डाउनलोड करें
0 / 0
242603/10/2007

क्या हर मस्जिद में एतिकाफ़ सही है?

प्रश्न: 48985

क्या हर मस्जिद में एतिकाफ़ करना सही है?

अल्लाह की हमद, और रसूल अल्लाह और उनके परिवार पर सलाम और बरकत हो।

विद्वानों ने उस मस्जिद की विशेषता के बारे में मतभेद किया जिसमें एतिकाफ़ करना जायज़ है। कुछ विद्वान इस बात की ओर गए हैं कि प्रत्येक मस्जिद में एतिकाफ़ करना सही है भले ही उसमें जमाअत की नमाज़ न होती हो, अल्लाह सर्वशक्तिमान के इस कथन के सामान्य अर्थ पर अमल करते हुएः

  وَلا تُبَاشِرُوهُنَّ وَأَنْتُمْ عَاكِفُونَ فِي الْمَسَاجِدِ

البقرة :187 .

''और तुम उनसे (स्त्रियों से) उस समय संभोग न करो जब तुम मस्जिदों में एतिकाफ़ में हो।'' (सूरतुल बक़राः 187)।

जबकि इमाम अहमद इस बात की ओर गए हैं कि उस मस्जिद के अंदर इस बात की शर्त है कि उसमें जमाअत की नमाज़ क़ायम की जाती हो, और उन्होंने इस पर निम्न प्रमाणों से दलील पकड़ी हैः

1- आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का कथनः ''केवल जमाअत की मस्जिद में एतिकाफ़ है।'' इसे बैहक़ी ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने अपनी पत्रिकाः ''क़ियाम रमज़ान'' में इसे सही कहा है।

2- इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने फरमायाः ''केवल उसी मस्जिद में एतिकाफ़ मान्य है जिसमें नमाज़ क़ायम की जाती है।''

''अल-मौसूअतुल फ़िक़हिय्या (5/212)''

3- तथा इसलिए कि यदि वह ऐसी मस्जिद में एतिकाफ़ करेगा जिसमें जमाअत की नमाज़ नहीं होती है तो यह दो चीज़ों का कारण बनेगाः

प्रथमः या तो जमाअत की नमाज़ छोड़ना, और पुरूष के लिए बिना शरई उज़्र के जमाअत की नमाज़ छोड़ना जायज़ नहीं है।

दूसराः या तो किसी दूसरी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए बार-बार बाहर निकलना और यह एतिकाफ़ के विपरीत काम है।

देखिएः ''अल-मुग़्नी (4/461)

शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने ''अश-शर्हुल मुम्ते'' (6/312) में फरमायाः

''(एतिकाफ़ केवल उसी मस्जिद में सही है जिसमें जमाअत या जुमा की नमाज़ होती है)   

क्या इससे अभिप्राय वह मस्जिद है जिसमें जुमा की नमाज़ होती है, या वह मस्जिद जिसमें जमाअत की नमाज़ होती है?

उत्तरः इससे अभिप्राय वह मस्जिद है जिसमें जमाअत के साथ नमाज़ होती है और उस मस्जिद की शर्त नहीं है जिसमें जुमा की नमाज़ होती हो। क्योंकि जिस मस्जिद में जमाअत की नमाज़ नहीं होती है उसपर सही अर्थ में मस्जिद का शब्द उचित नहीं बैठता है जैसे कि उस मस्जिद को उसके वासियों ने छोड़ दिया हो या वे वहाँ से चले गए हों।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

अतः यह शर्त नहीं लगाई जाएगी कि उस मस्जिद में जुमा की नमाज़ आयोजित की जाती हो। क्योंकि यह बार बार नहीं आता, इसलिए इसके लिए निकलने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता है, जबकि पाँच समय की नमाज़ों का मामला इसके विपरीत है क्योंकि वह प्रत्येक दिन और रात में कई बार दोहराया जाता है।

यह शर्त – अर्थात ऐसी मस्जिद होने की जिसमें जमाअत की नमाज़ होती हो – केवल उस स्थिति में है जब एतिकाफ़ करनेवाला पुरुष हो। जहाँ तक महिला का संबंध है तो उसका एतिकाफ़ हर मस्जिद में मान्य है, अगरचे उसमें जमाअत की नमाज़ न होती हो, क्योंकि उसपर जमाअत की नमाज़ अनिवार्य नहीं है।

इब्ने क़ुदामा ने ''अल-मुग़्नी'' में फरमायाः

''महिला के लिए हर मस्जिद में एतिकाफ़ करना जायज़ है, और उसमें जमाअत के होने की शर्त नहीं है, क्योंकि वह उस पर अनिवार्य नहीं है। यही बात इमाम शाफेई ने भी कही है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह ने ''अश-शर्हुल मुम्ते'' (6/313) में फरमायाः

''यदि महिला ऐसी मस्जिद में एतिकाफ़ करे जिसमें जमाअत की नमाज़ नहीं होती है, तो उसपर कोई आपत्ति की बात नहीं है क्योंकि उसपर जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना अनिवार्य नहीं है।'' उद्धरण समाप्त हुआ।

स्रोत

साइट इस्लाम प्रश्न और उत्तर

at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android
at email

डाक सेवा की सदस्यता लें

साइट की नवीन समाचार और आवधिक अपडेट प्राप्त करने के लिए मेलिंग सूची में शामिल हों

phone

इस्लाम प्रश्न और उत्तर एप्लिकेशन

सामग्री का तेज एवं इंटरनेट के बिना ब्राउज़ करने की क्षमता

download iosdownload android