शुरुआती महीनों (1-3) में भ्रूण में प्राण डाले जाने से पहले गर्भपात करने का क्या हुक्म है?
प्रारंभिक महीनों में गर्भपात करने का हुक्म
प्रश्न: 42321
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
वरिष्ठ विद्वानों की परिषद ने निम्नलिखित निर्णय लिया है :
1-किसी भी चरण में गर्भपात करना जायज़ नहीं है जब तक कि उसके लिए कोई वैध (शरई) कारण न हो, और बहुत ही संकीर्ण सीमाओं के भीतर।
2– अगर गर्भ पहले चरण में है, जो कि चालीस दिनों की अवधि है, और उसका गर्भपात करने में कोई शरई हित (उद्देश्य) पूरा होता है या किसी हानि को दूर करना है, तो उसका गर्भपात करना जायज़ है। लेकिन जहाँ तक बच्चों की परवरिश में कठिनाई के डर से या उनके भरण-पोषण और शिक्षा की लागत को वहन करने में असमर्थ होने के डर से, या उनके भविष्य के डर से या दंपति के पास जो बच्चे हैं उन्हीं को पर्याप्त समझकर उन्हीं पर बस करते हुए, इस अवधि में गर्भपात करने का संबंध है, तो यह जायज़ नहीं है।
3 – गर्भ गिराना जायज़ नहीं है यदि वह अलक़ह (रक्त का थक्का) या मुज़ग़ह (मांस का लोथड़ा) है (जो कि चालीस दिनों की दूसरी और तीसरी अवधि होती है) जब तक कि एक भरोसेमंद चिकित्सा समिति यह फैसला न कर दे कि गर्भ को जारी रखने में माँ की सलामती (सुरक्षा) के लिए खतरा है क्योंकि इसको जारी रखने से उसकी जान जाने का डर है, तो इन खतरों को दूर करने के सभी साधनों एवं उपायों को अपनाने के बाद उसे गिराना जायज़ है।
4 – तीसरे चरण के बाद, और चार महीने पूरे होने के बाद, उसका गर्भापात करना जायज़ नहीं है यहाँ तक कि भरोसेमंद चिकित्सा विशेषज्ञों का एक समूह यह निर्णय कर दे कि भ्रूण का अपनी माँ के पेट में रहना उसकी माँ की मृत्यु का कारण बन सकता है। और यह भी केवल उसके बाद ही किया जाना चाहिए जब उसके जीवन को बचाने के लिए सभी साधन समाप्त हो जाएँ। इन शर्तों के साथ उसके गिराने की रियायत (छूट) केवल दो हानियों में से सबसे बड़ी हानि को दूर करने तथा दो हितों में से सबसे बड़े हित को प्राप्त करने के लिए दी गई है।
स्रोत:
अल-फतावा अल-जामिअह (3/1056)