमर : 62)
और फरमाया:
( وَخَلَقَ كُلَّ شَيْءٍ فَقَدَّرَهُ تَقْدِيراً ) [الفرقان : 2].
“और उस ने प्रत्येक चीज़ को पैदा करके उसका एक उचित अनुमान निर्धारित कर दिया है।” (सूरतुल फुरक़ानः 2)
और अल्लाह तआला हमें बताता है कि अल्लाह के पैगंबर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपनी जाति के लोगों से कहा :
( وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ ) [الصافات : 96].
''हालांकि तुम्हें और तुम्हारी बनाई हुई चीज़ों को अल्लाह ही ने पैदा किया है।'' (सूरतुस्-साफ़्फ़ातः 96)
यदि कोई व्यक्ति इन सब बातों पर ईमान रखता है, तो वह सही ढंग से तक़्दीर पर ईमान रखनेवाला है।
उपर्युक्त विवरण के अनुसार तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान रखना इस बात के विरूद्ध नहीं है कि ऐच्छिक कार्यों को करने में बन्दे की अपनी कोई इच्छा और शक्ति हो, इस प्रकार कि जिस नेकी का करना या छोड़ना, तथा जिस पाप का करना या छोड़ना उसके लिए संभव है वह इस बात को चुन सकता है कि वह उसे करे या छोड़ दे। शरीअत और वस्तुस्थिति दोनों ही बंदे के लिए इस मशीयत (इच्छा) के सिद्ध होने को दर्शाते हैं।
शरीअत से इसका प्रमाण यह है कि अल्लाह तआला ने बन्दे की मशीयत (इच्छा) के विषय में फरमायाः
(فَمَنْ شَاءَ اتَّخَذَ إِلَى رَبِّهِ مَآباً ) [النبأ :39] .
''अतएव जो व्यक्ति चाहे अपने रब के पास (पुण्य कार्य करके) अपना ठिकाना बना ले।'' (सूरतुन-नबाः 39)
तथा फरमायाः
( فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ ) [البقرة : 223] .
“अतः अपनी खेती में जिस प्रकार चाहो आओ।” (सूरतुल-बक़राः 223)
तथा सामर्थ्य (क़ुद्रत) के विषय में फरमायाः
( فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ ) [التغابن :16].
''अतएव अपनी यथाशक्ति अल्लाह से डरते रहो।'' (सूरतुत्-तग़ाबुनः 16)
तथा फरमायाः
( لا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْساً إِلا وُسْعَهَا لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ) [البقرة :286] .
“अल्लाह तआला किसी प्राणी पर उसके सामर्थ्य से अधिक भार नहीं डालता, जो पुण्य वह करे वह उसके लिए है, और जो बुराई वह करे वह उस पर है।” (सूरतुल-बक़राः 286)
वस्तुस्थिति से बन्दे की मशीयत (इच्छा) और क़ुद्रत का प्रमाण यह है कि प्रत्येक मनुष्य जानता है कि उसको मशीयत (इच्छा) और सामर्थ्य (क़ुद्रत) प्राप्त है जिन के द्वारा वह कोई कार्य करता है और उन्हीं के द्वारा कोई कार्य छोड़ता है, और उन्हीं के द्वारा बन्दे की इच्छा से होने वाले कार्य जैसे कि चलना, तथा उसकी इच्छा के बिना होने वाले कार्य जैसे कि कंपन (थरथराहट), के मध्य वह अन्तर करता है। किन्तु बन्दे की इच्छा और सामर्थ्य अल्लाह तआला की इच्छा और सामर्थ्य से घटित होते हैं, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
( لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَسْتَقِيمَ – وَمَا تَشَاءُونَ إِلا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ) [التكوير: 28-29].
“(यह क़ुर्आन सारे संसार वालों के लिए उपदेश है) उसके लिए जो तुम में से सीधे मार्ग पर चलना चाहे। और तुम बिना सर्वसंसार के पालनहार के चाहे कुछ नहीं चाह सकते।'' (सूरतुत्-तक्वीरः 28-29)
परन्तु पूरा ब्रह्मांड अल्लाह का स्वामित्व है, अतः उसकी सत्ता में उसके ज्ञान और मशीयत (इच्छा) के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
देखें : शैख इब्न उसैमीन की पुस्तिका “शर्ह उसूल अल-ईमान”।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर