दलाली (ब्रोकरेज) का क्या हुक्म है? क्या वह पैसा जो दलाल लेता है, हलाल हैॽ
दलाली (ब्रोकरेज) का हुक्म
प्रश्न: 45726
उत्तर का सारांश
समसरह (दलाली) : यह विक्रेता और खरीदार के बीच मध्यस्थता को कहते हैं। ‘सिमसार’ : वह व्यक्ति है जो बिक्री का निष्पादन करने के लिए एक मध्यस्थ के रूप में विक्रेता और खरीदार के बीच प्रवेश करता है, और उसे दलाल कहा जाता है, क्योंकि वह खरीदार का वस्तुओं के लिए मार्गदर्शन करता है, और विक्रेता का कीमतों पर मार्गदर्शन करता है। इमामों (विद्वानों) के एक समूह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दलाली जायज़ है और उसके लिए भुगतान (शुल्क) लेना जायज़ है।
अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।
समसरह (दलाली) की परिभाषा
“समसरह (दलाली) : यह विक्रेता और खरीदार के बीच मध्यस्थता को कहते हैं। 'सिमसार' : वह व्यक्ति है जो बिक्री का निष्पादन करने के लिए एक मध्यस्थ के रूप में विक्रेता और खरीदार के बीच प्रवेश करता है। उसे दलाल कहा जाता है, क्योंकि वह खरीदार का वस्तुओं के लिए मार्गदर्शन करता है, और विक्रेता का कीमतों पर मार्गदर्शन करता है।” अल-मौसूअह अल-फिक़्हिय्यह (10/151) से उद्धरण समाप्त हुआ
लोगों को दलाली (ब्रोकरेज) की बहुत आवश्यकता होती है, क्योंकि बहुत से लोगों को खरीदने और बेचने में सौदेबाजी के तरीकों का पता नहीं होता है; अन्य लोगों के पास यह क्षमता नहीं होती है कि वे जो खरीदते हैं उसकी जाँच करें और उसके दोषों का पता लगाएँ; तथा कुछ दूसरों के पास खुद से खरीदने और बेचने का समय नहीं होता है।
अतः दलाली एक लाभकारी कार्य है जिससे विक्रेता, खरीदार और दलाल लाभान्वित होते हैं।
दलाल (ब्रोकर) के लिए उस क्षेत्र में अनुभवी होना आवश्यक है जिसमें वह विक्रेता और खरीदार के बीच मध्यस्थता कर रहा है, ताकि वह ज्ञान और अनुभव का दावा करके, हालाँकि वह ऐसा नहीं है, दोनों में से किसी को भी नुकसान न पहुँचाए।
उसे ईमानदार और सच्चा होना चाहिए, तथा उसे उनमें से एक का पक्ष दूसरे की कीमत पर नहीं लेना चाहिए, बल्कि सामान के दोषों और गुणों को ईमानदारी और सच्चाई से स्पष्ट करना चाहिए और विक्रेता या खरीदार को धोखा नहीं देना चाहिए।
इमामों (विद्वानों) के एक समूह ने स्पष्ट रूप से बयान किया है कि दलाली जायज़ है और उसके लिए शुल्क (भुगतान) लेना जायज़ है।
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह से दलाल के पारिश्रमिक (मज़दूरी) के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा : इसमें कोई हर्ज नहीं है। “अल-मुदव्वनह” (3/466)
इमाम बुखारी ने अपनी सहीह में कहा :
“दलाली की मज़दूरी का अध्याय : इब्ने सीरीन, अता, इबराहीम और अल-हसन ने दलाल की मज़दूरी में कुछ भी हर्ज नहीं समझा।
इब्ने अब्बास ने कहा : यह कहने में कोई आपत्ति की बात नहीं है : इस वस्त्र को बेच दो और जो कुछ इतने से अधिक होगा, वह तुम्हारा है।"
