पहली तलाक़ ई मेल के द्वारा हुई थी और पत्नी, पिता और चाचा को भेजी गई थी, तो क्या यह तलाक़ शुद्ध है या उसका किसी हस्ताक्षर किए गए कागज़ पर होना ज़रूरी है? और क्या अन्य दो तलाक़े तुरंत हो सकती हैं ?
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
ई मेल के द्वारा तलाक़ का हुक्म
प्रश्न: 36761
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
शरीअत में यह बात सर्वज्ञात है कि तलाक़ मात्र ज़ुबान से बोलने, या लिखने, या ऐसे संकेत के द्वारा जो बोलने के अर्थ में (क़ायम मुक़ाम) हो, संपन्न हो जाती है। प्रश्न संख्या (20660) का उत्तर भी देखिए-, और यह पति और उसके सर्वशक्तिमान पालनहार के बीच है इस हाल में कि उसे किसी अन्य ने न सुना हो। ई मेल के द्वारा तलाक़ के मामले में तलाक़ के संपन्न होने की दृष्टि से कोई समस्या नहीं है, क्योंकि पति ने जब अपनी पत्नी के तलाक़ को लिख दिया तो मात्र लिखने से तलाक़ संपन्न हो गयी, किंतु यहाँ मुद्दा इस तलाक़ के सिद्ध होने और उसे प्रमाणित करने में है।
प्रत्यक्ष बात यह है कि पति का अपनी पत्नी को ई मेल के द्वारा तलाक़ देना संपन्न हो जाता है यदि निश्चित रूप से यह बात साबित हो जाए जिस आदमी ने तलाक़ पर आधारित संदेश (ई मेल) भेजा है वह पति ही है या ऐसा व्यक्ति है जिसे पति ने तलाक़ के लिए वकील नियत किया है और वह (पति) इस बात को स्वीकार करे, उसका इंकार न करे।
किंतु यदि यह बात साबित न हो और पति इसको स्वीकार न करे: तो इस संदेश (ई मेल) का कोई ऐतिबार नहीं होगा और ऐसी स्थिति में तलाक़ नहीं होगी। क्योंकि इन संसाधनों के विषय में काम करने वालों के यहाँ यह बात सर्वज्ञात है कि ई मेल की चोरी और उसके माध्यम से संदेश (मेल) भेजना संभव है।अतः, निश्चित रूप से यह कहना कि भेजने वाला पति ही है, हो सकता है सहीह न हो।
अतएव पति के व्यक्तित्व को सत्यापित और सुनिश्चित करना अनिवार्य है, और तलाक़ को पति के अनुमोदन के बाद ही शुमार किया जाये, यदि वह स्वीकार कर लेता है तो इद्दत का आरंभ उसके तलाक़ का शब्द बोलने या उसके संदेश (ई मेल) लिखने के समय से होगा।
दूसरा:
दोनों शेष तलाक़े तुरंत देना संभव नहीं है, क्योंकि तलाक़ एक के बाद एक संपन्न होती है, अल्लाह तआला का फरमान है कि:
[ الطَّلاقُ مَرَّتَانِ]‘‘तलाक़ दो बार है।’’-अर्थात रजई तलाक़ जिसमें पति को अपनी पत्नी को लौटाने का अधिकार होता है दो बार है- और अल्लाह तआला ने दो तलाक़ नहीं कहा है, यह इस बात की ओर संकेत है कि वह एक के बाद एक संपन्न होती है, हर बार तलाक़ की एक इद्दत होती है। यदि पहली तलाक़ को मान लिया गया है, तो हम इद्दत के दौरान देखें गे: यदि उसने तुम्हें उसके दौरान वापस लौटा लिया, तो उस तलाक़ को,एक तलाक़ शुकमार किया जायेगा, और उसे चाहिए कि इस पर वह किसी को गवाह बना ले। और यदि उसने तुम्हें उस इद्दत के दौरान नहीं लौटाया, तो तुम मात्र इद्दत समाप्त होने से ही उससे अलग हो जाओगी, और उसके लिए तुम्हारी तरफ लौटना नये विवाह और नये महर के द्वारा ही हलाल (वैध) है। और वह अन्य शादी का पैगाम देने वालों के समान एक अजनबी (पराया) शादी का पैगाम देने वाला हो जायेगा, और तुम्हारी इच्छा (रज़ामंदी) और तुम्हारे वली की सहमति से ही शादी संभव है।
और यही बात दूसरी तलाक़ में भी कही जायेगी, यदि उसने इद्दत के दौरान तुम्हें वापस लौटा लिया तो तुम उसकी पत्नी हो। और अगर उसने तीसरी तलाक़ दे दी तो तुम उस पर हराम हो जाओगी यहाँ तक कि तुम उसके अलावा किसी दूसरे आदमी से शरई शादी करो जिसका उद्देश्य तुम्हें पहले पति की ओर लौटाना न हो, और शरीअत की दृष्टि से (उसका तुम्हारे ऊपर) प्रवेश साबित हो, फिर यदि दूसरे पति से तलाक़ हो जाए तो इद्दत समाप्त होने के बाद तुम पहले पति के लिए हलाल (वैध) हो जाओगी।
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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