इब्ने सीरीन ने कहा : यदि वह कहता है : इसे इतने में बेचो। और जो कुछ भी लाभ होता है वह तुम्हारा है, या वह तुम्हारे और मेरे बीच विभाजित हो जाएगा, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “मुसलमान अपनी (निर्धारित की हुई) शर्तों पर क़ायम रहेंगे।” इमाम बुखारी की बात समाप्त हुई।
इब्ने क़ुदामा ने “अल-मुगनी” (8/42) में कहा :
“उसके लिए अपने लिए कपड़े खरीदने के लिए किसी दलाल को किराए पर लेना जायज़ है। इब्ने सीरीन, अता और नख़ई ने इसकी रुख़्सत दी है … और यह एक ज्ञात अवधि के लिए जायज़ है, जैसे कि उसे दस दिनों के लिए किराए पर लेना, जिसके दौरान वह उसके लिए खरीदारी करे; क्योंकि अवधि ज्ञात है, और कार्य ज्ञात है … यदि वह कार्य को निर्दिष्ट करता है लेकिन समय को नहीं, चुनाँचे वह उसके लिए प्रत्येक हज़ार दिरहम में से कुछ ज्ञात राशि निर्धारित करता है, तो यह भी सही (मान्य) है।
यदि वह उसे अपने लिए कुछ विशिष्ट कपड़े बेचने के लिए किराए पर रखता है, तो यह सही है। यही शाफेई ने भी कहा है, क्योंकि यह एक जायज़ काम है, जिसमें किसी को प्रतिनिधि नियुक्त करना जायज़ है, और यह सर्वज्ञात है। इसलिए इसके लिए किसी को किराए पर रखना जायज़ है, जैसे कि कपड़े खरीदने के लिए जायज़ है।” संक्षेप के साथ समाप्त हुआ।
स्थायी समिति से एक वाणिज्यिक कार्यालय (एजेंसी) के मालिक के बारे में पूछा गया, जो कुछ कंपनियों के उत्पादों के विपणन में मध्यस्थ के रूप में काम करता है, जहाँ उसे एक नमूना भेजा जाता है, जिसे वह बाजारों में व्यापारियों को दिखाता है, और उन्हें कंपनी की कीमत पर बेचता है, एक कमीशन के बदले जिसपर कंपनी के साथ सहमति होती है। क्या इसमें उसपर कोई पाप हैॽ
समिति ने जवाब दिया :
यदि वास्तविक स्थिति ऐसी ही है जो वर्णित है, तो आपके लिए उस कमीशन को लेना जायज़ है, और आप पर कोई पाप नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।
“फतावा अल-लजना अद-दाईमह” (13/125).
शैख़ इब्ने बाज़ से एक किराएदार के लिए एक दुकान या अपार्टमेंट तलाश करने के हुक्म के बारे में पूछा गया, एक पारिश्रमिक के बदले में जिसे वह उस व्यक्ति को भुगतान करेगा, जो उसके अनुरोध को पूरा करता है।
तो उन्होंने जवाब दिया :
“इसमें कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि यह मज़दूरी है और इसे 'सई' (मेहनताना) कहा जाता है। आपको उस उपयुक्त स्थान को खोजने का भरपूर प्रयास करना चाहिए, जिसे वह किराए पर लेना चाहता है। यदि आप इसमें उसकी मदद करते हैं और उसके लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश करते हैं, और किराए के बारे में मालिक से सहमत होने में उसकी मदद करते हैं, तो इन शा अल्लाह यह सब ठीक है, बशर्ते कि इसमें कोई विश्वासघात या छल नहीं होना चाहिए, बल्कि ईमानदारी और सच्चाई का मामला होना चाहिए। यदि आप सच्चाई से काम लेते हैं और बिना किसी छल या अन्याय के, न तो उसके प्रति और न ही संपत्ति के मालिक के प्रति, अनुरोधित चीज़ की तलाश में अमानत की अदायगी करते हैं, तो आप इन शा अल्लाह भलाई पर हैं।” उद्धरण समाप्त हुआ।
“फतावा अश-शैख इब्ने बाज़” (19/358).
स्रोत:
साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर